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बीएनएस के अस्तित्व में आने के बाद हाईटेक प्रैक्टिस की शुरुआत, जेल में निरुद्ध बंदियों की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की जा रही ट्रायल्स

कोरबा। अंग्रेजों के जमाने की कानून व्यवस्था भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की स्थापना 1860 में हुई थी। जिसे ब्रिटिशर्स ने लागू किया था। अब इसका स्थान भारतीय न्याय संहिता(बीएनएस) ने ले लिया है। जिसे 1 जुलाई 2024 से लागू किया जा चुका है। आईपीसी और बीएनएस में कई मूल अंतर हैं। बीएनएस के अस्तित्व में आने के बाद न्यायपालिका में भी हाईटेक प्रैक्टिस की शुरुआत हुई है। बदलते समाज और परिवेश के अनुसार न्यायपालिका का भी आधुनिकीकरण हुआ है। इन्हीं में से एक हाईटेक प्रैक्टिस की शुरुआत अब कोरबा के जिला जेल और न्यायालय के मध्य शुरू हो चुकी है। जेल में निरुद्ध सभी आरोपियों के ट्रायल्स अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की जा रही है। इसका असर यह हुआ की 230 की क्षमता वाले जिला जेल में अक्सर 300 से भी अधिक बंदी/कैदी निरुद्ध रहते थे। वर्तमान में इनकी संख्या 195 रह गई है। जेलर भी खुद यह मानते हैं की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ट्रायल्स में तेजी आने के कारण बंदियों की संख्या घटी है। बीएनएस के लागू होने के बाद कई हाईटेक प्रैक्टिस का प्रयोग न्यायपालिका और पुलिसिंग के प्रणाली में किया जा रहा है। जिला जेल और न्यायालय के कोर्ट रूम में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की व्यवस्था की गई है। हाईकोर्ट के निर्देश पर व्यस्थाओं को दुरुस्त किया गया है। जिसके तहत अच्छे नेटवर्क और उच्च स्तरीय इक्विपमेंट्स जेल और कोर्ट दोनों जगह इंस्टॉल किए हैं। ट्रायल के समय किसी तरह की बाधा उत्पन्न न हो ये कोशिश है। जानकारी के अनुसार यह व्यवस्था इतनी हाईटेक है की बंदी यदि चाहे तो जेल के वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कमरे से ही वह गवाह द्वारा दर्ज किए जाने वाले बयान को भी पढ़ सकते हैं। हालांकि इसमें लगातार और भी सुधार हो रहा है। बीएनएस के अस्तित्व में आने से ट्रायल्स वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही किया जा रहे हैं। हाई कोर्ट के निर्देश पर जिला जेल में सर्व सुविधायुक्त हाईटेक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग रूम बनाए गए हैं। इसके कई तरह के फायदे हैं। आरोपी को न्यायालय तक लाने ले जाने में जो व्यय होता था, उसमें कमी आई है। कई बार बंदी चकमा देकर फरार हो जाते थे। इस तरह की घटनाएं अब लगभग समाप्त होने के कगार पर हैं। बंदी जब कोर्ट जाते थे, तब वापस लौटते वक्त किसी तरह का संक्रमण लेकर वापस जेल में आने का डर रहता था। खासतौर पर कोविड के दौरान हमने इस तरह की समस्या झेली। अब ऐसी समस्या नहीं हो रही है। ट्रायल्स में तेजी भी आई है। जिला जेल कोरबा में ही 300 से अधिक बंदी/कैदी हर समय मौजूद रहते थे, जबकि क्षमता 230 ही है। वर्तमान में 195 बंदी ही निरुद्ध हैं जो की कुल क्षमता से 35 कम है।
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पक्षकार और वकील के बीच संवाद की बाधा
हाईटेक संसाधनों के प्रयोग और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पेशी के जहां कुछ फायदे हैं, तो इस व्यवस्था में सुधार की बात भी जानकार बताते हैं। जानकार बताते हैं कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ट्रायल्स की व्यवस्था काफी अच्छी है, लेकिन इसे और भी सुदृढ़ किया जाना चाहिए। कई बार ट्रायल्स के दौरान कमजोर कनेक्शन से समस्याएं उत्पन्न होती है। ट्रायल्स के दौरान बाधा होती है। पूर्व में हर पेशी में बंदी को कोर्ट तक लाया जाता था। इस दौरान वकील और पक्षकार की आपस में वार्ता हो जाती थी और रणनीति बनाने में आसानी होती थी। किसी भी पक्षकार को बेल नहीं मिलने का कारण यही होता है कि पक्षकार और वकील के बीच संवाद नहीं हो पाता। सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं हो पता। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जब पेशी हो रही है, तब वकील और पक्षकार की मुलाकात नहीं हो पाती, इसका समय नहीं मिल पाता, इसलिए न्यायालय में एक ऐसा रूम बनाया जाना चाहिए. जहां कम से कम पक्षकार और वकील की अच्छे से बातचीत हो जाए। ताकि कोई भी वकील अपने पक्षकार का पक्ष मजबूती से न्यायालय में रख सके।

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