इस देश पर नहीं चलता ट्रंप का जोर, रूस से खरीद रहा 80 फीसदी…- भारत संपर्क

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इस देश पर नहीं चलता ट्रंप का जोर, रूस से खरीद रहा 80 फीसदी…- भारत संपर्क

अमेरिका ने भले ही रूसी तेल खरीदने पर भारत पर भारी-भरकम टैरिफ लगाया है, लेकिन एक NATO सदस्य देश ऐसा भी है, जिसपर ट्रंप की दादागिरी नहीं चल पा रही है. यह देश आज भी प्रतिबंध के बावजूद अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल रूस से खरीद रहा है. ये देश हंगरी है.

हंगरी अपनी 80% से ज्यादा कच्ची तेल की जरूरत रूस से पूरी करता है. इस वजह से वह नाटो का सबसे ज्यादा रूस पर निर्भर देश बन चुका है. हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बान साफ कह चुके हैं कि वे रूस से तेल-गैस खरीदना जारी रखेंगे, भले ही उनके करीबी दोस्त डोनाल्ड ट्रंप उस पर दबाव डाल रहे हों. उन्होंने ट्रंप से साफ कहा कि अगर रूसी ऊर्जा सप्लाई बंद कर दी गई तो हंगरी की अर्थव्यवस्था के लिए यह तबाही होगी.

भारत पर लगाया 50 फीसदी टैरिफ

इस बीच अमेरिका की नीति कुछ और ही कहती है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल और हथियार खरीदने की वजह से 50% तक के भारी टैरिफ लगा दिए. इनमें 25% की सजा उस हर सौदे पर थी जिसका संबंध रूस से था. पश्चिमी देश कहते हैं कि यह पैसा यूक्रेन युद्ध को चला रहा है. भारत ने इन टैक्सों को अनुचित बताया और कहा कि वह अपनी 140 करोड़ जनता की सुरक्षा के लिए जहां भी सस्ता तेल मिलेगा, वहीं से खरीदेगा. विदेश मंत्री एस जयशंकर कई बार कह चुके हैं कि ऊर्जा सुरक्षा को राजनीति के लिए कुर्बान नहीं किया जा सकता.

रूस पर हंगरी की निर्भरता

हंगरी की रूस पर निर्भरता और बढ़ती जा रही है. अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, युद्ध से पहले हंगरी 61% कच्चा तेल रूस से लेता था, जो अब बढ़कर 86% हो गया है. पड़ोसी स्लोवाकिया तो लगभग पूरा तेल रूस से लेता है. दोनों देश आज भी तुर्कस्ट्रीम पाइपलाइन से गैस पा रहे हैं, जबकि यूरोपीय संघ ने 2022 में रूस की ऊर्जा से छुटकारा पाने का वादा किया था.

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ट्रंप ने बताया नाटो की कमजोरी

ट्रंप ने इस मुद्दे को नाटो की कमज़ोरी बताया. संयुक्त राष्ट्र महासभा में उन्होंने कहा, चीन और भारत रूसी तेल खरीदकर युद्ध को फंड कर रहे हैं, लेकिन शर्मनाक बात यह है कि नाटो के देश भी अब तक रूस पर निर्भर हैं. मैंने जब सुना तो मुझे बहुत गुस्सा आया. उन्होंने तंज कसते हुए कहा, ये देश खुद अपने खिलाफ युद्ध को फंड कर रहे हैं. ट्रंप का कहना है कि जब तक सारे नाटो देश मिलकर रूसी तेल खरीदना बंद नहीं करते, तब तक रूस पर पाबंदियों का कोई मतलब नहीं है.

ये है हकीकत

हकीकत यह है कि रूस से तेल खरीदकर हंगरी नाटो की एकता को भी कमजोर कर रहा है. हंगरी का दावा है कि उसके पास कोई और विकल्प नहीं है, लेकिन तीन सालों में विकल्प बनाने का समय था. उसने उल्टा रूस पर निर्भरता और बढ़ा दी और अरबों डॉलर रूस को दिए. नाटो के लिए कड़वा सच यही है कि उसका एक सदस्य रूस की ऊर्जा लाइन जिंदा रखे हुए है.

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