क्या Paytm के विजय शेखर बनेंगे दूसरे सुब्रत रॉय Sahara? भारी…- भारत संपर्क

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क्या Paytm के विजय शेखर बनेंगे दूसरे सुब्रत रॉय Sahara? भारी…- भारत संपर्क
क्या Paytm के विजय शेखर बनेंगे दूसरे सुब्रत रॉय Sahara? भारी पड़ा ये पंगा

पेटीएम केस का क्या सहारा से है कनेक्शन?

साल 2016… नोटबंदी से कुछ दिन पहले, एक मिडिल क्लास फैमिली से उठकर आया आम आदमी… पैडल रिक्शा में बैठकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर उनसे मिलने पहुंच जाता है. ये आदमी कोई और नहीं, देश के स्टार्टअप मूवमेंट का सबसे चमकता सितारा और देश की सबसे बड़ी डिजिटल पेमेंट कंपनी पेटीएम का फाउंडर विजय शेखर शर्मा था. जाम से बचने के उनके इस सीधे सरल तरीके ने उस समय खूब सुर्खियां बटोरीं.

अब जरा आ जाइए सीधा 31 जनवरी 2024 के दिन, देश के बैंकिंग रेग्युलेटर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने उनके ऊपर ऐसा चाबुक चलाया कि उनका पूरा कारोबार बंद होने पर आ गया है. ये कोई अचानक से हुई घटना नहीं थी, बल्कि इसकी पटकथा पेटीएम पेमेंट्स बैंक की शुरुआत के साथ ही लिखी जानी शुरू हो गई थी. ऐसे में एक सवाल बड़ा मौजूं है कि क्या पेटीएम के फाउंडर विजय शेखर शर्मा भी सहारा इंडिया के सुब्रत रॉय बनने जा रहे हैं? चलिए समझते हैं कनेक्शन…

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पेटीएम जो करता रहा गलतियों पर गलतियां

पेटीएम में चीन के अलीबाबा ग्रुप का बहुत बड़ा निवेश था. अब भी उसकी सब्सिडियरी एंटफिन नीदरलैंड के पास पेटीएम की 9% से ज्यादा हिस्सेदारी है. अगर पेटीएम को अलीबाबा ग्रुप के पेमेंट ऑप्शन ‘अली-पे’ का हिंदुस्तानी वर्जन भी कहा जाए, तो कुछ अतिश्योक्ति नहीं होगी. 8 नवंबर 2016 को जब देश में नोटबंदी हुई, उसका सबसे ज्यादा फायदा पेटीएम को ही हुआ. खुद विजय शेखर शर्मा ने अगले ही दिन देश के सभी बड़े अखबारों में फुल पेज का विज्ञापन भी दिया था.

पेटीएम की सफलता से ओत-प्रोत विजय शेखर शर्मा ने 2017 में ‘पेटीएम पेमेंट्स बैंक’ बनाने की शुरुआत कर दी. यहीं से उसके बुरे दौर की शुरुआत हुई. बैंकिंग सेक्टर में सीधे एंट्री करते ही पेटीएम भारतीय रिजर्व बैंक के रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क में आ गया. पेटीएम को अपने कामकाज के तौर तरीके सुधारने के लिए रेग्युलेटर 2018 से लगातार कह रहा था. लेकिन ना तो पेटीएम और ना ही विजय शेखर शर्मा, दोनों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.

इसके बाद 2021 में पेटीएम को अपने इंवेस्टर्स के दबाव में शेयर मार्केट का रुख करना पड़ा. कंपनी ने देश का तब तक का सबसे बड़ा आईपीओ पेश किया, लेकिन इसके बाद उसका कामकाज पब्लिक स्क्रूटनी का हिस्सा बन गया. इसलिए हर नियम की अनदेखी पर अब एक नहीं बल्कि दो-दो रेग्युलेटर आरबीआई और सेबी की नजर उस पर पड़ने लगी.

आज 3.3 करोड़ पेटीएम वॉलेट्स के साथ पेटीएम देश की सबसे बड़ी पेमेंट कंपनी है. शायद यही वजह है कि उसने रेग्युलेटर के निर्देशों की समय पर परवाह नहीं की, जिसका नतीजा आज पूरा कारोबार बैन होने के तौर पर दिख रहा है. पेटीएम को एक नहीं कई चेतावनी दी गईं. इसमें ट्रांजेक्शन डेटा का आईटी ऑडिट, पेटीएम और पेटीएम पेमेंट्स बैंक के बीच फंड के लेन-देन, चीन से फंडिंग, डेटा की हेरा-फेरी और केवाईसी नियमों की अनदेखी जैसे मामले शामिल हैं. अगर पेटीएम के खिलाफ सभी आरोप सिद्ध होते हैं, तो उसके बैंक का लाइसेंस कैंसिल होने और ईडी की जांच होने तक की नौबत आ सकती है. क्या आपको इस सब में सहारा इंडिया के केस की झलकी नहीं दिखती…?

रेग्युलेटर से पंगा और सहारा का डूबना

अब अगर पेटीएम की गलतियों के परिप्रेक्ष्य में सहारा इंडिया के मामले को देखें, तो कई समानताएं नजर आएंगी. सहारा इंडिया को शुरू करने वाले सुब्रत रॉय भी मिडिल क्लास फैमिली से आते थे, जो अपने करियर की शुरुआत में स्कूटर पर घूमा करते थे. फिर उनकी रिक्शा, ठेला वालों के लिए शुरू की गई सेविंग स्कीम्स ने उनकी किस्मत ही बदल दी. सहारा इंडिया का कारोबार फाइनेंस के अलावा रियल एस्टेट से लेकर एविएशन, इंश्योरेंस, हॉस्पिटैलिटी, मीडिया एंड एंटरटेनमेंट और एफएमसीजी तक फैल गया.

सहारा इंडिया का एक दौर ऐसा भी आया जब वह देश में रेलवे के बाद दूसरी सबसे बड़ी एम्प्लॉयर बन गई. कंपनी के कर्मचारियों की संख्या 12 लाख तक पहुंच गई. देश की क्रिकेट से लेकर हॉकी टीम तक की प्राइम स्पॉन्सर सहारा इंडिया थी. ये सब सहारा ने हासिल किया बिना शेयर बाजार में लिस्ट किए. फिर आया साल 2009, जब सहारा अपने एक रियल एस्टेट वेंचर ‘सहारा प्राइम सिटी’ को लिस्ट कराने के लिए सेबी के द्वार पहुंचा.

यहीं से सहारा मार्केट रेग्युलेटर सेबी की नजर में आ गई. कंपनी के पेपर्स की जांच के दौरान सेबी ने पाया कि सहारा ने बिना नियमों का पालन करे करीब 3 करोड़ लोगों से पैसा जुटाया है. जबकि सेबी के नियमों के मुताबिक 50 लोगों से ज्यादा से पैसा जुटाने के लिए कंपनियों को सेबी से अनुमति लेनी पड़ती है. इसके बाद सेबी को दो शिकायतें भी मिली, जिसमें सहारा के कन्वर्टिबल डिबेंचर्स के अवैध होने और उनमें गड़बड़ी होने की बात थी. इसके बाद सहारा पर सेबी ने जांच बैठा दी.

सेबी ने सहारा से अपने सभी इंवेस्टर्स की डिटेल्स मांगी. इस बीच कंपनी के चेयरमैन और एमडी सुब्रत रॉय सहारा देशभर के मीडिया चैनलों पर अपनी सफाई देने लगे और सेबी की जांच को कठघरे में खड़ा करने लगे, क्योंकि उनका कारोबार एक लिस्टेड कंपनी नहीं था. मामला कई महीनों तक खिंचा और नौबत यहां तक आई कि सहारा ने 127 ट्रक में 3 करोड़ इंवेस्टर्स के डॉक्यूमेंट्स सेबी के ऑफिस भेज दिए. असल में इसे सहारा के सेबी को धमकाने वाले रवैये के तौर पर देखा गया.

मामला और आगे बढ़ा और सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने सेबी के पक्ष में फैसला सुनाया और सहारा ग्रुप को सेबी को 24,000 करोड़ रुपए देने के लिए कहा. सहारा ग्रुप इसमें हीला हवाली करने लगा और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने ‘अवमानना’ के मामले में सुब्रत रॉय की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया. यहां भी सुब्रत रॉय ने हाई-वोल्टेज ड्रामा किया और फिर पुलिस को उन्हें लखनऊ से पकड़कर लाना पड़ा. रेग्युलेटर और सुप्रीम कोर्ट से पंगा लेने का नतीजा ये हुआ कि उन्हें 2 साल तक तिहाड़ जेल में रहना पड़ा.

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