हाथी प्रभावित इलाकों में धान की सुरक्षा बनी चुनौती, उठाव…- भारत संपर्क

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हाथी प्रभावित इलाकों में धान की सुरक्षा बनी चुनौती, उठाव नहीं होने से धान पड़ा है जाम

कोरबा। उठाव नहीं होने से किसानों से खरीदा जा रहा पूरा धान फड़ में पड़ा हुआ है। ऐसे में धान की सुरक्षा बड़ी चुनौती बनती जा रही है। एक ओर हाथियों का भय बना हुआ है तो दूसरी ओर बेमौसम बारिश का खतरा भी मंडरा रहा है। धान की मात्रा ज्यादा होने से सभी धान को बारिश से बचाने लायाक तिरपाल समेत अन्य संसाधन भी कम पड़ जाएंगे। ऐसे में जल्द से जल्द उठाव ही पहला समाधान होगा। पिछले एक सप्ताह से 50 से करीब हाथियों का झुंड करतला रेंज के बोतली, पिडिया और नवापारा के जंगल के आसपास ही विचरण कर रहा है। बोतली और पिडिया में लगातार मकानों और फसलों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। समितियों के लोगों ने बताया कि फड़ की रखवाली के लिए अलाव, मशाल के अलाव दो से तीन ट्रैक्टरों को भी रात में फंड में खड़े रख रहे हैं ताकि अगर हाथी इस ओर पहुंच जाएंगे तो ट्रैक्टर चलने की तेज और हेडलाइट की रोशनी से हाथी करीब आने से डरेंगे। इतना ही नहीं रात में ट्रैक्टरों से फड़ के चारों ओर आसपास चक्कर भी लगाते हैं ताकि आवाज सुनकर हाथी इस ओर न पहुंचे। धान को बचाने तरह-तरह के जतन करने पड़े रहे हैं। कोरबा वनमंडल के करतला रेंज में हाथियों की मौजूदगी से लोगों में दशहत बनी हुई है। रेंज के बोतली, पिडिया, सूईआरा समेत जंगल के सटे गांवों में हाथियों का झुंड पिछले दस-12 दिनों से विचरण कर रहा है और रात होते ही इन इलाकों में पहुंचकर फसलों और मकानों को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे एक ओर ग्रामीण जहां अपनी जान-माल को लेकर चिंतित है तो दूसरी ओर इस क्षेत्र के धान उपार्जन केंद्रों के प्रभारियों की भी नींद उड़ी हुई है। बोतली से करीब 4-5 किमी दूर नवापारा धान उपार्जन केंद्र हैं जहां वर्तमान में 9 हजार क्विंटल धान की खरीदी हो चुकी है और धान का उठाव नहीं होने से पूरा धान फड़ में जाम है। ऐसे में समितियों के लोगों को हर रात चिंता सता रही है कि हाथियों का झुंड अगर इस ओर पहुंच गया तो क्या करेंगे। इसके कारण रात होते ही समितियों के लोग सुरक्षा पहरा के साथ चारों ओर लाइट जलाकर और आग जलाकर रख रहे हैं। रोशनी व आग देखकर हाथी उस ओर जल्दी से नहीं पहुंचते। अलाव जलाकर रतजगा कर रहे हैं। हालांकि भले ही इस तरह रतजगा कर सुरक्षा कर रहे हैं लेकिन हाथियों का झुंड अगर पहुंच जाएगा तो इतने उपाय भी शायद काम नहीं आएंगे। समितियों के प्रभारियों का कहना है कि उठाव नहीं होने से और ज्यादा परेशानी हो रही है। नियमित उठाव होता रहता तो इतना धान केंद्रों में रहता ही नहीं।

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