Sitare Zameen Par Review : हंसिए, रोइए और सीखिए…जानें कितनी परफेक्ट है आमिर… – भारत संपर्क

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Sitare Zameen Par Review : हंसिए, रोइए और सीखिए…जानें कितनी परफेक्ट है आमिर… – भारत संपर्क
Sitare Zameen Par Review : हंसिए, रोइए और सीखिए...जानें कितनी परफेक्ट है आमिर खान की 'सितारे जमीन पर', पढ़ें रिव्यू

‘सितारे ज़मीन पर’ रिव्यू

बॉलीवुड के ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ आमिर खान अपनी नई फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ के साथ सिनेमाघरों में लौट आए हैं और इस बार वो फिर से अपने उस अंदाज में दिखे हैं जिसके लिए उन्हें ‘पीके’ (PK) और ‘3 इडियट्स’ (3 Idiots) जैसी फिल्मों में खूब सराहा गया था. ये वही आमिर खान हैं, जो एक गंभीर विषय को भी हंसी-मजाक और हल्के-फुल्के अंदाज में दर्शकों के सामने पेश करते हैं. सिनेमा की दुनिया में जब सब बड़ी-बड़ी एक्शन फिल्मों और भव्य ग्राफिक्स के पीछे भाग रहे हैं, वहां आमिर एक बार फिर ‘परफेक्शन’ के साथ एक ऐसी कहानी लेकर आए हैं, जो दिल और दिमाग दोनों को छू जाती है. तो चलिए, इस बार हम भी उनके इस नए ‘परफेक्शन’ को थोड़ा करीब से देखते हैं.

कहानी

गुलशन (आमिर खान) एक फुटबॉल कोच हैं. हाइट से कम लेकिन टैलेंट से भरपूर इस फुटबॉल कोच की कुछ बुरी आदतें भी हैं. इन आदतों के चक्कर में वो बुरे फंस जाते हैं. मामला पुलिस से शुरू होकर कोर्ट तक जाता है. वहां जज साहिबा उन्हें कम्युनिटी सर्विस के तौर पर न्यूरोडाइवर्जेंट लोगों को बास्केटबॉल सिखाने का काम देती हैं. आगे क्या होता है ये जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर ‘सितारे जमीन पर’ देखनी होगी.

जानें कैसी है फिल्म

असल में, इस तरह के सिनेमा की शुरुआत चार्ली चैपलिन ने की थी. वो समाज की कड़वी सच्चाइयों और गंभीर मुद्दों को भी ह्यूमर के साथ दुनिया को दिखाते थे. सोचिए, एक गंभीर बात पर भी लोग हंसें और फिर उस हंसी के पीछे छिपी सच्चाई को समझें यही तो असली जादू है. इस स्टाइल को थोड़े से अलग अंदाज में भारतीय सिनेमा के शोमैन राज कपूर ने भी अपनाया था और अब इस ‘परंपरा’ को आगे बढ़ा रहे हैं हमारे आमिर खान. फिर ‘3 इडियट्स’ में नजर आने वाला पेरेंट्स का प्रेशर हो, ‘तारे जमीन पर’ में डिस्लेक्सिया या ‘पीके’ में अंधविश्वास आमिर ने हमेशा गंभीर विषयों को ऐसे परोसा है कि आम दर्शक भी खुद को उससे जोड़ पाते हैं. ‘सितारे जमीन पर’ भी इसी कड़ी में जुड़ी शानदार फिल्म है. फिल्म एक बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय पर बात करती है, लेकिन इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि दर्शक बोर न हों, बल्कि उनका भरपूर मनोरंजन भी हो. ये वो ‘आमिर खान फॉर्मूला’ है जो शायद ही कभी फेल होता है: ज्ञान को मनोरंजन के लड्डू में लपेट कर खिलाओ! और यकीन मानिए, इस बार का लड्डू भी उतना ही स्वादिष्ट और सेहतमंद है.

निर्देशन और राइटिंग

‘सितारे जमीन पर’ की कहानी फ्रांस की हिट फिल्म ‘चैंपियंस’ (Champions) का हिंदी अडाप्शन है. लेकिन फिल्म के निर्देशक आर एस प्रसन्ना और दिव्या निधि शर्मा ने इस कहानी को भारतीय रंग में ढालकर उसे खूब देसी तड़का भी लगाया है. साथ में दोनों ने पूरी कोशिश की है कि इसका स्वाद बिगड़ न जाए! आर एस प्रसन्ना ने अपनी इस फिल्म में न्यूरोडाइवर्जेंट बच्चों का किरदार निभाने के लिए डाउन सिंड्रोम और ऑटिज्म से पीड़ित कलाकारों को कास्ट किया है. इन एक्टर्स से एक्टिंग कराना आसान बात नहीं थी, लेकिन उन्होंने बड़ी सहजता से इन्हें बड़े पर्दे पर पेश किया है. आमिर खान के साथ मिलकर आर एस प्रसन्ना हमें बताते हैं कि हर ‘अलग’ दिखने वाला इंसान असल में कितना खास होता है. फिल्म में कोई बड़े डायलॉग या ज्ञान की बातें नहीं कही गई हैं.

उदाहरण के तौर पर बात की जाए तो एक सीन है, जहां गुलशन के बारे में बात हो रही है. उनकी खास टीम के एक स्टूडेंट को कोई कहता है कि गुलशन टैलेंटेड तो है, लेकिन इंसान बड़ा बिगड़ा हुआ है और वो स्टूडेंट उन्हें कहता है कि जल्द ही सीख जाएगा. यहां बिना ज्यादा बात किए भी बताया गया है कि कैसे इन बच्चों को सिखाने आया ये कोच खुद ही उनसे बहुत कुछ सीख कर जाता है. फिल्म में शामिल किए गए इस तरह के सीन हो, या फिर “झगड़े में चाहें तुम जीतो या मैं, हारेगा तो हमारा रिश्ता ही’ जैसे डायलॉग, ये फिल्म खत्म होने के बाद भी हमारे साथ रह जाते हैं.

एक्टिंग

फिल्म में आमिर इस फिल्म में एक ऐसे कोच के किरदार में हैं जो परफेक्ट नहीं है, बल्कि इंसानी गलतियों से भरा हुआ है. वो गुस्से वाला है, थोड़ा चिड़चिड़ा है, और जिंदगी की उलझनों से जूझ रहा है. हमेशा की तरह आमिर ने अपने इस किरदार को भी इतनी सच्चाई और ह्यूमर के साथ निभाया है कि आप धीरे-धीरे उनके साथ जुड़ते चले जाते हैं. इस इम्पेर्फेक्ट किरदार में भी वो परफेक्ट लगते हैं.

फिल्म की असली जान ये 10 न्यूरोडाइवर्जेंट कलाकार हैं. वो सिर्फ एक्टिंग नहीं कर रहे, ये अपनी जिंदगी को पर्दे पर जीते हैं. चाहे वो ऋषभ जैन हों जो फ्रैजाइल एक्स सिंड्रोम से जूझते हुए भी अपने ‘राजू’ किरदार में कमाल का ह्यूमर लाते हैं, या गोपी कृष्णन वर्मा जो डाउन सिंड्रोम के साथ ‘गुड्डू’ बनकर दर्शकों का दिल जीत लेते हैं. उनका हर एक्सप्रेशन, हर रिएक्शन इतना सच्चा है कि आपको पल भर में उनसे प्यार हो जाएगा. उनकी सहजता, उनकी मासूमियत और उनकी बिना बनावट वाली हंसी आपको बांधे रखती है. ये कलाकार बताते हैं कि ‘एक्टिंग’ सिर्फ ट्रेनिंग से नहीं बल्कि दिल से की जाती है. जेनेलिया देशमुख के साथ बाकी किरदारों ने भी अपनी भूमिका को न्याय दिया है.

देखें या न देखें?

अगर फिल्म में किसी कमी की बात करें, तो शायद म्यूजिक के मामले में फिल्म थोड़ी कमजोर है. फिल्म के गाने उतने यादगार नहीं बन पाए हैं जितने आमिर की पिछली कुछ सुपरहिट फिल्मों में रहे हैं. जैसे, बिरयानी में सब कुछ परफेक्ट हो, लेकिन नमक थोड़ा कम हो जाए तो स्वाद में फर्क आ ही जाता है! लेकिन इस छोटी सी कमी को छोड़कर, ‘सितारे जमीन पर’ एक बेहतरीन और दिल को छू लेने वाली फिल्म है.

जिन्हें हमारे समाज में अक्सर बिना सोचे-समझे ‘पागल’, ‘मेंटल’, या ‘अलग’ कहकर किनारे कर दिया जाता है. उन्हें देखकर लोग मुंह मोड़ लेते हैं, जिनकी क्षमताओं को अक्सर नजरअंदाज किया जाता है, जिन्हें लोग इंसान नहीं, बल्कि चलती-फिरती ‘समस्या’ मानते हो उनको लेकर फिल्म बनाना आसान तो नहीं था, लेकिन आमिर खान और कंपनी ने उसे कर दिखाया है. ये फिल्म आपको हंसाएंगी, आपको रुलाएगी, और सबसे बढ़कर, आपके नजरिए को बदल देगी. ‘सितारे जमीन पर‘ आपको सिखाएगी कि ‘नॉर्मल’ क्या है, ये सवाल खुद से पूछो, दूसरों से नहीं.

अगर आप आमिर खान के पुराने अंदाज को मिस कर रहे थे, और एक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो आपको हंसाए, रुलाए और साथ ही एक खूबसूरत संदेश भी दे, तो ये फिल्म आपके लिए है. थिएटर में जाकर इस ‘रियलिटी चेक’ का हिस्सा बनें! यकीन मानिए, इस फिल्म को देखने के बाद आप घर एक नई मुस्कान और एक नए नजरिये के साथ लौटेंगे.

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