Rajgarh News: कठिन तपस्या के बाद पेड़ से प्रकट हुईं थीं मां, फिर किए कई चमत… – भारत संपर्क

मां जालपा देवी दर्शन
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिला मुख्यालय से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर ऊंची पहाड़ी पर विराजित है अति प्राचीन मां जालपा देवी. मां जालपा देवी प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है जो ग्यारह सौ साल से भी अधिक पुराना है. बताया जाता हैं कि सदियों पूर्व तपस्वी ज्वाला प्रसाद ने यहां तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर मां पीपल के पेड़ से प्रकट हुईं थीं. इसके बाद वह एक चबूतरे पर स्थापित हुईं थीं.
जब जालपा मां यहां पर प्रकट हुईं थीं, उस वक्त क्षेत्र में भील राजा का शासन हुआ करता था. जालपा माता उनकी आराध्य देवी थीं. बताया जाता है कि भील राजा व उनके बाद शासित राजाओं ने मां को मन्दिर में विराजित करने के कई बार प्रयास किए पर दीवार बनते ही गिर जाया करती रहती थी. मां सदियों तक एक ओटले पर ही विराजित रहीं. राजाओं के शासन जाने के बाद भक्तों द्वारा काफी सालों बाद मंदिर बनवाकर उसमें माता को विराजित किया गया.
हर मनोकामना होती है पूरी
यहां मध्यप्रदेश के अलावा अन्य प्रांतों से भी भक्त नवरात्री पर्व पर अपनी मनोकामनाएं पूरी करने आते हैं. मां जालपा देवी मंदिर पर पाती के लग्न लिखे जाते हैं यानी जिसकी शादी का मुहूर्त नहीं निकलता वह यहां से पाती के लग्न का मुहूर्त निकलवाकर विवाह करता है. विवाह के बाद वर व वधु आकर यहां मां के दर्शन करते हैं. कहा जाता है कि मां के दरबार मे मांगी गई मन्नत जरूर पूरी होती है. मनोकामना पूरी होने पर भक्त यहां आकर मां की पूजा अर्चना करते हैं.
भक्त निकालते हैं चुनरी यात्रा
भक्त यहां पर श्रद्धानुसार भंडारे का आयोजन करते हैं. भक्तों की माने तो नवरात्री पर्व पर मां के साक्षात रूप में यहां रहने का आभास होता है. रात में कई बार शेर के दहाड़ने जैसी आवाजें भी सुनी गईं हैं. नवरात्री पर्व पर हिंदू चेतना मंच द्वारा पिछले कई सालों से एक हजार एक सौ ग्यारह मीटर चुनरी यात्रा का आयोजन किया जाता है. जिसमें हजारों की संख्या में भक्त चुनरी यात्रा में पहुंच कर करीब दस किलोमीटर की पैदल यात्रा कर मां को चुनरी चढ़ाते हैं.
चुनरी चढ़ाने की यह परंपरा को पूरा करने के लिए नवरात्री के पूर्व से तैयारी की जाती है और घर-घर आमंत्रण भेज नवरात्री में निर्धारित दिन पर लोग इकट्ठा होकर चुनरी ले जाते हैं और माता को अर्पित करते हैं. इस यात्रा का स्वागत सभी समाजों के लोग जगह जगह करते हैं. करीब चार पांच घंटे की इस यात्रा में महिलाएं, बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी शामिल होते हैं.