50 जहाजों का बेड़ा क्यों बना इजराइल-अमेरिका के लिए सिरदर्द? गाजा की ओर बढ़ रहा ‘सुमुद… – भारत संपर्क

दर्जनों देशों के लोग, 50 से ज्यादा जहाज, और एक ही मिशन – Gaza की घेराबंदी को तोड़ना, और वहां के भूख से तड़पते लोगों तक मदद पहुंचाना. क्या ‘ग्लोबल सुमुद फ्लोटिला’ वाकई गाजा के लिए उम्मीद की आखिरी नाव है, या ये सिर्फ एक और सियासी तूफान है?
क्या एक छोटे जहाज़ों का काफिला, इजराइल की भयानक बमबारी के बीच गाजा की त्रासदी में घिरे लोगों के लिए उम्मीद की नाव बन सकता है.., जी हाँ, शायद गाज़ा के मानवीय हालात की खौफनाक तस्वीरें देख,, समंदर में उतरे इस बेड़े ने दुनिया की सबसे बड़ी ताकतों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. ‘सुमुद फ्लोटिला’ नाम का यह बेड़ा अब इजराइल और अमेरिका के लिए सिरदर्द बन गया है? लेकिन क्या ये जहाज गाजा को भुखमरी से बचा पाएंगे? ‘क्लियर कट’ में जानेंगे इस मिशन की अनसुनी कहानी, जिसने दुनिया की कूटनीति का रुख बदल दिया है…
‘सुमुद फ्लोटिला’ क्या है और इसका मकसद क्या है?
‘सुमुद फ्लोटिला’ कोई सैन्य अभियान नहीं, बल्कि यह एक मानवीय मिशन है. ‘सुमुद’ का मतलब होता है ‘दृढ़ता’ या ‘अडिगता’. और ‘फ्लोटिला’ का मतलब है ‘छोटे जहाजों का बेड़ा’. तो यह ‘सुमुद फ्लोटिला’ 50 से ज़्यादा नागरिक जहाजों का एक बेड़ा है, जिसमें 44 से ज्यादा देशों के कार्यकर्ता, डॉक्टर, पत्रकार और मशहूर हस्तियां शामिल हैं. इस मिशन का मकसद गाजा पर लगी इजराइल की 18 साल पुरानी नौसैनिक नाकेबंदी को तोड़ना, मानवीय सहायता पहुंचाना और लोगों द्वारा संचालित एक गलियारा स्थापित करना है.
सितंबर 2025 की शुरुआत में यह ‘फ्लोटिला’ यानि छोटे जहाज़ों का बेड़ा भूमध्य सागर में एक साथ जमा हुआ. इस मिशन का आयोजन Freedom Flotilla Coalition, Global Movement to Gaza, Maghreb Sumud Flotilla, और Sumud Nusantara जैसे संगठनों ने किया है. यह एक पूरी तरह से अहिंसक मिशन है, जिसे इसके आयोजकों ने अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत पूरी तरह से वैध बताया है. हालांकि, इसकी यात्रा शुरू होते ही इस पर संदिग्ध ड्रोन हमले हुए, और इजराइल ने इसे रोकने की कसम खाई है.
सुमुद फ्लोटिला के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, ‘जब सरकारें और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं नाकाम हो जाती हैं, तब हम जैसे आम लोगों को आगे आना पड़ता है. यह सिर्फ एक जहाज नहीं है, यह गाजा की उस आवाज का प्रतीक है जो पूरी दुनिया में सुनी जानी चाहिए.’
क्या यह भुखमरी और युद्ध से गाजा के लोगों को बचा पाएगा?
संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट बताती है कि Gaza में कुल 23 लाख लोगों में से 85% लोग विस्थापित हो चुके हैं. UN-समर्थित आयोग ने अगस्त 2025 में साफ कहा था गाजा में अकाल के लिए इजराइल जिम्मेदार है. WHO के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम कहना है कि गाजा में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है. यह मानवीय आपदा है. UNICEF के मुताबिक, 1.1 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और 17,000 से ज्यादा बच्चे अनाथ हो चुके हैं.
वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की प्रमुख सिंडी मैक्केन ने हाल ही में कहा था- गाजा में हर तीसरा बच्चा गंभीर कुपोषण से जूझ रहा है. तत्काल मदद जरूरी है. यानी गाजा में हालात काफी गंभीर हैं. ऐसे में सवाल उठता है, कि क्या ये छोटे-छोटे जहाज इतना बड़ा बदलाव ला सकते हैं? दरअसल, यह फ्लोटिला सिर्फ एक प्रतीकात्मक मिशन नहीं है. बल्कि यह लोग अपने साथ टनों के हिसाब से खाना, दवाइयाँ और दूसरी ज़रूरी चीज़ें लेकर निकले हैं.
लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है कि क्या यह बेड़ा अपनी मंज़िल तक पहुंच पाएगा? Sumud Flotilla को शुरुआत से ही कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. ट्यूनीशिया के तट के पास ये काफिला संदिग्ध ड्रोन हमलों का शिकार हुआ. इज़राइल ने पहले ही चेतावनी दी थी कि वो इस काफिले को किसी भी हाल में गाजा तक नहीं पहुंचने देगा, इजराइल ने इसे रोकने के लिए नौसैनिक अभ्यास भी किए हैं. वो इसे हमास से जुड़ा एक ‘उकसावा’ बताते हैं, जबकि मिशन के आयोजकों ने इस आरोप को सिरे से खारिज किया और कहा, हम केवल राहत और शांति के लिए निकले हैं.
अभी 2010 के Mavi Marmara कांड की वो यादें भी ताजा हैं, जब इजराइली हमले में 10 कार्यकर्ता मारे गए थे. ऐसे में, इस फ्लोटिला का गाजा तक पहुंचना ही अपने आप में एक बड़ी सफलता होगी. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप एर्दोगान ने चेतावनी दी है- अगर फ्लोटिला पर हमला हुआ तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.
UN की बैठक पर इसका क्या असर हुआ?
‘सुमुद फ्लोटिला’ की टाइमिंग बहुत महत्वपूर्ण है. यह ठीक उस वक्त रवाना हुआ, जब संयुक्त राष्ट्र में 80वीं महासभा का सत्र चल रहा है. इस सत्र में ‘दो-राष्ट्र समाधान’ और फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्य राष्ट्र के रूप में स्वीकार करने पर एक उच्च स्तरीय बैठक होनी है. सुमुद फ्लोटिला ने UN की इस बैठक के दौरान कई तरह की हलचल पैदा की है:
1. कार्रवाई की मांग: फ्लोटिला ने गाजा के मानवीय संकट को सीधे दुनिया के नेताओं की नजरों के सामने ला दिया है. कार्यकर्ता और समर्थक देश अब सिर्फ राजनयिक मान्यता से आगे बढ़कर ठोस कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
2. इजराइल की नीतियों पर सवाल: इस फ्लोटिला ने इजराइल की नाकेबंदी नीतियों पर फिर से दुनिया का ध्यान केंद्रित किया है, खासकर तब जब संयुक्त राष्ट्र ने भुखमरी के लिए इजराइल को जिम्मेदार ठहराया है.
3. कूटनीतिक विभाजन: जिन देशों के नागरिक इस फ्लोटिला में शामिल हैं, जैसे स्पेन और इटली, उन्होंने उन्हें राजनयिक सुरक्षा देने की पेशकश की है. वहीं, कुछ अन्य देशों ने इसमें शामिल होने पर अपने नागरिकों को चेतावनी दी है.
यह फ्लोटिला दिखाता है कि जब सरकारी कूटनीति धीमी पड़ती है, तो आम लोग अपने तरीके से बदलाव लाने की कोशिश करते हैं. UN में अब तक 156 देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का ताजा बयान है- फिलिस्तीन राज्य की मान्यता अब केवल नैतिक जरूरत नहीं, बल्कि राजनीतिक आवश्यकता बन गई है.
फ्लोटिला की टाइमिंग ने इस बहस को और भी तेज कर दिया है, और Gaza की मानवीय स्थिति को UNGA के केंद्र में ला दिया है.
विश्व नेताओं पर पड़ा ‘सुमुद फ्लोटिला’ का प्रभाव?
यह फ्लोटिला दुनिया के नेताओं के लिए एक बड़ा राजनयिक और राजनीतिक दबाव बन गया है. फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले देशों के लिए: फ्रांस और कनाडा जैसे देशों ने हाल ही में फिलिस्तीन को मान्यता दी है. उन पर अब यह साबित करने का दबाव है कि उनकी यह कार्रवाई सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है. अगर इजराइल फ्लोटिला को रोकने के लिए बल का इस्तेमाल करता है, तो इन देशों की प्रतिबद्धता की परीक्षा होगी.
स्पेन, इटली जैसे देशों ने इस मिशन में शामिल अपने नागरिकों को राजनयिक सुरक्षा दी है. स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ ने कहा- हमारे नागरिकों का मानवीय मिशन हमारे समर्थन का हकदार है.
अमेरिका के लिए यह स्थिति बेहद जटिल है. प्रेजिडेंट डोनाल्ड ट्रंप की सरकार पर दबाव है कि वह सिर्फ बयानबाज़ी न करे, बल्कि Gaza के लिए ठोस कदम उठाए. इज़राइल के लिए यह काफिला एक सुरक्षा और राजनीतिक चुनौती है. सुमुद फ्लोटिला ने ‘दो-राष्ट्र समाधान’ पर अमेरिका की पुरानी नीति को चुनौती दी है, जो इजराइल की सहमति के बिना इस समाधान का विरोध करता रहा है. गाजा में बिगड़ते हालात को फ्लोटिला ने उजागर किया है, जिससे ट्रंप प्रशासन पर इसके एक निर्णायक समाधान के लिए दबाव बढ़ा है.
यह एक बड़ी दुविधा है. अगर वो ताकत का इस्तेमाल करके फ्लोटिला को रोकते हैं, तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय निंदा का सामना करना पड़ेगा. अगर वे इसे जाने देते हैं, तो यह उनकी नाकेबंदी का कमजोर होना कहलाएगा और एक राजनयिक हार मानी जाएगी.
‘सुमुद फ्लोटिला’ पर भारत का स्टैंड?
इस मामले में अगर भारत और दक्षिण एशिया की भूमिका की बात करें तो भारत ने हमेशा दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन किया है, और 1988 में ही फिलिस्तीन को मान्यता दे दी थी. लेकिन सुमुद फ्लोटिला पर कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं लिया है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है- ‘भारत मानवीय सहायता का समर्थन करता है, लेकिन यह शांतिपूर्ण और कानूनी तरीके से होनी चाहिए.’ वहीं, पूर्व राजदूत अमर सिन्हा का कहना है- भारत को मानवीय संकट के समय तटस्थता छोड़नी चाहिए.’
नागरिक समाज और एक्टिविस्ट्स की ताकत
दक्षिण एशिया के कई मानवाधिकार संगठन सुमुद फ्लोटिला के समर्थन में हैं, लेकिन सरकारें सतर्क हैं. सुमुद फ्लोटिला ने दिखा दिया है कि जब सरकारें असहाय हों, तो नागरिक समाज आगे आता है. Human Rights Watch के निदेशक केनेथ रोथ कहते हैं- यह नागरिक अवज्ञा यानी चुनौती का एक क़ानूनी रूप है, जो मानवीय संकट में उम्मीद बन सकता है.
तो एक तरफ जहाजों का बेड़ा है जो नाकेबंदी तोड़ना चाहता है, और दूसरी तरफ कूटनीति की धीमी रफ्तार है. क्या शांति की जीत होगी? क्या ‘सुमुद फ्लोटिला’ की ज़िद और ‘टू स्टेट सोल्यूशन’ के लिए बढ़ता वैश्विक समर्थन एक स्थायी शांति ला पाएगा? या फिर दशकों पुराना यह संघर्ष यूं ही जारी रहेगा? यह देखना अभी बाकी है.
‘क्लियर कट’ के वीडियो में समझिए पूरा मामला…