ब्राह्मण नहीं यहां 14 यादव कथावाचक, पूजा-पाठ से लेकर कर्मकांड तक सब कुछ इन्… – भारत संपर्क

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ब्राह्मण नहीं यहां 14 यादव कथावाचक, पूजा-पाठ से लेकर कर्मकांड तक सब कुछ इन्… – भारत संपर्क

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में यादव कथावाचक प्रकरण के बाद एक तरफ जहां इस मसले पर जमकर सियासत हो रही है तो वहीं यह विवाद भी जोर पकड़ रहा है कि आखिर कथावाचक गैर ब्राह्मण कर सकता है या नहीं. प्रयागराज जिले का एक गांव ऐसा है, जहां इस विवाद के लिए कोई जगह नहीं है. वजह भी रोचक है. बहरिया क्षेत्र में कथावाचकों से जुड़ा एक बोर्ड सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस बोर्ड पर पूजा-पाठ और संस्कार करने वाले गैर ब्राह्मण आचार्यों के नाम और उनकी जाति, पहचान लिखी गई है.
बोर्ड पर लिखा गया है, “शादी-विवाह, गृह प्रवेश, जन्म-मृत्यु संस्कार करवाने वाले आचार्यों के नाम व मोबाइल नंबर. श्री सुभाष चंद्र यादव, श्री राम बाबू मौर्य, श्री हरीशचंद्र यादव और विजय मौर्य.” इस गांव का नाम है सिधौली, जहां हर दूसरा घर गैर ब्राह्मण कथावाचक से भरा पड़ा है. कथावाचक अपने नाम के आगे यादवाचार्य लिखते हैं.

गांव के ही यादवाचार्य हरिश्चंद्र यादव कहते हैं कि पिछले 20 वर्षों से वह उनके जैसे 14 गैर ब्राह्मण के यहां कर्मकांड, अनुष्ठान और सत्यनारायण की कथा करा रहे हैं, लेकिन किसी को कोई एतराज कभी नहीं हुआ. कथा वाचकों में यादव के अलावा मौर्य जाति के लोग भी हैं.

भागवत कथा से बना रखी है दूरी
यादवाचार्य हरिश्चंद्र यादव के घर-घर की दीवार पर स्वास्तिक, शुभ लाभ और ॐ के चिन्ह अंकित हैं. घर के सामने भगवान शिव का मंदिर है और तुलसी का पौधा लगा है. उनका कहना है कि उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की डिग्री भी ली है. इसलिए उन्हें कर्मकांड का ज्ञान है. वह सभी कर्मकांड कराते हैं, लेकिन भागवत कथा नहीं कराते. भागवत कथा के लिए जो निपुणता और शास्त्रीय योग्यता होनी चाहिए, उसे वह अपने अंदर नहीं पाते. इसलिए भागवत की कथा वह नहीं करते. सत्यनारायण की कथा अवश्य कभी-कभी करते हैं.
ब्राह्मण नहीं हैं इनके यजमान
एक और रोचक बात यह भी है कि यह गैर ब्राह्मण कथावाचक सभी अनुष्ठान और कर्मकांड संपन्न करते हैं, लेकिन इनका कोई भी यजमान ब्राह्मण जाति से नहीं आता है. यादव आचार्य हरिश्चंद्र यादव बताते हैं कि इसकी वजह यह है कि ब्राह्मण खुद ही इन कर्मकांडों और कथा में निपुण होते हैं. इसलिए उन्हें किसी और जाति के कथावाचकों या अनुष्ठान करने वालों की जरूरत ही नहीं है.

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