किसी की साली बनी नेता, किसी के रिश्तेदार बने राजदूत…नेपाल की राजनीति के परिवारवाद… – भारत संपर्क

नेपाल में पिछले दो दिनों से नौजवान सड़कों पर उतर आए हैं. पहली नजर में ये गुस्सा सरकार की ओर से सोशल मीडिया बैन करने के फैसले का लगता है. लेकिन असलियत इससे कहीं गहरी है. सोशल मीडिया बैन तो बस उस चिंगारी का काम कर गया, जिसके पीछे लंबे वक्त से जमा हताशा और गुस्सा छिपा था. असली वजह है परिवारवाद और भ्रष्टाचार.
सोशल मीडिया पर हाल ही में #NepoKid ट्रेंड करता रहा. इसमें युवाओं ने नेताओं के बच्चों की ऐशो-आराम वाली जिंदगी की तस्वीरें और वीडियो शेयर किए. महंगी कारें, ब्रांडेड कपड़े, विदेशों की पढ़ाई और छुट्टियां. तुलना की गई आम युवाओं से, जिन्हें बेरोजगारी और संघर्ष का सामना करना पड़ता है.संसद परिसर तक पहुंचे युवाओं ने नारा लगाया कि हमारा टैक्स, तुम्हारी रईसी नहीं चलेगी. ये सिर्फ गुस्से का इजहार नहीं था, बल्कि एक डिजिटल विद्रोह था जो अब सड़कों पर उतर आया.
क्यों नाराज़ हैं नेपाल के युवा?
नेपाल की जनरेशन Z का गुस्सा कई वजहों से है:
राजनीतिक अस्थिरता: पिछले 17 सालों में नेपाल में 14 सरकारें बदली हैं. यानी लगभग हर साल नया प्रधानमंत्री..
भ्रष्टाचार: मौजूदा प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली, पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, पुष्प कमल दहल प्रचंड, बाबूराम भट्टराई लगभग सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं.
बेरोजगारी: नेपाल की प्रति व्यक्ति आय सिर्फ करीब 1,300 डॉलर सालाना है. नौकरी और अवसरों की कमी इतनी है कि करीब 10% नेपाली युवा रोज़गार के लिए विदेश जाते हैं.
इन हालातों में जब आम नौजवान संघर्ष करता है और नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ाई करते और लग्ज़री गाड़ियाँ चलाते दिखते हैं, तो गुस्सा फूटना लाजमी है.
परिवारवाद कितना गहरा है नेपाल में?
नेपाल की राजनीति में परिवारवाद सिर्फ राजधानी तक सीमित नहीं है, ये गाँव और कस्बों तक फैला हुआ है. नेपाली कांग्रेस में देउबा परिवार के कई सदस्य राजनीति में हैं. नेपाल में जब राजशाही से फेडरल डेमोक्रेटिक रिपब्लिक की ओर कदम बढ़ा, तो जनता को उम्मीद थी कि असमानता खत्म होगी, मेरिट का दौर आएगा और नेताओं का परिवारवाद मिटेगा. लेकिन हकीकत उलटी साबित हुई. आज हालात ऐसे हैं कि पैरवी और रिश्तेदारी राजनीति के हर स्तर पर हावी है.
मिसाल के तौर पर, जब के.पी. ओली की साली डॉ. अंजन शक्य को नेशनल असेंबली का सदस्य बनाने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने संविधान की धारा 86(2) के तहत उनकी नियुक्ति भी कर दी. इससे पहले डॉ. शक्य को इज़राइल का राजदूत भी बनाया जा चुका है. इस नियुक्ति पर सवाल उठे कि क्या ये योग्यता थी या फिर सिर्फ राजनीतिक नजदीकी?
करीबी रेश्तेदार बने राजदूत
इसी तरह, हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, कतर, बांग्लादेश और स्पेन के लिए राजदूत चुने गए लोगों पर भी गंभीर सवाल उठे, क्योंकि उनमें से कई नेताओं के रिश्तेदार या भरोसेमंद साथी थे, जबकि काबिल लोग दरकिनार कर दिए गए.
महेश दहाल को ऑस्ट्रेलिया का राजदूत बनाया गया, जो माओवादी नेता प्रचंड (पुष्प कमल दहाल) के करीबी रिश्तेदार बताए जाते हैं. लेकिन कूटनीति का अनुभव उनके पास बेहद कम था.
नारद भारद्वाज को कतर भेजा गया, वे के.पी. शर्मा ओली के भरोसेमंद साथी माने जाते हैं.
दावा फुती शेर्पा को स्पेन का राजदूत बनाया गया, वे पर्यटन कारोबार से जुड़ी पृष्ठभूमि से आती हैं लेकिन कूटनीतिक योग्यता नहीं रखतीं. बंसीधर मिश्रा को बांग्लादेश भेजा गया, जो पहले स्वास्थ्य राज्यमंत्री रह चुके थे.
प्रचंड के कजिन नारायण दहाल को नेशनल असेंबली का चेयरमैन बनाना भी इसी प्रवृत्ति का हिस्सा है. ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं, असलियत ये है कि राज्य की संस्थाओं से लेकर राजदूतों तक की नियुक्ति में राजनीतिक पैरवी और रिश्तेदारी हावी है. योग्य और पढ़े-लिखे लोग पीछे छूट जाते हैं जबकि सत्ता से जुड़े परिवार और उनके करीबी मलाई काटते हैं. यही वजह है कि आम जनता में ये गुस्सा सितंबर 8 को सड़कों पर देखा गया
कौन-कौन कितनी बार प्रधानमंत्री बना?
नेपाल की राजनीति में सबसे बड़ा सबूत परिवारवाद और पॉलिटिकल अस्थिरता का है कि देश में एक ही नेता बार-बार सत्ता में लौट आता है.
1. के.पी. शर्मा ओली: चार बार प्रधानमंत्री रहे (2015-16 और 2018-21, और 24-25). उन पर लोकतंत्र की अवहेलना करने के आरोप लगे, खासकर 2020 और 2021 में संसद भंग करने की कोशिशों पर.
2. शेर बहादुर देउबा: पाँच बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं. उनके परिवार के लोग भी राजनीति में गहराई से जुड़े हैं. शेर बहादुर तब प्रधानमंत्री थे, जब राजशाही शासन हुआ करता था. वो 19951997, 20012002, 20042005 में प्रधानमंत्री पद पर रहे
3. प्रचंड (पुष्प कमल दहल): तीन बार प्रधानमंत्री बने. विडंबना यह है कि कभी वे राजशाही के खिलाफ बगावत का चेहरा थे, लेकिन अब उनके अपने बच्चों को लोग नेपो किड्स कह रहे हैं.
4. बाबूराम भट्टराई: एक बार प्रधानमंत्री रहे और उन पर भी भ्रष्टाचार और रिश्तेदारों को फायदा पहुँचाने के आरोप लगे.
इतने कम समय में एक ही चेहरों का बार-बार सत्ता में लौटना दिखाता है कि राजनीति नए लोगों के लिए लगभग बंद दरवाज़ा है.
जनता क्यों तंग है?
नेताओं के परिवार ऐश कर रहे हैं और आम लोग परेशान. गाँव-गाँव तक यही कल्चर घुस चुका है कि नेता अपने रिश्तेदारों को नौकरी और पद दिलाते हैं. इससे आम जनता का भरोसा पूरी तरह हिल चुका है. नेपाल की राजनीति एक तरह का बिज़नेस मॉडल बन गई है. नेता चुनाव जीतकर सत्ता में आते हैं, सत्ता से पैसा और पद लेते हैं और अपने परिवार को आगे बढ़ाते हैं.
हालाँकि सब कुछ नकारात्मक नहीं है. काठमांडू के युवा मेयर बालेन्द्र शाह (Balen Shah) जैसे नए चेहरे, जिनका उदय सोशल मीडिया के जरिए हुआ, युवाओं को उम्मीद दे रहे हैं. ये चेहरे इस बात का सबूत हैं कि बदलाव मुमकिन है.