बैलों का उत्सव, किसान का गौरव,भादो अमावस्या पर सज-धजकर निकली…- भारत संपर्क

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बैलों का उत्सव, किसान का गौरव,भादो अमावस्या पर सज-धजकर निकली…- भारत संपर्क

भादो माह की अमावस्या पर प्रसन्नावस्था के साथ मनाया जाने वाला पारंपरिक पोरा या पोला पर्व शनिवार को छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और विदर्भ के ग्रामीण अंचलों में धूमधाम से मनाया गया। इस दिन किसानों ने अपने हल, बैल और कृषि उपकरणों की पूजा-अर्चना कर उन्हें सम्मानित किया और पूरे गाँव में रंगारंग शोभायात्राएँ निकालीं।

तड़के स्नान, रंगोली और श्रृंगार

सुबह-सुबह किसान अपने बैलों को नहलाकर, साफ-सुथरा कर पारंपरिक तरीके से सजाते दिखे। बैलों पर रंग-बिरंगे कपड़े तथा पोशाक पहनी गई, सींगों पर रंगीन तेल और सजावट की गई और उन्हें विशेष पकवान खिलाकर आदर व्यक्त किया गया। घर-घर और चौपालों पर पारंपरिक संगीत की थाप के साथ लोकगीत गाए गए और लोग उत्सव में शामिल हुए।

स्थानीय आकर्षण — प्रतियोगिताएँ और बैल-दौड़

गाँवों में बैल सज्जा प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें स्थानीय किसान अपने-संस्कार अनुसार सजाए बैलों को पेश करते हुए प्रतियोगिता में भाग ले रहे थे। कई स्थानों पर बैल-दौड़ का आयोजन भी हुआ, जिसमें दर्शकों की भारी भीड़ जुटी। आयोजकों ने बताया कि प्रतियोगिताओं का उद्देश्य परंपरा को जीवित रखना और किसानों के बीच सामाजिक मेल-जोल को बढ़ावा देना है।

“हमारे लिए बैल सिर्फ पशु नहीं, खेती के साथी हैं। पोरा पर्व उन्हें सम्मान देने का अवसर है,” स्थानीय किसान रमेश यादव ने कहा।

बच्चों की भागीदारी — मिट्टी के बैल और सांस्कृतिक शिक्षा

पोरा पर्व में बच्चों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बालक-बालिकाएँ मिट्टी के बैल बनाकर खेलती और बुजुर्गों से पोरा पर्व की परंपरा के बारे में सुनती नजर आईं। यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों को कृषि जीवन और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का महत्वपूर्ण माध्यम मानी जाती है।

कृषि-संस्कृति का प्रतीक

वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार पोरा पर्व केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह किसानों द्वारा उन पशुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का उत्सव है जो खेती में उनकी सहायक भूमिका निभाते हैं। ग्रामीण समाज में यह उत्सव प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति सम्मान के भाव को प्रमाणित करता है।

कृषि आधारित जीवनशैली वाले इन क्षेत्रों में पोरा पर्व ने सामाजिक एकता बढ़ाने, पारिवारिक मेल-जोल को सुदृढ़ करने और सांस्कृतिक पहचान को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्थानीय युवा वर्ग में भी अब परंपराओं को आधुनिक रूप में संवारे जाने की लगन दिखती है — संगीत, फोटोग्राफी और सोशल मीडिया के माध्यम से पोरा पर्व की झलक दूर-दूर तक पहुँच रही है।

पोरा या पोला पर्व ने एक बार फिर साबित कर दिया कि खेती और उससे जुड़े जिवों के प्रति आदर व कृतज्ञता हमारी ग्रामीण संस्कृति की आत्मा हैं। भादो अमावस्या के इस उत्सव ने किसानों, उनके परिवारों और बच्चों को मिलकर उत्सव मनाने और अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने का अवसर प्रदान किया।

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