गौमुखी सेवा धाम में होगी हिंगलाजगढ़ माता की स्थापना, सदस्यों…- भारत संपर्क

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गौमुखी सेवा धाम में होगी हिंगलाजगढ़ माता की स्थापना, सदस्यों ने लिए पत्रकार वार्ता

कोरबा। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर देवपहरी ग्राम में गौमुखी सेवा धाम के तत्वाधान में सिद्धीदात्री मंदिर का भूमि पूजन हुआ था और आज 25 साल बाद वहां पर हिंगलाजगढ़ का निर्माण करने जा रहे हैं। जहां 6 अखंड ज्योति एवं राष्ट्र प्रेम जगाने हेतु सात महापुरुषों की प्रतिमा स्थापित होगी, सर्वप्रथम 8 पंचायत के 40 ग्रामों के ग्रामवासियों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से गौमुखी सेवा धाम देवपहरी का कार्य प्रारंभ हुआ था। वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस प्रकल्प गौमुखी सेवा धाम में चार आयाम पर कार्य होते हैं।पहला स्वास्थ्य, दूसरा शिक्षा, तीसरा आध्यात्म, चौथा स्वाबलंबन, स्वास्थ्य के उद्देश्य से जब मंदिर का भूमि पूजन हुआ था उस समय से ही स्वास्थ्य शिविर का आयोजन स्वयंसेवकों द्वारा कोरबा के डॉक्टरों की मदद से किया जाता था एवं 2004 में एक तीन बेड के अस्पताल की भी आधारशिला रखी गई थी। इस अस्पताल में भी कोरबा के डॉक्टरों का ही पैसा लगा था। 2004 में टोकनी में एवं खटिया में मरीजों को लाया जाता था और आश्रम में उनका इलाज के साथ-साथ दवाइयां भी निशुल्क दिया जाता था। विभिन्न संस्थाओं द्वारा सीएसआर मद से एंबुलेंस प्रदान किया गया, उस एंबुलेंस की मदद से हम हर 15 दिन में किसी ने किसी गांव में कैंप लगाते आ रहे हैं एवं जरुरत पड़ने पर इलाज के लिए एंबुलेंस से मरीजों को कोरबा बिलासपुर रायपुर तक भेजने का कार्य भी करते हैं। आज सन् 2004 से ही 24 * 7 ऐसे काम करने वाले डॉक्टर उपलब्ध हैं, जो हमेशा ग्रामीणों का इलाज के लिए तत्पर रहते हैं। दूसरा आयाम शिक्षा है। शिक्षा के लिए 2002 में स्कूल की स्थापना हो गई थी उसे समय कुल 27 बच्चे वहां अध्ययनरत थे। पांचवी तक की कक्षा लगती थी एवं 9 बालक, बालक छात्रावास में रहते थे आज 25 साल बाद वहां 90 बालक एवं 90 बालिकाओं के लिए छात्रावास उपलब्ध है एवं कुल 310 बच्चे वहां अध्यनरत है। जिन्हें निशुल्क शिक्षा के साथ-साथ निशुल्क भोजन निशुल्क गणवेश पदवेश आदि दिया जाता है। हमारे संस्थान से अभी तक 12 बच्चे नेशनल भी खेल चुके हैं। तीसरा आयाम आध्यात्म के बारे में बताया गया कि सन् 2000 में मंदिर का भूमि पूजन हुआ और 2002 में मंदिर बनकर तैयार हो गया था। 2004 में 40 ग्रामों में हर घर में रामचरितमानस का वितरण कोरबा के नागरिकों के सौजन्य से किया गया । आज भी आप देखेंगे तो देवपहरी के 40 ग्रामों में जो रामचरितमानस घर-घर में है उसमें किसी न किसी कोरबा के नागरिक का नाम लिखा होगा। जिन्होंने उस समय उसकी राशि उपलब्ध कराई थी। 2002 से ही वहां मनोकामना ज्योति कलश प्रचलित होने लगे थे। आज वहां चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि में लगभग 600-600 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जलवित होते हैं। सिद्धिदात्री माता की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही वहां पर आठ प्रांत से भारत के कोने के चार प्रांत एवं मध्य प्रदेश के कोने के चार प्रांतों से प्रतिमाएं लाई गई थी एवं कोरबा में रहने वाले इस प्रांत के लोगों ने धनराशि इकट्ठा कर एवं वहां जाकर प्रतिमा लेकर आए थे। जिसे देवपहरी में प्राण प्रतिष्ठित किया गया। मंदिर के निर्माण में 40 ग्राम से ग्राम वासियों ने मिट्टी और जल लाया था और श्रमदान भी किया था। तभी आज से 25 साल पहले इतना भव्य मंदिर वहां बन पाया।
हिंगलाज माता जिनका मूल स्थान बलूचिस्तान है, वहां जिसे नानी मां के नाम से जाना जाता है। देवघाटी के 40 ग्रामों में माई कलशा के रूप में हिंगलाज माता की पूजा की जाती है। दोनों मनोकामना ज्योति कलश के समय हिंगलाज माता की स्थापना गौमुखी सेवा धाम में की जाती है। ग्राम वासियों की मांग पर वहां पर हिंगलाजगढ़ की स्थापना होने जा रही है। किलेनुमा आकृति में बन रहे हिंगलाजगढ़ राष्ट्रीय एकात्मकता का संदेश देता है। जहां पर सात अखंड ज्योति के लिए एक कक्ष का निर्माण एवं सप्त सरोवर का निर्माण होने जा रहा है। भारत के चारों दिशाओं पूर्व से कामाख्या देवी, पश्चिम से कालका देवी, उत्तर से वैष्णो देवी एवं दक्षिण से कामाक्षी देवी एवं मध्य से मैहर माता की अखंड शक्तिपीठ से अखंड ज्योति आ रही है। इस तरह से यह पांच एवं छठवीं सिद्धिदात्री मैया की अखंड ज्योति वहां प्रचलित होगी एवं सातवीं अखंड ज्योति के स्थान पर वहां अभी एक दीप स्थापित होगा जहां बलूचिस्तान के अखंड भारत में आने पर वहां से ज्योति लाकर अखंड ज्योत को प्रज्ज्वलित किया जाएगा। सप्त सरोवर का निर्माण राष्ट्र प्रेम को जागृत करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। जहां भारत माता की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। गुरु गोविंद सिंह जी जिन्होंने देश धर्म की रक्षा के लिए चारों पुत्रों को वार दिए थे, उनकी प्रतिमा स्थापित होगी। चंद्रशेखर आजाद जिनके बारे में एक किस्सा कहा जाता है अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने के लिए माउजर बंदूक खरीदने के लिए चंद्रशेखर जी ने पैसे इकट्ठा किए थे, भगत सिंह ने उनसे कहा की मां को साड़ी रोटी की जरूरत है अभी इस पैसे से साड़ी रोटी ले लेते हैं माउजर बाद में ले लेंगे तो उन्होंने कहा था। अभी देश को माउजर की जरूरत है तो पहले बंदूक लेंगे। सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने आजाद हिंद फौज खड़ी कर देश को आजाद करने का संकल्प लिया था और जब उनको अंडमान जेल में रखा गया था तो उन्होंने जेल में ही तिरंगा फहराकर अंडमान को आजाद करा दिया था। भगवान बिरसा मुंडा जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ ग्रामीणों को संग लेकर तीर धनुष से लड़ाई लड़ी थी उनकी प्रतिमा स्थापित होगी। रानी दुर्गावती जो गोड़ वंश की रानी थी और मुगल सम्राट अकबर से जिन्होंने लड़ाई लड़ी थी। जिनकी पराक्रम की कथाएं गायी जाती है, पति की मृत्यु के पश्चात 16 वर्षों तक गढ़ की उन्होंने सेवा की थी। छत्रपति शिवाजी जिन्होंने हिंदू साम्राज्य की स्थापना की थी, औरंगज़ेब से लड़ाई लड़ने में उन्होंने सर्वप्रथम गोरिल्ला युद्ध का प्रयोग किया था और उस समय पहली जल सेना की स्थापना की थी। उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी।
हिंगलाजगढ़ में पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण क्षेत्र के साथ-साथ स्थानीय समाज को भी आगे लाया जा रहा है। माई कलशा का जो स्थान है वहां टाइल्स वगैरह का नहीं लगता है, वहां पर 40 ग्रामों से मिट्टी लाकर उस स्थान को बनाया जायेगा, जहां ज्वारा बोया जायेगा। कोरवा, पंडों, बिरहोर, राठिया, कंवर, मंझवार समाज के ग्राम वासियों द्वारा ज्योति कलश की स्थापना की जाएगी। वही माता माता सिद्धिदात्री के मंदिर से अभी तक जिसे जो मांगा उसे मिला अब तो वहां 6-6 शक्तिपीठ से माता की अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित होगी तब उस स्थान की महत्ता और बढ़ जाएगी। पूरब से माता कामाख्या देवी गुवाहाटी से जो अखंड ज्योत लाई जाएगी वह 1492 किलोमीटर दूर है। 14 सितंबर को यहां से हमारे स्वयंसेवक जाएंगे और 19 तारीख को वह वापस श्रीराम मंदिर बाल्को पहुंचेंगी। वही इसी प्रकार पश्चिम से मां कालका देवी पावागढ़ जो गुजरात में स्थित है वहां की दूरी 1219 किलोमीटर है। स्वयंसेवक 15 सितंबर को जाएंगे एवं 19 सितंबर को जलाराम मंदिर वापस आएंगे। उत्तर में स्थित माता वैष्णो देवी जो कटरा में स्थित है उसकी दूरी लगभग 1900 किलोमीटर है 12 सितंबर को जाने के बाद 19 तारीख को कुसमुंडा मंदिर पहुंचेगी। दक्षिण में माता कामाक्षी देवी कांचीपुरम जिसकी दूरी 1456 किलोमीटर है। हमारे बहनें 12 सितंबर को जाकर 18 सितंबर वहां से वापस बालाजी मंदिर आयेंगी। इसी प्रकार मध्य क्षेत्र में शारदा देवी के मैहर माता से अखंड ज्योति आएगी जो लगभग 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।हमारे स्वयंसेवक 14 को जाकर 17 को शिव मंदिर साडा कालोनी पहुंचेगी। सभी अखंड ज्योति 20 सितंबर को शाम 5 बजे तक सप्तदेव मंदिर कोरबा पहुंच जायेगी। वहां से 21 सितंबर को सुबह 10 बजे निकलकर गौमुखी सेवा धाम देवपहरी से 12 किलोमीटर पहले गढ़ उपरोड़ा पहुंचेगी। जहां से 22 सितंबर को सुबह 6 बजे पैदल चलकर ग्राम वासियों तयके द्वारा लगभग 10 बजे मां सिद्धिदात्री मंदिर देवपहरी में पांचों अखंड ज्योति को लाया जायेगा। जहां विधि-विधान से अखंड ज्योति की स्थापना की जाएगी।

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