दसों दिशाओं से दैवी कृपा मिलती है गङ्गा दशहरा पर स्नान और…- भारत संपर्क
डॉ अलका यादव
मिर्जापुर। पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्वजों को शाप-मुक्त करने के लिए राजा भगीरथ की तपस्यासे अभिभूत होकर देवाधिदेव महादेव ने गङ्गा को धरती पर भेजा था। भीषण ग्रीष्म ऋतु में गङ्गा का धरती पर आगमन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हुआ था। इस उपलक्ष्य में गङ्गा-दशहरा का पर्व अत्यंत आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दिन गङ्गा-स्नान, पूजन एवं दान का महत्व अधिक बताया गया है। इससे दस पाप नष्ट होते हैं और दसों दिशाओं से दैवी कृपा प्राप्त होती है।
◆16 जून रविवार को गङ्गा दशहरा के अवसर पर हस्त नक्षत्र में स्नान का योग उत्तम है। इस दिन मध्याह्न 12 बजकर 56 मिनट तक हस्त नक्षत्र है। अतः ब्रह्म मुहूर्त से लेकर इस समय तक गङ्गा स्नान, पूजन एवं दान उत्तम फलदायी है।
◆इस दिन घर से स्नान के लिए निकलते ही ‘हर-हर गङ्गे’ का मानसिक जाप करना चाहिए। साथ ही इस दिन 12 डुबकी अवश्य लगानी चाहिए। गङ्गा स्नान में तीन, पांच, सात और बारह डुबकी का विधान धर्मग्रन्थों में किया गया है। यह ग्रीष्म ऋतु है इसलिए 12 डुबकी श्रेष्ठ है। इसके अलावा बहते हुए जल में जिस दिशा से जल बहते हुए आ रहा है, उसी दिशा में मुंह करके स्नान करना चाहिए। नदियों को मां का दर्जा दिया गया है, इसलिए मां की ओर उन्मुख होना श्रेष्ठ होता है। बहते हुए जल की धारा का सीधा स्पर्श आज्ञा चक्र पर होता है। जो बौद्धिक क्षमता की वृद्धि में सहायक होता है।
◆ गङ्गा दशहरा के दिन गङ्गा में डुबकी के बाद यथा संभव यही कोशिश करनी चाहिए कि शरीर पर ही जल सूख जाए। उसे पोछना नहीं चाहिए। गङ्गा का पानी अमृत माना गया है, इसलिए अमृत रोम-रोम से शरीर में जाए, इसलिए पानी का शरीर पर ही सूखना उत्तम है।
◆दशमी तिथि होने की वजह से गङ्गा तट पर पूजन भी इस तिथि को करना चाहिए। संभव हो तो दीप, फूल, फल तथा नैवेद्य कुल मिलाकर दस की संख्या हो जाए। धर्मग्रन्थों में दस बार गङ्गा-स्तोत्र पाठ का विधान किया गया है। उल्लिखित है कि इससे जीवन संग्राम में संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है। जो स्तोत्र नहीं पढ़ सकते उन्हें कम से कम दस बार ‘ऊँ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नमः ऊँ’ का जप करना चाहिए। गायत्री मंत्र का भी जप किया जाना चाहिए। चूंकि 16 जून को गायत्री जयंती है, अतः भगवान सूर्य को जल अर्पित कर जप लाभदायी होगा। सूर्य को अर्घ्य देने का सर्वाधिक फलदायी समय जब सूर्य जब तक सूर्य की लालिमा रहे, उसी समय यह कार्य करना चाहिए।
◆गङ्गा दशहरा चूंकि राजा भगीरथ द्वारा लोकहित में की गई कठिन तपस्या का पर्व है, अतः इस दिवस लोकहित का संकल्प लेना चाहिए । जो भी उपासक लोकहित की भावना रखता है, इसका हित दैवी शक्तियां स्वतः करने लग जाती हैं। ऐसी स्थिति में प्रतिदिन पूजन में अपने परिवार, माता-पिता, गुरु, बहन-भांजे, अपने शुभचिंतकों, अपने नियोक्ता आदि के लिए शुभता की कामना करनी चाहिए। यह मानसिक शुभता की गङ्गा हैं। ऐसा करने वाले का सदैव हित दैवी शक्तियां करती हैं।
◆चूंकि दशहरा के दिन दान का विधान है लेकिन दान के लिए ‘सत्पात्रे विहितं दानं पुण्य-कीर्तिकरं भवेत्’ कहा गया है। इसका अर्थ है कि सत्पात्र को दिया गया दान ही पुण्य तथा यश को प्रदान करता है। दान में वस्तु से ज्यादा श्रेष्ठ दान आत्मबल का दान माना गया है। किन्हीं कारणों से दीन-हीन की मदद करके उसमें आत्म-विश्वास पैदा कर देना उत्तम कार्य माना गया है। दुर्भिक्ष, महामारी तथा किसी भी आपदा से ग्रस्त व्यक्ति के हितार्थ दान और मदद करनी चाहिए।