गांव में सिर्फ 45 रुपए रोज में कट जाती है गरीब की जिंदगी,…- भारत संपर्क

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गांव में सिर्फ 45 रुपए रोज में कट जाती है गरीब की जिंदगी,…- भारत संपर्क
गांव में सिर्फ 45 रुपए रोज में कट जाती है गरीब की जिंदगी, सर्वे में हुआ खुलासा

गांव में गरीब खर्च कर रहा सिर्फ 45 रुपए रोजImage Credit source: TV9 Graphics

भारत में लोगों के खर्च करने की आदत बदल रही है. देश में उपभोक्ता वस्तुओं पर गांव से लेकर शहरों तक खर्च बढ़ रहा है. हालांकि शहर और गांव में जो सबसे गरीब आदमी है, उसका रोजाना का खर्च बेहद कम है. गांव में गरीब की जिंदगी 45 रुपए रोज के खर्च पर कट जाती है, जबकि शहर में रहने वाला सबसे गरीब आदमी एक दिन में महज 67 रुपए ही खर्च कर पाता है.

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) ने हाल में औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च (MPCE) के आंकड़े जारी किए हैं. ये आंकड़े हाउसहोल्ड कंजप्शन एक्सपेंडिचर सर्वे 2022-23 (HCES) पर आधारित हैं. इसके हिसाब से गांव में सबसे निचले स्तर पर रहने वाली 5 प्रतिशत आबादी का औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता खर्च महज 1,373 रुपए है. इस हिसाब से ये 45 रुपए प्रति दिन बैठता है. अगर शहरी आबादी के आंकड़ों को देखें तो शहरों में रहने वाली 5 प्रतिशत सबसे गरीब आबादी में प्रति व्यक्ति औसतन मासिक खर्च 2001 रुपए है. रोजाना के हिसाब से ये खर्च 67 रुपए के आसपास बैठता है.

एससीईएस की फैक्टशीट के आधार पर अगर इसकी तुलना गांव-शहर के सबसे अमीर टॉप-5 प्रतिशत लोगों से की जाए. तो गांव में उनका प्रति व्यक्ति मासिक औसत उपभोक्ता खर्च 10,501 रुपए ( प्रतिदिन 350 रुपए) है. शहरी इलाकों में टॉप-5 प्रतिशत लोगों का औसत मासिक उपभोक्ता खर्च 20,824 रुपए (करीब 695 रुपए प्रति दिन) है.

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देश बढ़ रहा लोगों का उपभोक्ता खर्च

अगर पूरे देश की आबादी के औसत को देखा जाए तो 2011-12 की तुलना में 2022-23 तक आते-आते उनका मासिक उपभोक्ता खर्च लगभग दोगुना बढ़ा है. देश में परिवारों का प्रति व्यक्ति औसत मासिक घरेलू खर्च मौजूदा कीमतों पर शहरी इलाकों में 2022-23 में 6,459 रुपए हो गया है. जबकि 2011-12 में ये 2,630 रुपए था. इसी तरह ग्रामीण इलाकों में यह बढ़कर 3,773 रुपए हो गया है, जो एक दशक पहले 1,430 रुपए था.

अगर इस ग्रोथ को देखा जाए तो ग्रामीण आबादी के औसत मासिक घरेलू खर्च में 164 प्रतिशत का जंप आया है, वहीं शहरी आबादी के खर्च में ये ग्रोथ 146 प्रतिशत की है. एनएसएसओ आम तौर पर हर 5 साल में ये आंकड़े जारी करती है. इस बार इन आंकड़ों को एक दशक के अंतराल पर जारी किया गया है.

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