H-1B वीजा को लेकर बढ़ी टेंशन, ट्रंप ने बदला नियम, लाखों भारतीयों पर पड़ेगा असर – भारत संपर्क


डोनाल्ड ट्रंप. (फाइल फोटो)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए, जिससे H1-B वीज़ा के लिए आवेदन फीस बढ़कर 100,000 अमेरिकी डॉलर हो जाएगी. इस कदम का अमेरिका में वर्क वीज़ा पर काम कर रहे भारतीय कर्मचारियों पर गहरा असर पड़ सकता है.
ट्रंप ने शुक्रवार को एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए, जिससे कंपनियों द्वारा H1-B आवेदकों को स्पॉन्सर करने के लिए भुगतान की जाने वाली फीस बढ़कर 100,000 अमेरिकी डॉलर हो जाएगी. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में लाए जा रहे लोग वास्तव में अत्यधिक कुशल हों और अमेरिकी कर्मचारियों की जगह न लें.
#WATCH | President Donald J Trump signs an Executive Order to raise the fee that companies pay to sponsor H-1B applicants to $100,000.
White House staff secretary Will Scharf says, “One of the most abused visa systems is the H1-B non-immigrant visa programme. This is supposed to pic.twitter.com/25LrI4KATn
— ANI (@ANI) September 19, 2025
एक लाख अमेरिकी डॉलर की फीस लगाने की घोषणा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार (स्थानीय समय) को H-1B वीजा एप्लिकेशन पर 100,000 अमेरिकी डॉलर की फीस लगाने की घोषणा जारी की. ट्रंप प्रशासन का मानना है कि यह कदम अमेरिकी श्रमिकों के लिए नौकरियों का रास्ता खोलेगा. व्हाइट हाउस के स्टाफ सचिव विल शार्फ ने जोर देकर कहा कि घोषणा यह सुनिश्चित करेगी कि कंपनियां हाईली स्किल्ड लोगों को लाएं, जिन्हें अमेरिकी वर्कर्स द्वारा रिप्लेस नहीं किया जा सकता है.
अमेरिका को मिलेंगे स्किल्ड वर्कर्स
उन्होंने कहा कि सबसे अधिक दुरुपयोग की जाने वाली वीजा प्रणालियों में से एक H1-B नॉन-इमिग्रेशन वीजा कार्यक्रम है. यह उन स्किल्ड वर्कर्स को अमेरिका में आने की अनुमति देने वाला है जो उन क्षेत्रों में काम करते हैं जहां अमेरिकी काम नहीं करते हैं. एच-1बी एक नॉन-इमिग्रेशन वीजा है जो अमेरिका स्थित कंपनियों को साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, गणित (एसटीईएम) और आईटी जैसी नौकरियों के लिए विदेशी वर्कर्स को नियुक्त करने और रोजगार देने की अनुमति देता है.
लोगों को बाहर से लाना बंद करें कंपनियां
अमेरिका के वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि अब बड़ी टेक कंपनियां या अन्य कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को ट्रेनिंग देकर सस्ते वर्कर्स नहीं ला पाएंगी. उन्हें सरकार को 1 लाख डॉलर देने होंगे और फिर कर्मचारी को वेतन भी देना होगा. ऐसे में कंपनियों के लिए अमेरिकियों को ही ट्रेनिंग देना बेहतर होगा. यह नीति अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा के लिए है, और बड़ी कंपनियां भी इसका समर्थन कर रही हैं.
इमिग्रेशन पर नकेल कसने के लिए बड़ा कदम
यह कदम इमिग्रेशन पर नकेल कसने के लिए प्रशासन का बड़ा कदम माना जा रहा है. इसका एच-1बी वर्कर्स पर बहुत अधिक निर्भर उद्योगों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है. भारत में जन्मे लोग सबसे बड़े लाभार्थी हैं, जो 2015 से सालाना स्वीकृत सभी एच-1बी याचिकाओं के 70% से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं.
इससे पहले, फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डेसेंटिस ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम की आलोचना की, इसे घोटाला कहा और तर्क दिया कि यह कंपनियों को अमेरिकी वर्कर्स को विदेशी लोगों से बदलने की अनुमति देता है. बुधवार (स्थानीय समय) पर फॉक्स न्यूज पर एक इंटरव्यू के दौरान, उन्होंने दावा किया कि कंपनियां अक्सर एच-1बी वीजा धारकों के साथ अमेरिकी वर्कर्स को ट्रेन करती हैं. डेसेंटिस ने कहा कि यह अस्वीकार्य है.
एच1बी वीजा प्रोग्राम की आलोचना
अमेरिका के वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने भी वर्तमान एच1बी वीजा प्रोग्राम की आलोचना की और इसे घोटाला बताया. एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने कहा कि वर्तमान एच1बी वीजा प्रणाली एक घोटाला है जो विदेशी श्रमिकों को अमेरिकी नौकरी के अवसरों को भरने देता है. अमेरिकी वर्कर्स को काम पर रखना सभी महान अमेरिकी व्यवसायों की प्राथमिकता होनी चाहिए. अब अमेरिकियों को काम पर रखने का समय है.