भगवान गणेश की प्रतिमा के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ किए जाने पर…- भारत संपर्क

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भगवान गणेश की प्रतिमा के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ किए जाने पर…- भारत संपर्क

शशि मिश्रा

जब भगवान कार्तिकेय कैलाश छोड़कर दक्षिण की ओर चले गए तो भगवान गणेश अपने भाई से मिलने दक्षिण की ओर निकले। जब भगवान कार्तिकेय को अपने भाई गणेश के आने की सूचना मिली तो वे भी दौड़ पड़े। दोनों की मुलाकात महाराष्ट्र में हुई।

इसी मान्यता के आधार पर महाराष्ट्र में गणेश स्थापना शुरू हुई जो इस बात का प्रतीक है कि भगवान गणेश उत्तर भारत से अपने भाई से मिलने आये है।भगवान की मूर्ति का विसर्जन इस मान्यता पर आधारित है कि अब भगवान गणेश 10 दिन अपने भाई के पास रुकने के बाद वापस उत्तर भारत जा रहे हैं। कुछ समय बाद उत्तर भारतीयों ने भी इस परम्परा के तहत गणेश चतुर्थी पर गणेश स्थापना और विसर्जन शुरू कर दिया।

यह तो हुई गणेश चतुर्थी और अनंत चतुर्दशी के पीछे की कथा। तो वही भगवान गणेश के स्वरूप को लेकर भी पुराणों में विस्तृत व्याख्या है कि किस तरह से माता पार्वती ने अपने शरीर में लगे उबटन से गणेश जी का स्वरूप बनाया और फिर पहरेदारी पर उन्हें नियुक्त किया। बालक गणेश ने शिव जी को भी भीतर कक्ष में प्रवेश नहीं करने दिया तो तैश में आकर उन्होंने गणेश जी का शीश विच्छेद कर दिया और बाद में माता पार्वती के कहने पर हाथी का सर प्रत्यारोपित किया। वहीं परशुराम के साथ युद्ध में गणेश जी का एक दांत टूट गया। इसी स्वरूप में भगवान गणेश की प्रतिमाएं निर्मित कर उनकी पूजा अर्चना की जाती है ।

लेकिन विगत कुछ वर्षों में गणेश प्रतिभाओं में प्रयोग धर्मिता देखी जा रही है। यह प्रयोग तब आपत्ति की वजह बन जाती है जब मूर्तिकार सीमाओं का अतिक्रमण करने लगते हैं । गणेश जी की प्रतिमाओ को अलग-अलग देवी देवताओं के स्वरूप में बनाया जा रहा है। कई स्थानों पर तो उन्हें सांई बाबा के रूप में स्थापित किया गया है तो कई स्थानों पर तो सांई बाबा की गोद में बैठे गणेश जी भी देखे जा सकते हैं।

इसे लेकर हिंदू संगठनों को आपत्ति है। और इस बार तो एक अनोखा प्रयोग देखा जा रहा है। अधिकांश गणेश पंडालो में कार्टून या फिर गुड्डे गुड़िया के स्वरूप में गणेश भगवान की स्थापना की गई है । हैरानी इस बात की है कि ऐसा किसी एक या दो गणेश उत्सव समिति द्वारा नहीं किया गया है, प्रदेश के लगभग सभी शहरों में इस तरह की प्रतिमाएं देखी जा रही है। रायपुर से लेकर बिलासपुर और अन्य शहरों में भगवान गणेश को कार्टून और गुड्डा गुड़िया बनाए जाने पर हिंदू संगठनों ने गहरी आपत्ति दर्ज कराई है।

राजधानी रायपुर में गणेश उत्सव के दौरान गणपति प्रतिमाओं के स्वरूप को लेकर सर्व हिंदू समाज ने नाराजगी जताई है और उन्होंने एसएसपी को ज्ञापन सौंपते हुए कार्यवाही की भी मांग की है। आरोप है कि गणपति प्रतिमा को पारंपरिक स्वरूप से हटकर कार्टून या क्यूट अंदाज में प्रस्तुत किया गया है । इससे समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही है। बताया गया कि भगवान के स्वरूप को देखकर बच्चों और युवाओं के बीच मजाक का माहौल बन रहा है। भगवान के प्रति श्रद्धा उपजने की बजाय उनके साथ खेलने की इच्छा जताई जा रही है। आरोप है कि यह सब कुछ जानबूझकर किसी साजिश के तहत किया जा रहा है, क्योंकि एक साथ पूरे प्रदेश में एक जैसी आकृति में गणेश प्रतिमाओं का निर्माण महज संजोग नहीं हो सकता।

ऐसे प्रतिमाओं के तत्काल विसर्जन की मांग करते हुए इन समितियो के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की भी मांग की गई है । तो वही गणेश प्रतिमाओं के स्वरूप में बदलाव को लेकर ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने भी कहा है कि शास्त्रों के अनुसार सभी देवी देवताओं के रूप पहले से ही निर्धारित है, जिसमें मनमाने बदलाव की अनुमति नहीं है। किसी व्यक्ति को भगवान की प्रतिमा में दिखाना अपमानजनक है ।ऐसे प्रयोग रचनात्मक नहीं बल्कि धार्मिक विकृति है। उन्होंने ऐसी मूर्तियां बनाने वाले कलाकारों को भी पाप का भागीदारी बताते हुए उन पर कार्रवाई की मांग की है।

बिलासपुर में भी इस वर्ष कई स्थानों पर इसी तरह की प्रतिमाएं स्थापित की गई है ।भगवान गणेश के पारंपरिक छवि को बदलने की यह साजिश आखिर क्यों की जा रही है, यह यक्ष प्रश्न है। जाहिर है नई पीढ़ी धीरे-धीरे इसी स्वरूप में भगवान को अंगीकार करेगी और भगवान उनके लिए आराध्या नहीं बल्कि खेलने वाले गुड्डे गुड़िया बन जाएंगे। यह हिंदू आस्था पर प्रहार और संस्कृति को विकृत करने का कुत्सित प्रयास है, जिसके खिलाफ सभी सनातनियों को आगे आना होगा और ऐसे अज्ञानी समितियो पर भी नकेल कसनी होगी जो जाने अनजाने ऐसे षड्यंत्र का शिकार बन जाते हैं। इस साजिश के पीछे असली दोषी वह मूर्तिकार है जिन्होंने संभवत समितियो को भी भ्रमित किया है, या फिर वे भी अनजाने में ही इसका शिकार बने हैं, लेकिन अब शंकराचार्य के मामले में दखल देने के बाद सभी को सचेत होकर आने वाले वर्ष में इस तरह के प्रयोग से बचना होगा।

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