एक नेक काम! मेरठ में खुली स्ट्रीट लाइब्रेरी, अब दान कर सकेंगे अपनी कोई भी क… – भारत संपर्क

मेरठ में खुली स्ट्रीट लाइब्रेरी
मेरठ विकास प्राधिकरण (मेड़ा) ने एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला लिया है. नई पीढ़ी किताबों से दूर हो कर स्मार्ट फोन की तरफ बढ़ती नजर आ रही है. ऐसे में स्मार्ट फोन के साथ-साथ किताबें पढ़ने की आदत बनाए रखने के लिए मेड़ा ने पूरे मेरठ शहर में 200 से ज्यादा स्ट्रीट लाइब्रेरी लगाने का संकल्प लिया है. शुक्रवार को इसकी शुरूआत मेड़ा की अध्यक्ष और मेरठ मंडल की कमिश्नर कार्यालय से की गई.
सबसे पहले इस लाइब्रेरी का उद्घाटन कमिश्नर सेल्वा कुमारी के कार्यालय से की गई. इसके साथ-साथ उन मध्यम वर्गीय छात्रों के लिए भी एक प्रयास किया जा रहा है जो कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं और हर साल नई किताबें और राइटिंग बुक्स लेने में मोटे पैसे खर्च करते हैं. मेरठ प्रशासन ने सीनियर छात्रों से अपने जरूरतमंद जूनियर छात्रों को इस्तेमाल हुई सिलेबस की किताबें और एक्स्ट्रा नोट बुक्स को कबाड़ियों को न दे कर डोनेट करने के लिए कहा है. जरूरत मंद छात्र अपनी जरूरत की किताबें अब इन स्ट्रीट लाइब्रेरी से भी ले सकते हैं.
कोई भी किताब कर सकेंगे डोनेट
इतना ही नहीं स्ट्रीट लाइब्रेरी में लोग हर तरह की इस्तेमाल हुई किताबों को डोनेट कर सकते हैं उसमें चाहे कोई नोवेल हो, कोई कानून के ज्ञान की किताब हो या फिर किसी छात्र के सिलेबस की किताब ही क्यों न हो. इस तरह की स्ट्रीट लाइब्रेरी को पूरे मेरठ शहर के 200 से ज्यादा स्थानों पर खोला जा रहा है और ये खुले आसमान के नीचे हर किसी की निगाहों के सामने रहेगी. इसमें एक स्टैंड और बड़ा बॉक्स लगाया जाएगा जिसमें कोई भी किसी भी तरह की किताबें डोनेट कर सकेगा.
ज़रूरतमंद छात्रों की भी होगी मदद
मेड़ा के उपाध्यक्ष अभिषेक पांडे ने बताया कि ये स्ट्रीट लाइब्रेरी पूरे शहर में खोली जाएगी और इस लाइब्रेरी में खास बात ये है कि इसमें कभी ताला नहीं लगाया जाएगा जिसको जिस समय जरूरत होगी उस समय किताब ले सकता है. उन्होंने बताया कि इससे लोगों की रीडिंग हैबिट डिवेलप होगी. वहीं, कमिश्नर सेल्वा कुमारी ने कहा कि आजकल युवा फोन पर रील्स देखते हैं जिससे कुछ खास ज्ञान नहीं मिलता, इसलिए स्ट्रीट लाइब्रेरी को खोला जा रहा है ताकि लोग किताबें पढ़ना न छोड़ें, साथ ही छात्रों को भी प्रेरित किया जा रहा है कि वो अपनी सिलेबस की बुक्स कबाड़ी को न देकर डोनेट करें ताकि जरूरतमंद छात्र को ज्यादा खर्चा किताबे और नोटबुक में न करना पड़े.