बसपा की प्रयोगशाला से निकले नेताओं को बनाया मंत्री, क्या है बीजेपी का मायाव… – भारत संपर्क
योगी मंत्रिमंडल के नए चेहरे
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले योगी सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार आखिरकार हो ही गया. राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने मंगलवार को ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान, अनिल कुमार और सुनील शर्मा को मंत्री पद की शपथ दिलाई. योगी कैबिनेट का हिस्सा बने चार नए मंत्रियों में से तीन बसपा की सियासी प्रयोगशाला से निकले हुए नेता हैं. इस तरह बीजेपी ने पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक मायावती के सियासी जमीन को कब्जाने का खास प्लान बनाया है. लोकसभा चुनाव के नजरिए से बीजेपी ने अपने गठबंधन के सहयोगी दलों को साधने के साथ-साथ दलित-अति पिछड़ें-ब्राह्मण समीकरण बनाने की कवायद की है.
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहली बार कैबिनेट विस्तार किया गया है, जिसमें सपा के साथ नाता तोड़कर दलों और नेताओं को समोजित किया गया है. बीजेपी के साथ सुभासपा और आरएलडी का गठबंधन हुआ है. ये दोनों ही दल 2022 में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. बीजेपी ने अब उन्हें अपने साथ मिला लिया है और उन्हें योगी सरकार में हिस्सेदारी भी देने का काम किया है. सुभासपा से ओम प्रकाश राजभर तो आरएलडी कोटे से अनिल कुमार कैबिनेट मंत्री बने हैं. इसके अलावा सपा छोड़कर बीजेपी में आए दारा सिंह चौहान को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है तो सूबे में सबसे अधिक वोटों से जीतने वाले बीजेपी विधायक सुनील शर्मा राज्यमंत्री बने हैं.
बसपा बैकग्राउंड वाले नेता बने मंत्री
योगी कैबिनेट विस्तार में चार नए मंत्रियों को शामिल किया गया है. सुनील शर्मा को छोड़कर बाकी ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान और अनिल कुमार बसपा में रहे हैं. ये कांशीराम की सियासी पाठशाला से निकले हुए नेता हैं, जिनमें राजभर और चौहान अतिपिछड़ी जाति से हैं तो अनिल कुमार दलित समाज से आते हैं. तीनों ने ही बसपा से अपनी सियासी पारी का आगाज किया और पार्टी के हार्डकोर नेता रहे हैं. अनिल कुमार दो बार बसपा के विधायक रहे तो दारा सिंह चौहान सांसद व विधायक ही नहीं मायावती सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.
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ओम प्रकाश राजभर ने बसपा से अलग होने के बाद अपनी पार्टी बना ली और दलित-अतिपिछड़ों की सियासत शुरू कर दी जबकि दारा सिंह चौहान सपा से बीजेपी में शामिल हो गए और अनिल कुमार ने बसपा छोड़कर आरएलडी का दामन थाम लिया. माना जा रहा है कि बहुजन आंदोलन को करीब से समझने वाले तीनों नेताओं को बीजेपी ने मंत्री बनाकर मायावती की सियासी जमीन को हथियाने का बड़ा सियासी दांव चला है. इसकी वजह यह है कि बसपा बैकग्राउंड वाले तीनों ही नेताओं का अपने-अपने समुदाय के बीच मजबूत पकड़ है.
पूर्वांचल से पश्चिम तक साधने का प्लान
बीजेपी ने योगी कैबिनेट विस्तार के जरिए जातीय और क्षेत्रीय समीकरण बनाने की रणनीति अपनाई है ताकि लोकसभा चुनाव में सियासी लाभ उठाया जा सके. बसपा की प्रयोगशाला से निकले दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश राजभर पूर्वांचल से आते हैं जबकि अनिल कुमार पश्चिमी यूपी से हैं. ओम प्रकाश राजभर का पूर्वांचल में राजभर समुदाय के बीच सियासी आधार है तो दारा सिंह चौहान की भी पूर्वांचल में नोनिया समुदाय के बीच पकड़ मानी जाती है. अनिल कुमार जाटव समुदाय से आते हैं, जो बसपा का कोर वोटबैंक है और मायावती इसी समुदाय से हैं.
कांशीराम ने यूपी में दलित और अतिपछड़े समुदाय के बीच सियासी चेतना जगाने के साथ-साथ उन्हें राजनीति के मुख्यधारा में लाने का काम किया था. राजभर और नोनिया समुदाय के लोग एक समय बसपा के मजबूत वोटबैंक हुआ करते थे. राजभर समाज का करीब दो फीसदी तो नोनिया समाज के डेढ़ फीसदी वोट है, लेकिन पूर्वांचल के कई जिलों में किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. 2022 में इन दोनों ही नेताओं के विपक्षी खेमे में जाने का खामियाजा बीजेपी उठा चुकी है, जिसके चलते ही उनकी घर वापसी कराने के साथ-साथ मंत्रिमंडल में जगह दी गई है.
पश्चिम में ब्राह्मण चेहरे सुनील शर्मा को मंत्रिमंडल में शामिल कर ब्राह्मणों को सियासी संदेश देने की कोशिश की है. गाजियाबाद के साहिबाबाद से लगातार दूसरी बार सुनील शर्मा सर्वाधिक वोटों से विधायक बने हैं. पश्चिम यूपी में गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़ में ब्राह्मण वोटर ठीक-ठाक संख्या में है. लोकसभा के चुनावी समीकरण को साधने के मद्देनजर ही सुनील शर्मा को कैबिनेट में शामिल किया गया है. योगी मंत्रिमंडल के विस्तार के पहले तक पश्चिम क्षेत्र से कोई ब्राह्मण मंत्री नहीं था, सुनील शर्मा की मंत्री पद की ताजपोशी होने के बाद भरपाई करने की कोशिश की गई है.
योगी कैबिनेट की सोशल इंजीनियरिंग
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब योगी सरकार में दो उप मुख्यमंत्री, 22 कैबिनेट मंत्री, 14 स्वतंत्र प्रभार (राज्य मंत्री) और 20 राज्यमंत्री सहित कुल 56 मंत्री हैं. इस तरह से योगी कैबिनेट में अभी भी चार मंत्री पद की जगह खाली है. योगी सरकार में अब सामान्य वर्ग से 22 मंत्री, पिछड़ी जाति से 23 मंत्री, दलित समुदाय से 4 मंत्री और एक आदिवासी समुदाय से मंत्री हैं. सामान्य वर्ग में ब्राह्मण 8, ठाकुर 7, वैश्य 3, भूमिहार 2 जबकि खत्री और कायस्थ समाज से एक-एक मंत्री हैं. पिछड़े वर्ग में देखें तो कुर्मी 4, जाट 3, राजभर-निषाद और लोधी समुदाय से दो-दो मंत्री है. गुर्जर, प्रजापति, सैनी, कश्यप, पाल, मौर्य, यादव, साहू और नोनिया जाति से एक-एक मंत्री शामिल है.
मायावती के वोटबैंक को कब्जाने का दांव
बसपा उत्तर प्रदेश की सियासत में 2012 के बाद से लगातार कमजोर होती जा रही है. बसपा के नेता एक के बाद एक साथ छोड़ते जा रहे हैं तो वोटबैंक भी छिड़कता जा रहा है. यूपी में बीजेपी की सियासी जमीन मजबूत होने में भी बीएसपी के वोटबैंक की अहम भूमिका रही है. दलित समुदाय का गैर-जाटव दलित पूरी तरह बीजेपी में शिफ्ट हो चुका है और अब मायावती के साथ उनका अपना सजातीय वोट यानि जाटव समुदाय ही रह गया है. हालांकि, 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा के साथ 65 फीसदी ही जाटव रह गया है जबकि 30 फीसदी जाटव वोट बीजेपी को मिला था और चार फीसदी सपा के हिस्से में आया था.
बीजेपी अब जाटव वोटबैंक को साधने की कोशिश में लगी है, जिसके चलते ही योगी कैबिनेट में दलित समुदाय में सबसे ज्यादा जगह जाटव समुदाय के नेताओं को मिली है. योगी सरकार में चार जाटव समाज के मंत्री हैं. इसके अलावा गैर-जाटव दलित समुदाय के मंत्रियों में एक कोरी, एक खटीक, एक पासी, एक धोबी और एक वाल्मीकि समाज मंत्री हैं. बीजेपी इस तरह से सूबे के सभी 22 फीसदी दलित वोटबैंक पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश में है. ऐसे में बसपा की प्रयोगशाला से निकले हुए नेताओं है, उन्हें बीजेपी अपने साथ ले ही नहीं रही है बल्कि कैबिनेट में भी हिस्सा दे रही है.
बसपा में रह चुके नेताओं को अगर योगी कैबिनेट में देखें तो बृजेश पाठक, लक्ष्मीनारायण चौधरी, जयवीर सिंह, नंद गोपाल नंदी, संजय निषाद, दिनेश प्रताप सिंह और मनोहर लाल मन्नू कोरी हैं. इसके अलावा ओम प्रकाश राजभर, दारा सिंह चौहान और अनिल कुमार को शामिल किया गया है. बृजेश पाठक तो योगी कैबिनेट में डिप्टी सीएम हैं. इससे समझा जा सकता है कि बीजेपी किस तरह से बसपा नेताओं को समायोजित करके यूपी में अपनी सियासी पिच मजबूत करने में लगी है.