अफगानिस्तान का ये एयरबेस क्यों है इतना खास? चीन से लेकर अमेरिका तक की रहती है नजर – भारत संपर्क

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अफगानिस्तान के बगराम हवाई अड्डे को फिर से अपने कंट्रोल में लेना चाह रहे हैं. पिछले दिनों इसे लेकर ट्रंप ने तालिबान सरकार के सामने एक प्रस्ताव को रखा है. शुक्रवार को ट्रंप का झटका देते हुए तालिबान इसको खारिज कर दिया.तालिबान ने 20 साल तक चले लंबे युद्ध के बाद 2021 में अमेरिका सेना को खदेड़कर काबुल पर कब्जा कर लिया था.
अब एक बार फिर ट्रंप अफगानिस्तान में अमेरिका अपनी सेना को तैनात करना चाह रहे हैं. पिछले दिनों इसे लेकर ट्रंप ने चीन और तालिबान सरकार के सामने इस प्रस्ताव को रखा, जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान के बग्राम एयर बेस पर कंट्रोल लेने की बात कही. ट्रंप के प्रस्ताव को तालिबान ने खारिज कर दिया और चीन ने भी इसके कड़े शब्दों में निंदा की है.
बग्राम एयरबेस (Bagram Air Base) अफगानिस्तान के परवान प्रांत में स्थित एक प्रमुख सैन्य हवाई अड्डा है, जो काबुल से करीब 40-60 किमी उत्तर में है. यह दुनिया के सबसे बड़े और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण एयरबेस में से एक है.
क्यों खास है बग्राम एयरबेस?
बग्राम एयरबेस को सोवियत संघ ने 1950 के दशक में बनाया था. 1980 के सोवियत-अफगान वॉर के दौरान यह सोवियत सेनाओं का मुख्य केंद्र था. वहीं 2001 के 9/11 हमलों के बाद अमेरिकी सेनाओं ने अफगान पर कब्जा किया और यहां का भी कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया.
अफगानिस्तान में 20 सालों तक चले युद्ध के दौरान ये एयर बेस अमेरिका सेनाओं का केंद्र रहा. यहां 30 हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिक तैनात थे और यह नाटो बलों का मुख्यालय था.
बग्राम एयर बेस पर 11 हजार फीट लंबे दो कंक्रीट रनवे हैं, जो C-5 गैलेक्सी जैसे बड़े कार्गो विमानों और B-52 बॉम्बर्स को संभाल सकते हैं. यहां 110 से ज्यादा विमान शेल्टर, ईंधन डिपो, अस्पताल, जेल और इंटेलिजेंस सेंटर थे.
भौगोलिक और रणनीतिक रूप से खास है बग्राम
यह दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और पश्चिम एशिया के बीच में स्थित है, जो ईरान, पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग प्रांत और रूस की सीमाओं के पास है. चीन के न्यूक्लियर हथियार उत्पादन सुविधाओं शिनजियांग में है, जो इस बेस से सिर्फ एक घंटे की दूरी पर है (लगभग 500 मील),
ये बेस अमेरिका के लिए चीन के प्रभाव को रोकने के लिए अहम साबित हो सकता है. क्योंकि यहां से चीन और ईरान दोनों पर नजर रखी जा सकती है.
इस बेस का इस्तेमाल अमेरिका काउंटर-टेररिज्म, ड्रोन ऑपरेशंस, एयर स्ट्राइक और इंटेलिजेंस गैदरिंग के लिए तक सकता है. साथ ही जानकारों का मानना है कि यह मध्य एशिया में अमेरिकी प्रभाव बनाए रखने का द्वार है.
2021 में अमेरिकी वापसी के बाद इस तालिबान के नियंत्रण है, कई बार दावा किया गया था की चीन इस पर अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है, लेकिन ऐसे दावों की पुष्टि नहीं हो पाई है.