2 शहर-2 स्कूल और दो छात्रों की हत्या… आरोपी नाबालिगों का क्या होगा, क्या … – भारत संपर्क

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2 शहर-2 स्कूल और दो छात्रों की हत्या… आरोपी नाबालिगों का क्या होगा, क्या … – भारत संपर्क

2 शहर, 2 स्कूल और 2 छात्रों की हत्या … बीते 3 दिनों में स्कूलों में हुईं इन घटनाओं ने हिला कर रख दिया है. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के सनबीम स्कूल में नौवीं कक्षा के एक छात्र की हत्या हो या अहमदाबाद के एडवेंटिस्ट हायर सेकेंडरी स्कूल के 10वीं के छात्र का मर्डर, दोनों ही जगह वारदात को स्कूल के छात्रों ने ही अंजाम दिया. 2 छात्रों की हत्याएं स्कूल में चाकू से गोदकर कर दी गईं. हद तो तब हो गई जब उत्तराखंड के उधमसिंह नगर में एक छात्र ने क्लास में स्कूल टीचर को गोली मार दी. इन घटनाओं से लोगों में आक्रोश तो है ही, साथ ही स्कूलों में सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.
छात्र की हत्या के बाद अहमदाबाद में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. स्कूल में घुसकर जमकर तोड़फोड़ की गई. कुछ ऐसा ही गुस्सा गाजीपुर में भी देखने को मिला. लोगों ने स्कूल प्रशासन के खिलाफ सड़क पर प्रदर्शन किया. उत्तराखंड के उधमसिंह नगर में प्राइवेट स्कूलों ने घटना के विऱोध में स्कूल बंद रखे. पीड़ितों के परिजन ऐसे छात्रों को पुलिस से सख्त से सख्त सजा देने की मांग कर रहे हैं. लेकिन आरोपी छात्र हैं. वो नाबालिग भी हैं. ऐसे में उनको क्या सजा मिलेगी, इस पर भी सवाल उठ रहे हैं. टीवी 9 ने इस मसले को लेकर विशेषज्ञों से बात की है. पहले एक-एक कर इन घटनाओं के बारे में जान लेते हैं.

केस 1 – गाजीपुर
सनबीम स्कूल में छात्र की चाकू से गोदकर हत्या
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के महाराजगंज स्थित सनबीम स्कूल में सोमवार सुबह की ये घटना है. स्कूल खुलते ही छात्रों के दो गुटों के बीच कहासुनी हो गई, जो देखते-ही-देखते हिंसक झगड़े में बदल गई. इसी दौरान 9वीं कक्षा के एक छात्र ने चाकू से हमला कर दिया. हमले में 10वीं कक्षा के छात्र आदित्य वर्मा गंभीर रूप से घायल हो गया और अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गई. इस घटना में तीन अन्य छात्र भी घायल हुए हैं, जिन्हें राजकीय मेडिकल कॉलेज गाजीपुर में भर्ती कराया गया है.
गाजीपुर का सनबीम स्कूल
पुलिस के मुताबिक, विवाद उस समय हुआ जब कुछ छात्र वॉशरूम की ओर जा रहे थे और दोनों गुटों के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया. अचानक आरोपी छात्रों ने अपने पास रखा चाकू निकालकर हमला कर दिया. मामले में दो छात्रों को आरोपी बनाया गया है और उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 103(1) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है.
केस 2- अहमदाबाद
सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट हायर सेकेंडरी स्कूल में छात्र की हत्या
गुजरात के अहमदाबाद स्थित सेवेंथ डे एडवेंटिस्ट हायर सेकेंडरी स्कूल में बुधवार को 10वीं कक्षा के छात्र की उसके ही जूनियर ने चाकू से गोदकर हत्या कर दी. घटना के बाद परिजन और सिंधी समाज के लोग आक्रोशित होकर स्कूल पहुंचे और जमकर हंगामा किया. भीड़ ने स्कूल परिसर में तोड़फोड़ की और बसों व वाहनों को नुकसान पहुंचाया. प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन पर गंभीर लापरवाही के आरोप भी लगाए. संयुक्त पुलिस आयुक्त जयपाल सिंह राठौर के अनुसार, आरोपी नाबालिग छात्र को हिरासत में लिया गया है और उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर दी गई है.
अहमदाबाद में छात्र की हत्या के बाद भारी संख्या में पुलिस बल तैनात
केस 3-उधमसिंह नगर
लंच बॉक्स में छिपाकर लाया था तमंचा
उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले के एक निजी स्कूल में 9वीं कक्षा के छात्र ने बुधवार को क्लास के दौरान अपने ही शिक्षक पर तमंचे से गोली चला दी. गोली लगने से शिक्षक गगन सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टरों के अनुसार, उनकी हालत अब खतरे से बाहर है. आरोपी छात्र लंचबॉक्स में 315 बोर का तमंचा छिपाकर स्कूल लाया था. पढ़ाई के दौरान अचानक उसने हथियार निकाला और शिक्षक पर तान दिया. शिक्षक कुछ समझ पाते, उससे पहले ही छात्र ने फायरिंग कर दी. गोली उनके दाहिने कंधे में लगी और वह जमीन पर गिर पड़े.
नाबालिग आरोपियों के खिलाफ किन धाराओं में दर्ज किए गए केस?
गाजीपुर के सनबीम स्कूल केस में दो छात्रों को आरोपी बनाया गया है. इनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 103(1) के तहत मामला दर्ज किया गया है. वहीं, अहमदाबाद में भी आरोपी छात्र के खिलाफ 103(1) के तहत ही केस दर्ज किया गया है. साथ ही वारदात के बाद स्कूल में उपद्रव करने वाले 500 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया है. वहीं, उधमसिंह नगर मामले में आरोपी छात्र के खिलाफ बीएनएस की धारा 109 के तहत हत्या के प्रयास और आर्म्स एक्ट 149 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है.
क्या है धारा धारा 103(1)?
BNS धारा 103 हत्या (Murder) से जुड़े अपराध को परिभाषित करती है. इसमें स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर (Intentionally) किसी व्यक्ति पर ऐसा हमला करता है, जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है, तो वह अपराध हत्या कहलाता है. पहले ऐसे मामलों में IPC की धारा 302 (पुराना कानून) लागू होती थी, लेकिन BNS लागू होने के बाद अब हत्या के सभी मामलों में BNS की धारा 103 के तहत कार्रवाई की जाती है.
इन केसों में नाबालिग आरोपियों को कितनी मिल सकती है सजा?
सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील मानवेंद्र मुकुल ने टीवी9 भारतवर्ष से बातचीत में बताया कि भारत में नाबालिग अपराधियों पर किशोर न्याय जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट, 2015 लागू होता है. हालांकि, नाबालिगों के मामले में भी बीएनएस (पहले आईपीसी थी) की धारा के तहत ही केस दर्ज किया जाता है. यही कारण है कि हत्या के दोनों मामलों में बीनएस की धारा 103(1) के तहत केस दर्ज किया गया है. हालांकि, इनकी सुनवाई यानी ट्रायल जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (Juvenile Justice Board – JJB) में होती है.
क्या करता है जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड बोर्ड?
मामले में एफआईआर होने के बाद आरोपी नाबालिग को बाल सुधार गृह में भेजा जाता है और उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष पेश किया जाता है. वरिष्ठ वकील मानवेंद्र मुकुल बताते हैं कि जब कोई नाबालिग हत्या जैसे गंभीर अपराध में पकड़ा जाता है, तो उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (Juvenile Justice Board – JJB) के सामने पेश किया जाता है. यह बोर्ड तीन सदस्यों का होता है जिसमें एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता और एक मजिस्ट्रेट शामिल होते हैं. इसका उद्देश्य सजा नहीं, बल्कि बच्चे का सुधार और पुनर्वास सुनिश्चित करना होता है. यहां तक पहुंचने के बाद इन मामलों को कानून के तहत दो श्रेणियों में बांटा जाता है.

पहला- कम गंभीर अपराध (Petty and Serious Offences): ऐसे मामलों में नाबालिग आरोपियों को बाल सुधार गृह में भेजा जाता है.
दूसरा- जघन्य अपराध (Heinous Offences): 16-18 वर्ष की आयु के नाबालिग आरोपियों के बारे में यह देखा जाता है कि क्या वे मानसिक रूप से इतने परिपक्व हैं कि उन पर बालिग की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है.

पहला काम- आयु की पुष्टि
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) सबसे पहले आरोपी की आयु की पुष्टि करता है. इसके लिए जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल रिकॉर्ड या अन्य दस्तावेजों को देखा जाता है. नाबालिग अगर 16-18 वर्ष की आयु का है और अपराध जघन्य है, तो उसका “प्रारंभिक मूल्यांकन” (Preliminary Assessment) किया जाता है. इसी मूल्यांकन में तय होता है कि मामला बालिग की तरह चलेगा या नाबालिग तरीके से.
इसके लिए JJB तीन चीजों पर गौर करता है, जैसे…

नाबालिग आरोपी की मानसिक और शारीरिक परिपक्वता कैसी है?
अपराध को समझने की क्षमता है या नहीं?
घटना के समय की मानसिक स्थिति कैसी थी?

इस दौरान बोर्ड को अगर लगता है कि आरोपी अपराध की गंभीरता को समझता था और मानसिक रूप से परिपक्व है, तो उसके खिलाफ मामला बालिग की तरह चलाया जा सकता है. इसके ट्रायल (सुनवाई) के लिए इस मामले को विशेष सत्र अदालत (Children’s Court) में भेजा जा सकता है.
कैसी और कितनी होती है सजा?
मामले में अगर ट्रायल नाबालिग की तरह होता है तो आरोपी को अधिकतम 3 साल तक सुधार गृह में रखा जा सकता है. सुधार गृह में भेजे जाने के बाद तीन साल के अंदर बोर्ड कभी भी आरोपी को उसकी वर्तमान स्थिति को देखते हुए सुधार और पुनर्वास के लिए कानून के आधार पर रिहा कर सकता है.
वरिष्ठ वकील मानवेंद्र मुकुल बताते हैं कि ऐसे मामले में नाबालिग को न तो जेल में रखा जाता है, न ही उसे फांसी या उम्रकैद की सजा दी जा सकती है. उसे बाल सुधार गृह में ही रखा जाता है. उसकी पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाती है.
अगर आरोपी के खिलाफ केस बालिग की तरह चलाने का आदेश होता है तो उसकी सुनवाई (ट्रायल) चिल्ड्रन कोर्ट (Childrens Court) में होती है. उसे 3 साल तक यानी 21 वर्ष की आयु तक विशेष गृह (Special Home) में रखने का आदेश हो सकता है. 21 वर्ष की आयु पूरी होने पर समीक्षा की जाती है. यदि सुधार हुआ माना जाए, तो रिहा किया जा सकता है, अन्यथा जेल में ट्रांसफर किया जा सकता है.
केस चाहे नाबालिग रूप में चले या बालिग रूप में, दोनों ही स्थिति में आरोपी को मानसिक परामर्श, शिक्षा और व्यावसायिक ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वो दोबारा अपने जीवन को बेहतर तरीके से शुरू कर सके और उसका पुनर्वास हो सके.
जुवेनाइल जस्टिस सिस्टम का मकसद नाबालिग को सजा देना नहीं, बल्कि उसमें सुधार लाना होता है. इसीलिए नाबालिगों को बाल सुधार गृह या विशेष गृहों में रखा जाता है. यहां पर उन्हें एजुकेशन दिया जाता है. उनकी काउंसलिंग की जाती है. उन्हें स्किल्स की ट्रेनिंग दी जाती है और उनकी मानसिक स्थिति व स्वास्थ्य को बेहतर करने में मदद की जाती है, ताकि वे भविष्य में एक जिम्मेदार नागरिक बन सकें.
मनोवैज्ञानिक की राय: छात्र क्यों हो रहे हिंसक?
बलरामपुर हॉस्पिटल के CMS और मनोचिकित्सक डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि आज के दौर में बच्चों पर पढ़ाई का दबाव, सोशल मीडिया का प्रभाव और पारिवारिक माहौल उनके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है. उनके अनुसार, स्कूलों में नियमित काउंसलिंग को अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि बच्चों के गुस्से, तनाव और व्यवहार संबंधी समस्याओं की पहचान समय रहते की जा सके और उनका समाधान किया जा सके.
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि बच्चों की मानसिक सेहत की जिम्मेदारी केवल स्कूलों की नहीं है. अभिभावकों को भी अपने बच्चों के व्यवहार, गुस्से और बदलते स्वभाव पर ध्यान देना होगा. अगर समय रहते बच्चों के मनोविज्ञान को समझने और संभालने की कोशिश नहीं की गई, तो भविष्य में ऐसी घटनाएं और भी अधिक गंभीर और भयावह रूप ले सकती हैं.

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