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उच्च न्यायालय के आदेशानुसार रजिस्ट्रार जनरल ने जारी किए थे आदेश, दहेज प्रताड़ना सहित कम अवधि की सजा वाले मामलों में ना हो तत्काल गिरफ्तारी

कोरबा। कानून की जानकारी नहीं होने पर नागरिक अपने अधिकारों से वंचित हो जाते हैं। खासकर अपराधिक मामलों में कानून की जानकारी का अभाव विपक्षीय को होना जरूरी है। दहेज प्रताड़ना सहित कम अवधि की सजा वाले मामलों में तत्काल गिरफ्तारी ना करने के आदेश न्यायालय ने दिए हैं। दहेज प्रताड़ना सहित कम अवधि की सजा वाले मामलों में उच्च न्यायालय के आदेशानुसार रजिस्ट्रार जनरल अरविन्द कुमार वर्मा ने अधिसूचना जारी की है। जो कि वर्तमान में अभी छत्तीसगढ़ बिलासपुर उच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं। जिसमें कहा गया कि आपराधिक अपील संख्या 2207/2023 (मो. असफाक आलम बनाम झारखंड राज्य और अन्य) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 31/07/2023 के निर्देश के अनुपालन में दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।विभिन्न अपराधों से निपटने वाले सत्र न्यायालय और आपराधिक न्यायालय जारी किए जाते हैं। सभी राज्य सरकारें अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दें कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत मामला दर्ज होने पर स्वचालित रूप से गिरफ्तारी न करें, बल्कि धारा 41 सीआरपीसी के तहत निर्धारित मापदंडों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे में खुद को संतुष्ट करें। सभी पुलिस अधिकारियों को धारा 41 (1) (बी) (ii) के तहत निर्दिष्ट उप-खंडों वाली एक चेक सूची प्रदान की जाए। पुलिस अधिकारी अभियुक्त को आगे की हिरासत के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष अग्रेषित/पेश करते समय विधिवत भरी हुई चेक सूची अग्रेषित करेगा और उन कारणों और सामग्रियों को प्रस्तुत करेगा जिनके कारण गिरफ्तारी की आवश्यकता हुई। मजिस्ट्रेट अभियुक्त की हिरासत को अधिकृत करते समय उपरोक्त शर्तों के अनुसार पुलिस अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अवलोकन करेगा और उसकी संतुष्टि दर्ज करने के बाद ही मजिस्ट्रेट हिरासत को अधिकृत करेगा। किसी आरोपी को गिरफ्तार न करने का निर्णय, मामले की शुरुआत की तारीख से दो सप्ताह के भीतर मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा। जिसकी एक प्रति मजिस्ट्रेट को दी जाएगी, जिसे जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा कारणों से बढ़ाया जा सकता है।धारा 41-ए सीआरपीसी के संदर्भ में उपस्थिति की सूचना मामले की शुरुआत की तारीख से दो सप्ताह के भीतर आरोपी को दी जाएगी, जिसे जिले के पुलिस अधीक्षक द्वारा लिखित रुप में दर्ज किए जाने वाले कारणों से बढ़ाया जा सकता है। उपरोक्त निर्देशों का पालन करने में विफलता पर संबंधित पुलिस अधिकारी विभागीय कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होने के अलावा, क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय के समक्ष स्थापित की जाने वाली अदालत की अवमानना के लिए भी दंडित किए जाने के लिए उत्तरदायी होंगे। संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उपरोक्त कारण दर्ज किए बिना हिरासत को अधिकृत करने पर उच्च न्यायालय द्वारा विभागीय कार्रवाई की जाएगी। उपरोक्त निर्देश न केवल आईपीसी की धारा 498-ए या दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत मामले पर लागू होंगे, बल्कि ऐसे मामलों पर भी लागू होंगे जहां अपराध के लिए कारावास से कम अवधि की सजा हो सकती है। सात वर्ष या जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, चाहे साथ में या उपरोक्त निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। हालांकि नए कानून वर्ष 2024 लागू होने के बाद से धारा में परिवर्तन होने से इसकी व्याख्या नए कानून में कैसे होगी जानने का विषय है।

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