बिहार चुनाव में कांग्रेस-आरजेडी से अलग हुई JMM, महागठबंधन के लिए कितना बड़ा…

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बिहार चुनाव में कांग्रेस-आरजेडी से अलग हुई JMM, महागठबंधन के लिए कितना बड़ा…
बिहार चुनाव में कांग्रेस-आरजेडी से अलग हुई JMM, महागठबंधन के लिए कितना बड़ा झटका?

JMM ने बिहार चुनाव से बनाई दूरी

बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर स्थिति काफी हद तक क्लियर हो चुकी है. दिवाली के दिन राष्ट्रीय जनता दल ने दूसरे चरण की नामांकन दाखिल करने की मियाद खत्म होने से कुछ घंटे पहले अपने 143 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया. हालांकि सीटों में शेयरिंग को लेकर महागठबंधन में अंत तक कवायद चलती रही और सहमति न बनने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चुनाव लड़ने से ही मना कर दिया. चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान करते हुए पार्टी ने सियासी साजिश करार दिया और इस अपमान का बदला लेने की बात कही.

पड़ोसी राज्य झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) भी बिहार में चुनाव लड़ना चाह रही थी. इसके लिए उसने महागठबंधन से अपने कुछ सीटों की मांग की थी. लेकिन राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस अपने सहयोगी जेएमएम के लिए सीटों की व्यवस्था नहीं कर सकीं, लिहाज नाराजगी दिखाते हुए हेमंत सोरेन की पार्टी ने कल सोमवार बिहार में चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया.

पहले ऐलान फिर किया किनारा

इससे पहले जेएमएम ने 3 दिन पहले शनिवार को बिहार में महागठबंधन से अलग होने का ऐलान करते हुए कहा था कि वह राज्य में अकेले चुनाव लड़ेगी. झारखंड की सीमा से सटी 6 विधानसभा सीटों (चकाई, धमदाहा, कटोरिया, मनिहारी, जमुई और पीरपैंती) पर उम्मीदवार उतारेगी क्योंकि महागठबंधन में सीट बंटवारे पर बातचीत डील नहीं हो सकी. इन सीटों पर 11 नवंबर को दूसरे चरण में वोटिंग होना है.

पार्टी की ओर से यह कहा जा रहा है कि उसकी ओर से यह फैसला आरजेडी और कांग्रेस की सियासी साजिश की वजह से लिया गया है क्योंकि महागठबंधन की ओर से उसे बिहार में चुनाव लड़ने के लिए सीटें नहीं दी गईं. पार्टी के नेता और पर्यटन मंत्री सुदिव्य कुमार ने निराशा जाहिर करते हुए कहा कि उनकी पार्टी झारखंड में कांग्रेस और आरजेडी के साथ गठबंधन की समीक्षा करेगी. साथ ही अपमान का करारा जवाब देगी.

बिहार में नहीं चल रहा JMM का जादू

झारखंड के पर्यटन मंत्री सुदिव्य कुमार ने याद दिलाते हुए कहा कि जेएमएम ने साल 2015 के बिहार चुनाव के दौरान आरजेडी की मदद की थी. हमारी पार्टी ने 2019 के झारखंड चुनाव में आरजेडी को 7 सीटें दी थीं और उनका एक ही उम्मीदवार चुनाव जीत पाया और उन्हें झारखंड सरकार में मंत्री भी बनाया गया. उनका कहना है कि 2020 के चुनाव में भी आरजेडी और कांग्रेस ने जेएमएम को 3 सीटें देने का आश्वासन दिया था, लेकिन बाद में पलट गए. इसी तरह पिछले साल झारखंड चुनाव के दौरान जेएमएम ने कांग्रेस, आरजेडी और वाम दलों के लिए सम्मानजनक संख्या में सीटें छोड़ी थीं, लेकिन 2025 के बिहार में चुनाव के दौरान महागठबंधन में जेएमएम को एक बार फिर अपमानित होना पड़ा.

बिहार में महागठबंधन में शामिल झारखंड मुक्ति मोर्चा को सीट के लिए राजी नहीं करने की कोशिश इस गठबंधन के लिए कितना बड़ा झटका है. इस पर पड़ताल की जाए तो 2020 के पिछले चुनाव में 5 सीटों पर जेएमएम ने अपने प्रत्याशी खड़े किए थे. लेकिन उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. जेएमएम का असर झारखंड की सीमा से सटे बिहार के जिलों किशनगंज, बांका, कटिहार, जमुई और भागलपुर में माना जाता है, इन इलाकों में बड़ी संख्या में संथाल और आदिवासी वोटर्स हैं. इस चुनाव में जेएमएम के वोट शेयर मात्र 0.2% मिला, यानी लगभग 25,213 वोट मिले थे. एक प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा था.

तो किसको मिलेगा हटने का फायदा

इससे पहले साल 2015 के चुनाव में जेएमएम ने 32 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे तब उसे महज 0.3 फीसदी यानी 1,03,940 वोट मिले थे. एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी जबकि 4 सीटों पर उसके प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे थे. हालांकि 2010 के चुनाव में जेएमएम ने 41 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे जिसमें एक सीट पर जीत हासिल हुई. उसे कुल 0.6 फीसदी वोट यानी 1,76,400 वोट मिले थे.

हालांकि माना जा रहा है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के चुनावी जंग से बाहर होने का फायदा महागठबंधन को ही मिलेगा क्योंकि अगर ये चुनाव में उतरती तो आदिवासी बहुल क्षेत्रों में वोट काटने का काम करती. साथ ही महागठबंधन के लिए चुनाव मैदान में उतरने से पहले टूट की किसी भी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा. अगर टूट होती तो चुनाव से पहले उसके लिए असहज स्थिति होती. जेएमएम के मैदान से हटने से संभवत एनडीए को थोड़ा झटका लग सकता है क्योंकि उसे यह उम्मीद रही होगी कि अगर प्रत्याशी खड़ा करती तो कुछ न कुछ वोट काटती ही काटती.

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