मुसलमानों को ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए… शाह बानो पर बनी ‘HAQ’ की रिलीज से पहले… – भारत संपर्क

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मुसलमानों को ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए… शाह बानो पर बनी ‘HAQ’ की रिलीज से पहले… – भारत संपर्क
मुसलमानों को ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए... शाह बानो पर बनी 'HAQ' की रिलीज से पहले बोले इमरान हाशमी

इमरान हाशमी की फिल्म ‘हक’

Emraan Hashmi On Haq Movie:यामी गौतम, इमरान हाशमी, शीबा चड्ढा और वर्तिका सिंह जैसे कलाकारों वाली फिल्म ‘हक’ का सोमवार को ट्रेलर लॉन्च किया गया. ये फिल्म साल 1985 के ऐतिहासिक और विवादास्पद शाह बानो केस पर आधारित है. इसमें यामी ने शाह बानो का किरदार निभाया है, वहीं इमरान ने उनके पति मोहम्मद अहमद खान का. फिल्म के ट्रेलर लॉन्च इवेंट के दौरान इमरान हाशमी से सवाल हुआ कि क्या एक मुस्लिम के तौर पर उन्हें इस फिल्म को करने में कोई बोझ या जिम्मेदारी का एहसास हुआ?

हक‘ ट्रेलर लॉन्च में हुए इस सवाल पर इमरान हाशमी ने खुलकर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, “इस फिल्म में पहली बार मुझे एक मुसलमान का नजरिया भी लाना पड़ा. उस वक्त जो लैंडमार्क केस था, पूरा देश दो हिस्सों में बंट गया था. एक था धर्म और व्यक्तिगत आस्था की तरफ और एक संवैधानिक अधिकारों और सेक्युलर अधिकारों की तरफ. मुझे ये देखना था कि क्या इस फिल्म में डायरेक्टर और लेखक का नज़रिया बैलेंस है? निष्पक्ष है? तटस्थ है? तो उसका एक छोटा सा जवाब है, हां. ये बहुत तटस्थ फिल्म है.”

हर मुसलमान से फिल्म देखने की अपील की

इस दौरान इमरान ने कहा कि ये फिल्म हर मुसलमान को देखनी चाहिए. नो कहते हैं, “फिल्म देखकर जब लोग बाहर आएंगे तो मुझे नहीं पता कि उनका ओपिनियन क्या होगा. पर मैं ये जानता हूं कि उनमें से अधिकतर लोगों को ये फिल्म बेहद बैलेंस लगेगी. एक जो चीज़ निकलकर बाहर आती है, वो ये है कि ये प्रो वुमेन फिल्म है…मेरे समुदाय के लिए, मुझे लगा कि ये एक लिबरल मुस्लिम के नजरिए से, एक शानदार काम किया गया है. पूरी टीम ने अच्छी फिल्म बनाई है. मुसलमानों को आना चाहिए और ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए. क्योंकि आप इससे बेहद अलग तरह से जुड़ेंगे.”

शाह बानो केस पर बेस्ड है फिल्म

‘हक’ शाह बानो केस पर बनाई गई है. अहमद खान ने शाह बानो को तलाक दे दिया था. निचली अदालतों से होता हुआ ये मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जहां 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो की गुजारा भत्ते की मांग को सही मानते हुए उनके पक्ष में फैसला सुनाया था. हालांकि भारी विरोध के चलते तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने कोर्ट के फैसले को पलट दिया था और गुजारा भत्ते की अवधि ‘इद्दत’ (तलाक के बाद करीब तीन महीने तक) तक सीमित कर दी थी.

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