मुलायम अपनों को सेट करने के लिए उठाते थे जिम्मेदारी, सियासी दांव से बढ़ा दी… – भारत संपर्क
यूपी की सियासत में मुलायम सिंह यादव का परिवार.
लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के परिवार से इस बार चार लोग सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं. मुलायम ने अपने परिवार के हर उस शख्स को सियासी पारी खेलने का मौका दिया, जिसने राजनीति में आने की रुचि दिखाई. मुलायम ने सिर्फ अपने बेटे-भाई को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया बल्कि भतीजे और बहू को सियासत में लाने का काम किया. 2024 में मुलायम कुनबे से डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव, आदित्य यादव और अक्षय यादव अलग-अलग सीटों से किस्मत आजमा रहे हैं.
समाजवादी पार्टी का गठन करने के बाद मुलायम सिंह ने सैफई परिवार को राजनीति में लाने का काम किया. इसके लिए उन्होंने खुद ही सियासी जमीन तैयार करने का काम किया है. मुलायम सिंह एक साथ दो लोकसभा सीटों से चुनावी मैदान में उतरे और जीतने के बाद एक सीट छोड़ देते थे, जहां से फिर सैफई परिवार को कोई चुनाव लड़ता और जीतकर संसद पहुंचता. इस तरह मुलायम सिंह अपने बेटे अखिलेश यादव से लेकर भाई रामगोपाल यादव, शिवपाल यादव और भतीजे धर्मेंद्र यादव व तेज प्रताप यादव को सियासी तौर पर स्थापित करने का काम किया. इस तरह मुलायम सिंह ने सैफई परिवार के लिए सियासी लांचिंग पैठ तैयार करते.
बता दें कि मुलायम सिंह यादव ने सत्तर के दशक में राजनीति में कदम रखा. 1967 में नत्थू सिंह ने खुद राम मनोहर लोहिया से कह कर मुलायम सिंह यादव को जसंवत नगर सीट से विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाया था. मुलायम सिंह पहली ही बार में कांग्रेस के दिग्गज नेता को मात देने में सफल रहे. 28 साल की उम्र में मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के सबसे युवा विधायक चुने गए. इसके बाद फिर पलटकर नहीं देखा और यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री बने. सपा का गठन 1992 में मुलायम सिंह यादव ने किया और 1996 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा.
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मुलायम सिंह मैनपुरी सीट को अपनी कर्मभूमि बनाया, लेकिन उसके बाद उन्होंने संभल और कन्नौज सीट से अपनी किस्मत आजमाने का काम किया. मुलायम सिंह यादव यहीं तक सीमित नहीं रहे बल्कि पूर्वांचल की आजमगढ़ लोकसभा सीट को भी अपने जद में ले लिया. मुलायम सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में मैनपुरी, संभल, कन्नौज और आजमगढ़ लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया. मुलायम दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ते और जीतने के बाद एक सीट अपने परिवार के सदस्य को सौंप देते.
कन्नौज सीट को अखिलेश के हवाले किया
मुलायम सिंह यादव ने अपने सियासी वारिस के तौर पर अखिलेश यादव यूपी की राजनीति में स्थापित हैं. मुलायम सिंह यादव ने 1999 के चुनाव में संभल और कन्नौज दो लोकसभा सीटों से चुनावी मैदान में उतरे. दोनों ही सीटों से वो जीतने में कामयाब रहे, जिसके बाद उन्होंने संभल सीट को अपने पास रखा और कन्नौज सीट छोड़ दी. इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज सीट से अपने बेटे अखिलेश यादव को चुनावी लड़ाने का काम किया. साल 2000 में अखिलेश यादव ने राजनीति में कदम रखा और कन्नौज लोकसभा सीट से उपचुनाव जीतकर पहली बार देश की संसद में पहुंचे. इसके बाद वो लगातार सांसद रहे. 2012 में अखिलेश यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद कन्नौज सीट छोड़ दी और डिंपल यादव सांसद बनी.
मैनपुरी सीट धर्मेंद्र-तेज प्रताप को सौंपी
मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी लोकसभा सीट से पांच बार चुनावी मैदान में उतरे और हर बार जीतने में कामयब रहे. 1996 में पहली बार चुनाव लड़े थे, जहां से जीतने में सफल रहे. इसके बाद 2004, 2009, 2014 और 2019 में मैनपुरी सीट से सांसद चुने गए. 2004 में सांसद रहते हुए यूपी के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने मैनपुरी लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़े और जीतने में सफल रहे. इसी तरह 2014 में मुलायम सिंह यादव मैनपुरी और आजमगढ़ सीट से किस्मत आजमाया और दोनों ही सीटों से जीतने में सफल रहे.
मुलायम सिंह ने बाद में मैनपुरी सीट छोड़ दी, जहां से उनके भतीजे तेजप्रताप यादव चुनाव लड़े और जीतकर सांसद बने. हालांकि, 2019 में मुलायम सिंह फिर से मैनपुरी सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो तेज प्रताप ने छोड़ दिया. 2022 में मुलायम सिंह के निधन के बाद मैनपुरी सीट से डिंपल यादव उपचुनाव में सांसद चुनी गई. अब दोबारा से मैनपुरी सीट से चुनावी मैदान में डिंपल यादव उतरी हैं.
संभल सीट रामगोपाल यादव को दिया
मुलायम सिंह यादव ने 1996 में मैनपुरी सीट से चुनाव लड़े, लेकिन 1998 संभल लोकसभा सीट को अपनी कर्मभूमि बनाया. इसके बाद उन्होंने लगातार दो बार संभल सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने, लेकिन 2004 में संभल सीट छोड़कर मैनपुरी से लड़ने का फैसला किया. इसके चलते संभल सीट उन्होंने अपने चचेरे भाई प्रो. रामगोपाल यादव को सौंप दी. रामगोपाल पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े और संभल से जीत दर्ज करने में सफल रहे. इस तरह मुलायम सिंह ने रामगोपाल के लिए सियासी जमीन तैयार कर दिया था.
आजमगढ़ में मुलायम के बाद अखिलेश
मुलायम सिंह यादव ने 2014 में मैनपुरी के साथ आजमगढ़ सीट से चुनाव लड़े थे और जीतने में कामयाब रहे. 2019 में मुलायम ने आजमगढ़ के बजाय मैनपुरी सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो आजमगढ़ सीट से अखिलेश यादव चुनाव लड़े. इसके पहले मुलायम कुनबे के कोई भी आजमगढ़ सीट से चुनाव नहीं लड़ा था. मुलायम सिंह के बाद अखिलेश यादव आजमगढ़ सीट जीतने में कामयाब रहे, लेकिन 2022 में अखिलेश ने जब लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दिया. इसके चलते उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. अब फिर से धर्मेंद्र यादव को सपा ने आजमगढ़ सीट से चुनावी मैदान में उतारा है.
फिरोजाबाद सीट अक्षय यादव को मिली
अखिलेश यादव 2009 में कन्नौज के साथ-साथ फिरोजबाद सीट से भी किस्मत आजमाया और दोनों सीटों से जीतने में कामयाब रहे. इसके चलते उन्होंने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी और उपचुनाव में अपनी पत्नि डिंपल यादव को टिकट दिया. हालांकि, डिंपल को कांग्रेस के राज बब्बर से हार का सामना करना पड़ा. 2014 में फिरोजाबाद सीट से अखिलेश यादव ने रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को टिकट दिया, जहां से वो जीत दर्ज किया. हालांकि, 2019 में शिवपाल यादव के चुनावी मैदान में उतरने से अक्षय यादव हार गए. अब फिर से फिरोजाबाद से अक्षय मैदान में उतरे हैं.
बदायूं से धर्मेंद्र के बाद आदित्य की बारी
बदायूं लोकसभा सीट मुलायम परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है, जहां से सैफई परिवार के धर्मेंद्र यादव पहले सदस्य थे, जिन्होंने 2009 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े थे. धर्मेंद्र 2009 और 2014 में बदायूं सीट से जीतने में कामयाब रहे, लेकिन 2019 में बीजेपी के हाथों हार गए. सपा ने इस बार धर्मेंद्र को टिकट दिया था, लेकिन बाद में काटकर शिवपाल यादव को प्रत्याशी बनाया दिया. शिवपाल ने अपनी जगह अपने बेटे आदित्य यादव को अब बदायूं से प्रत्याशी बनाया गया है. आदित्य पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं.
शिवपाल यादव 1996 से लगातार इटावा जिले की जसवंतनगर विधानसभा सीट से विधायक हैं. शिवपाल से पहले इस सीट से मुलायम सिंह चार बार विधायक रहे थे. इस तरह शिवपाल के लिए भी सियासी जमीन मुलायम सिंह यादव ने तैयार करके दी है. हालांकि, मुलायम ने अपने कुनबे के जिन सदस्यों के लिए सियासी लांचिंग के लिए जमीन तैयार करके सौंपी है, उनमें ज्यादातर सीटें यादव और मुस्लिम बहुल मानी जाती है. फिर चाहे संभल रही हो या कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद और आजमगढ़ हो, यहां पर यादव और मुस्लिम समीकरण जीत की गारंटी माना जाता है.