Cancer ke bare me prachalit rin 5 myths par nahi karna chahiye bharosa.-…

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Cancer ke bare me prachalit rin 5 myths par nahi karna chahiye bharosa.-…

कैंसर के बारे में जितना डर है, उससे ज्यादा कन्फ्यूजन। गूगल पर मौजूद ज्ञान ने बहुत सारे स्वयंभू डॉक्टर पैदा कर दिए हैं। कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के संदर्भ में इनसे बचने की जरूरत है।

“प्राकृतिक औषधियों द्वारा कैंसर का शत- प्रतिशत इलाज, कीमोथेरेपी से बचें और कैंसर दूर करें”
इस प्रकार की आकर्षित करने वाली हेड लाइन्स आपने अक्सर कहीं न कहीं देखी या सुनी होंगी। ऐसी ही बहुत सारी भ्रमित करने वाली बातें कैंसर को लेकर समाज में या फिर व्हाट्सएप पर बहुत आम हो गई हैं। एक पढ़े-लिखे समाज में ऐसी भ्रामक अवधारणाओं (Cancer myths) के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

वैज्ञानिक सोच है जरूरी 

अच्छा सोचिए अगर आपके घर में बिजली के तारों में शॉर्ट सर्किट हो जाए, तो आप क्या करेंगे? इलेक्ट्रीशियन को बुलाकर ठीक करवाएंगे या फिर व्हाट्सएप या गूगल से कोई हल ढूढेंगे। अगर आप उसके लिए व्हाट्सएप अथवा गूगल पर नहीं जाएंगे, तो फिर कैंसर जैसी जटिल समस्याओं के लिए गूगल या वॉट्सएप क्यों?

world cancer day cancer ke bare me awareness badhane ke liye manaya jata hai
वर्ल्ड कैंसर डे पर कैंसर के बारे में जागरुकता बढ़ाने पर बल दिया जाता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

आमतौर पर मरीज कैंसर के लेट स्टेज में हमारे पास पहुंचते हैं। उनमें से कई इसी प्रकार की अवधारणाओं के चलते ठीक हो सकने वाली बीमारी को अंतिम स्टेज तक पहुंचा देते हैं। उसके बाद इनका इलाज पहले की तुलना में और ज़्यादा मुश्किल हो जाता है। ऐसी ही कुछ बातों का आज हम स्पष्टीकरण करेंगे एवं उन भ्रमित करने वाली बातों से धूल हटाएंगे।

यहां हैं कैंसर के बारे में प्रचलित कॉमन मिथ्स, जिन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करना चाहिए (Common cancer myths)

1. पहली  भ्रामक अवधारणा – बायोप्सी से कैंसर फैलता है।

अक्सर लोग बायोप्सी करवाने से डरते हैं और कहते हैं कि सुई डालने या उसको छेड़ने से कैंसर फैल जाता है। यह एक पूर्णतः निराधार बात है। बायोप्सी करने से आपके कैंसर का न केवल पता चलता है, बल्कि उसके लिए किस प्रकार का इलाज संभव होगा, यह भी ज्ञात होता है।

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कुछ कैंसर में हमें बायोप्सी की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन अधिकतर कैंसर बायोप्सी द्वारा ही पता चलते हैं और इसमें बायोप्सी से कैंसर के फैलने का न ही कोई प्रमाण है और न कोई वैज्ञानिक कारण इसलिए बायोप्सी से मत डरिए। अपने कैंसर विशेषज्ञ से सलाह करिए।

2. दूसरी अवधारणा – कैंसर हमेशा जानलेवा होता है।

कैंसर एक कठिन बिमारी अवश्य है, मगर हर कैंसर जानलेवा नहीं होता। यदि सही समय पर पता चल जाए और उचित उपचार मिले, तो कैंसर का इलाज एवं कैंसर से ठीक होना संभव है। कैंसर के आधुनिक इलाज आज नई उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं और कैंसर से ठीक होने वाले मरीजों की तादाद लगातार बढ़ रही है।

3. तीसरी अवधारणा – कैंसर एक से दूसरे को फैल सकता है।

आम धारणा के विपरीत कैंसर एक व्यक्ति से दूसरे को नहीं फैलता। ये कोई छूत की बिमारी या संक्रमण नहीं है जो कि सिर्फ छूने, साथ बैठने, खांसने या छींकने से फैल जाए। कैंसर होने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें से कुछ कारण जेनेटिक (अनुवांशिक) वातावरण से जुड़े हुए या कुछ वाइर्सेस से हो सकते हैं। लेकिन कैंसर के रोगियों के साथ मिलने-जुलने, उनके साथ भोजन करने या उनसे गले मिलने या हाथ मिलाने से कैंसर नहीं फैलता।

4. चौथी अवधारणा : प्राकृतिक औषधियों से कैंसर ठीक हो सकता है और कीमोथेरेपी नुकसान देती है।

प्राकृतिक तत्व जैसे कि साफ हवा, पानी एवं खाना सभी के लिए अच्छे हैं। योग प्राणायाम एवं पौष्टिक आहार, सभी को सेवन करना चाहिए और यह हमारी रोग अविरुद्ध शक्ति (इम्युनिटी) को बढ़ाते भी हैं। मगर ये कैंसर का मूलभूत इलाज नहीं है। कैंसर के उपचार के लिए वैज्ञानिक एवं प्रमाणित इलाज ही उपयोग होने चाहिए केवल इन वैकल्पिक इलाज प्रणालीयो से यह संभव नहीं ।

Ayurveda ek lifestyle hai
अब तक कोई भी जड़ी-बूटी कैंसर के उपचार में कारगर नहीं है। चित्र : शटरस्टॉक

5. पांचवी अवधारणा – कैंसर केवल वृद्ध लोगों को होता है।

कैंसर नवजात शिशु से लेकर नौजवान एवं वृद्ध सभी आयु वर्ग के लोगों को हो सकता है। हालांकि कुछ कैंसर ऐसे हैं जो कि आमतौर पर वृद्धावस्था में ही होते हैं। मगर कुछ ऐसे भी हैं जो कि ज्यादा आम है इसलिए हम सभी को अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए। कैंसर इस बदलते समय की एक कड़वी सच्चाई है।

जरूरत यह है कि हम कैंसर के बारे में अपनी जानकारी बढ़ाएं और अवधारणाओँ से बचें। अपने डॉक्टर से मिलकर सही जानकारी पाए और दूसरों को भी गलतफहमियों से बचाएं।

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