study batati hai ki skin biopsy bhavishya me hone wale parkinson’s disease…
अध्ययन बताते हैं कि स्किन भी भविष्य में होने वाले पार्किंसंस और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों के बारे में बता सकती है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ता बताते हैं कि सिंपल स्किन बायोप्सी उस असामान्य प्रोटीन का पता लगा सकती है, जो पार्किंसंस रोग और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों का हॉलमार्क है।
नर्व पूरे शरीर में फैले होते हैं। सेंसरी नर्व हमारी स्किन में भी मौजूद होते हैं। हमारे शरीर को किसी तरह का कोई कष्ट या बीमारी होती है, तो नर्व यह संदेश स्किन तक पहुंचा देते हैं। हाल का एक अध्ययन बताता है कि स्किन बायोप्सी भविष्य में होने वाले अल्जाइमर और पार्किंसन के बारे में बता सकता है। स्किन बायोप्सी असामान्य प्रोटीन के माध्यम से इस बारे में बता सकती है। सिंपल स्किन बायोप्सी असामान्य प्रोटीन का पता लगा सकती है, जो पार्किंसंस रोग (skin biopsy for parkinson’s disease)और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों की पहचान कराती है।
क्या है शोध (research on skin biopsy)
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं के नेतृत्व वाली एक टीम के अनुसार, एक साधारण स्किन बायोप्सी असामान्य प्रोटीन का विश्वसनीय रूप से पता लगा सकती है। यह प्रोटीन पार्किंसंस और उससे संबंधित कई अन्य बीमारियों के पैथोलॉजिकल हॉलमार्क के रूप में कार्य करता है। यह शोध जर्नल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) में भी प्रकाशित हुआ।
यह अध्ययन इस बात का सबूत पेश करता है कि न्यूनतम इनवेसिव स्किन टेस्ट बीमारियों का पहले पता लगाने और सटीक रूप से अंतर करने में मदद कर सकता है। वर्तमान में ऐसी कोई चिकित्सा नहीं है, जो इन बीमारियों की जड़ों का पता लगाती हो। नए निष्कर्ष यह ऐसे उपचारों को गति दे सकते हैं, जिससे बीमारी का जल्दी पता चल सकेगा और इलाज हो पायेगा।
असामान्य अल्फा-सिन्यूक्लिन प्रोटीन (Abnormal protein for Parkinsons)
किसी मरीज के शरीर में कंपकंपी के लक्षण या बढ़ती विकलांगता दिखाई पड़ सकती है। चिकित्सक पार्किंसंस या अन्य कई न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों में से किसी एक के होने का संदेह करते हैं। इन स्थितियों को सिन्यूक्लिनोपैथिस के रूप में जाना जाता है।इनमें प्रोटीन अल्फा-सिन्यूक्लिन का असामान्य रूप शामिल होता है। अलग-अलग सिन्यूक्लिनोपैथियां अलग-अलग उपचारों पर प्रतिक्रिया करती हैं। उनकी ओवरलैपिंग और निश्चित बायोमार्कर की कमी चिकित्सकों को जल्दी बीमारी का निदान करने और एक को दूसरे से अलग करने की क्षमता को जटिल बनाती है। बीमारियों की जटिलता के कारण अक्सर रोगियों के निदान में देरी होती है या गलत निदान कर दिया जाता है।
स्किन में पी-एसवाईएन का जमाव (skin biopsy)
सभी सिन्यूक्लिनोपैथियों में स्किन के नर्व फाइबर में फॉस्फोराइलेटेड अल्फा-सिन्यूक्लिन या पी-एसवाईएन का जमाव होता है। स्किन की बायोप्सी में शुरुआती पहचान में सुधार करने की क्षमता होती है। पी-एसवाईएन बीमारी के शुरुआती चरणों में भी स्किन में मौजूद होता है।
अध्ययन के अनुसार, शरीर के विभिन्न हिस्सों की स्किन बायोप्सी के माध्यम से पी-एसवाईएन को मापने से पार्किंसंस डिजीज के रोगियों को मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी वाले रोगियों से अलग किया जा सकता है। यह अध्ययन यह दिखाने वाला अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है। इसके अनुसार स्किन बायोप्सी हाई सेंसिटिविटी और विशिष्टता के साथ पी-एसवाईएन का पता लगा सकती है।
न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों की पहचान कराती है (neurodegenerative conditions)
जांच में 40 से 99 वर्ष की आयु के 428 लोगों को नामांकित किया गया। इनके पास चार सिन्यूक्लिनोपैथी में से एक का क्लिनिकल डायग्नोसिस था। लोगों को पार्किंसंस, लेवी बॉडीज, मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी, डिमेंशिया या न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज का इतिहास था। प्रतिभागियों को गर्दन, घुटने और टखने की 3-मिलीमीटर स्किन पंच बायोप्सी से गुजरना पड़ा।
पॉजिटिव स्किन बायोप्सी (Positive skin biopsy)
चिकित्सकीय रूप से पुष्ट किए गए पार्किंसंस रोग वाले प्रतिभागियों में से 93 प्रतिशत में पी-एसवाईएन के लिए पॉजिटिव स्किन बायोप्सी थी। लेवी बॉडीज और मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी के साथ डिमेंशिया से पीड़ित प्रतिभागियों ने क्रमशः 96 प्रतिशत और 98 प्रतिशत पर पॉजिटिव परीक्षण किया। सिंपल स्किन बायोप्सी असामान्य प्रोटीन का पता लगा सकती है, जो पार्किंसंस रोग और अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव स्थितियों की पहचान कराती है।
यह भी पढ़ें :- Double kidney transplant : 78 साल की महिला ने 51 वर्ष की महिला को दान कीं अपनी दोनों किडनियां, एम्स में हुआ ये दुर्लभ किडनी ट्रांसप्लांट