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महंगाई डायन ने बिगाड़ा रसोई का बजट, दालों के साथ साथ हरी सब्जियों के बढ़े दाम

कोरबा। महंगाई डायन ने रसोई का बजट बढ़ा दिया है। टमाटर का भाव 80-90-100 रुपये पहुंच जाने से वह लाल होकर आँखें दिखा रहा है। सब्जियों के राजा आलू का भी भाव बढ़ा हुआ है और इसके साथ-साथ प्याज रानी भी इतरा रही है। आलू-प्याज के भाव 40-40 रुपए पहुंच गए हैं। दालों के साथ-साथ सब्जियों के भी दाम बढ़ जाने से आम लोगों का रसोई बजट बिगड़ गया है। आलम यह है कि उपभोक्ता ज्यादा पैसे खर्च करने के बाद भी सब्जियों का सही मात्रा में सही स्वाद नहीं ले पा रहा है। मानसून से पहले बाडिय़ों में नए फसल की तैयारी की जा रही है। लोकल सब्जियों के आवक कम होने से यह स्थिति निर्मित हुई है और हरी सब्जियों के दाम बढऩे स्वाद इन दिनों फीकी पड़ गई।बाजार में हरी सब्जियों की बढ़ी कीमत ने गरीब और मध्यम वर्ग सहित रोज कमाकर रोज खाने वालों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है। सप्ताह भर पहले 40-50 रूपये किलो बिक रहा टमाटर अब 80 से 100 रूपये पहुंच गया है। टमाटर के अलावा भिंडी, बैगन, करेला जैसी सब्जियों के लिए जिले का बाजार अब भी दीगर जिले या राज्य से आने वाली सब्जियों पर निर्भर है।किसानों को तकनीकी खेती के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होने के कारण वर्षा काल में टमाटर जैसी सब्जी का दाम नहीं मिलता हैं। बताना होगा कि वर्षा काल शुरू होने से पहले किसानों ने बाड़ी में नए फसल लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। नए सिरे से हो रही बोआई के बाद फसल लगने में दो से तीन माह का समय लगेगा। तब तक बाजार में हरी सब्जियों की महंगाई बनी रहेगी। वर्तमान शहर में टमाटर की आपूर्ति दुर्ग जिले के बेरला, धमधा व बेमेतरा से हो रहा है। पंडरीपानी निवासी सब्जी विक्रेता छोटेलाल पटेल का कहना है मिट्टी में अंतर होने कारण गर्मी में टमाटर की उपज नहीं होती। बलुबा मिट्टी होने के कारण पानी ज्यादा समय तक नहीं ठहरता। नमी के अभाव में फसल तैयार करने में कठिनाई होती हैं। जुलाई माह बेंगलुरू से टमाटर की आवक होने होने के बाद ही लोगों को कीमत में राहत मिलेगी। कोरबा निवासी सुरेश कुमार निर्मलकर का कहना है कि बिचौलियों की वजह से सब्जियों के दाम में वृद्धि हो रही है। प्रशासन को इसके नियंत्रण के लिए उपाय करना चाहिए है। हम किसान हैं उपज लागत के साथ 10 से 20 प्रतिशत लाभ लेकर फसल की बिक्री करते हैं। बिचौलिया उसी सामान को 30 से 40 प्रतिशत लाभ लेकर बिक्री करते हैं जिसका खामियाजा आम उपभोक्ताओं भुगतना पड़ता है।

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