पुस्तक समीक्षा, काव्य संग्रह ‘हसरतें , नारी मन का दर्पण- भारत संपर्क
 
                समीक्षक: संजय अनंत
लखनऊ प्रवास की एक बहुत बड़ी उपलब्धि ये रही की कुछ बेहतरीन शख्शियते हमारी मित्र सूचि में शामिल हो गयी, उस दिन की साहित्य संगोष्ठी के मंच से मेरे द्वारा एक काव्य संग्रह ‘हसरतें’ का विमोचन किया गया,ये काव्य संग्रह किसी तूलिका रानी जी का था, चुंकि मेरा उन से कोई पूर्व परिचय नहीं था, हम ने समझा की कोई गृहणी है, शौक से कुछ लिखा होगा, आज उसका विमोचन किया गया, पर ज़ब इनका तारुफ कराया गया तो पता चला की वो अपने आप में एक सितारा है,जो खुद रौशन है,जिस की अपनी पहचान है, वो मानो एक प्रकाश स्तम्भ है जो निराश, कमज़ोर पड चुके, हार मान चुके जन के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती है..
इनके विषय में जितना जान पाया, समझ आया शायद कई पन्ने कलम से काले करने पड़े तब भी शायद छूट जाएगा
मेरी बात पर जरा गौर फरमाइयेगा..
ऐसा है साहब,यदि संघर्ष करने का माद्दा हो, अपने लक्ष्य के लिए सब कुछ अर्पित करने का संकल्प हो तो सब कुछ मुमकिन है, वे निश्चित ही भारत के स्त्री संघर्ष, उसकी सफलता की मिसाल है, अनेक बच्चियों की वे प्रेरणा बन सकती है..
तो डॉ तूलिका रानी जी की शख्शियत ने मज़बूर कर दिया की उनकी कृति ‘हसरतें’ की समीक्षा करने के पूर्व,पाठक को ये जरूर बताया जाए की जिस कविता संग्रह की समीक्षा संजय अनंत जी कलम कर रही है, वो कौन है..
ज़ब वाज़िद अली शाह के लखनऊ में थे, तो कुछ बीते दौर की बातें दिमाग़ के दरवाज़े पर दस्तक दे रही थी, शकील बदायुनी साहब याद आ गए, लखनऊ की शान में लिखा..
ये लख़नौउ की सर-ज़मीं
शबाब-ओ-शेर का ये घर
ये अह्ल-ए-इल्म का नगर
है मंज़िलों की गोद में
यहाँ हर एक रह-गुज़र
ये शहर लालदार है
यहाँ दिलों में प्यार है
जिधर नज़र उठाइये
बहार ही बहार है
कलि-कलि है नाज़नीं
ये लख़नौउ की सर-ज़मीं..
तो ज़नाब इसी शेरो शायरी के शहर में डॉ तूलिका रानी से भेंट हुई, आप भारतीय वायुसेना में स्कवाड्रन लीडर रही है, यू पी की प्रथम महिला है जिन्होंने माउन्ट एवरेस्ट फतह किया हो, G-20 में वे उत्तर प्रदेश सरकार की ब्रांड एम्बेसडर भी रही है, अंग्रेजी भाषा में भी लिखती है , अंग्रेजी भाषा में काव्य संग्रह The Song Of The Sky सन 2023 में प्रकाशित हुआ और आप अमेरिका से प्रकशित Groth & Healing नाम की पुस्तक की सह लेखिका है, अपने पर्वतारोहण के अनुभव व शोध पर आधारित पुस्तक शेरपास ऑफ़ सोलुखुम्भु भी लिखी है..
उफ़ बहुत कुछ और भी है उनकी शान में कहने को, पर इतना पढ़ कर आप ये अंदाज़ लगा सकते है की तूलिका रानी जी का व्यक्तित्व क्या है
पर आज हम बात करेंगे उनके इस काव्य संग्रह हसरतें की..
‘हसरते’ किसी विषय विशेष पर लिखी कविताएं नहीं है, ये नारी मन की उड़ान है, जिस में कोई बंधन नहीं है, मन की बात है, अनुभव की बात है तो देश समाज भी उनके काव्य सृजन का विषय है, भाषा सामान्य उर्दू मिश्रित हिन्दी है, जो वर्तमान समय में लेखन में उपयोग होती है, आप को साहित्यिक या अलंकार से परिपूर्ण शब्दों उपयोग नहीं मिलेगा, सीधी सरल दिल की बात..
कुछ भाव मन के द्वार पर दस्तक दिए और तूलिका जी ने उसे कागज़ पर उतार दिया..
जैसा हम ने लिखा की इस संग्रह की कविताओं में विषयों की भिन्नता है, हर कविता चाहे वो चार पंक्ति में ही समाप्त होती हो,अपने आप में पूर्ण है, जैसे..
‘सैलाब’
सैलाब हूँ मै, क्यूँ कहते हो थोड़ा थोड़ा बहने को
फ़ितरत ही है मेरी जमकर भरपूर बरस जाने की
नदिया ना होता, जो आता मुझको सीधे से बहना
परवाह होती मुझको इस मनहूस ज़माने की..
केवल इन चार पंक्तियों में विचार, भाव सब कुछ पूर्णता प्राप्त कर लेते है, अपने आप में पूर्ण..
जो रचनाएँ मुझे प्रभावित कर गईं उनमे ‘आग’, ‘सीरत मेरी’, ‘आंसू और मुस्कान’ और जिस रचना पर इस कृति का शीर्षक है यानि ‘हसरते’..
गहरे भाव पाठक के ह्रदय को भी छूते है, वे लिखती है, अंतिम पद में लिखती है
हसरतें रहें जब तक आँखो में
तब तक मानव जिन्दा है
वरना उड़ ही जाना है एक दिन
सांसे एक परिंदा है..
ये कृति किसी व्यक्ति विशेष को समर्पित नहीं है, उन्होंने समर्पित किया है, उनके ही शब्दों में
‘हर उस इंसान को समर्पित
जिसकी आँखो में ख़्वाब है’…
ये तुलिका जी का मानो जीवन दर्शन भी है, वे स्वयं स्वप्न देखती है और फिर उसे पूर्ण करने में अपना सर्वस्व लगा देती है, यहीं गुणी जनो के लक्षण शास्त्र में बताए गए है
सभी कविताए पढ़ने योग्य है, कुछ में भाव की गहनता है तो कुछ देश समाज का यथार्थ बयां करती है,चाहे वो ‘आवारा’ हो, ‘वट वृक्ष’ हो या ‘उल्लास’ हो सब में एक सन्देश है, विचार है, ह्रदय को छू सकने वाला भाव है
वे कहती है की केवल अपने भाव को कलम से कागज़ पर उतरना ही काव्य सृजन नहीं है, उस में गैर भी हो सकते है, समाज या देश भी हो सकता है
इस संग्रह में ही अपनी कविता ‘लिखने का सबब’ मानो वे अपने साहित्य लेखन को परिभाषित कर रही हो, अपने कवि होने के कारण व उस के लक्ष्य को बयां कर रही हो
मै लिखूँ तो लोग पूछें, ग़म है क्या?
आपके अपने ही ग़म कुछ कम है क्या?
जरुरी है की खुद रोएं तभी अल्फ़ाज़ निकले?
महसूस करने की कोई सरहद है क्या??
इस कृति की अनेक रचनाएँ आप को याद रहेगी, आत्म अवलोकन को मज़बूर करेगी
डॉ. तूलिका रानी को इस काव्य संग्रह ‘हसरतें’ के लिए बधाई औरआशा करते है की वो अपने वृहत जीवन अनुभव को अपनी कलम से कागज़ पर उतारते रहेंगी और किसी चित्रकार की तरह भाव अनुभव के रंग साहित्य के कैनवास पर बिखेरती रहेगी
समीक्षक
संजय अनंत ©
पुस्तक का नाम : हसरतें
प्रकाशक: सेबर & क्विल, नई दिल्ली

 
                                             
                                             
                                             
                                         
                                        