अभी कंट्रोल में नहीं आई महंगाई, RBI गवर्नर ने आखिर क्यों…- भारत संपर्क

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अभी कंट्रोल में नहीं आई महंगाई, RBI गवर्नर ने आखिर क्यों…- भारत संपर्क
अभी कंट्रोल में नहीं आई महंगाई, RBI गवर्नर ने आखिर क्यों नहीं कही ये बात?

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास Image Credit source: TV9 Graphics

भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर शक्तिकांत दास का साफ कहना है कि देश में अभी महंगाई खत्म नहीं हुई है और इसे कंट्रोल में लाने का काम बंद नहीं हुआ है. ऐसे में मौद्रिक नीति के स्तर पर केंद्रीय बैंक जल्दबाजी में कोई फैसला लेता है, तो महंगाई काबू करने की कोशिशों पर उल्टा असर पड़ सकता है. ये देश में महंगाई को काबू लाने के काम में मुसीबत खड़ा कर सकता है.

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने गुरुवार को मोनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की फरवरी बैठक के मिनट्स जारी किए. इसमें महंगाई को लेकर आरबीआई की चिंता साफ नजर आती है. मिनट्स असल में किसी ऑफिशियल मीटिंग का सिलसिलेवार ब्योरा होता है. कैबिनेट से लेकर कंपनियों की बोर्ड मीटिंग तक के मिनट्स जारी किए जाते हैं.

महंगाई को लेकर क्या है आरबीआई का रुख ?

एमपीसी की बैठक में शक्तिकांत दास ने कहा कि इस समय देश की मोनेटरी पॉलिसी का रुख सतर्क होना चाहिए. केंद्रीय बैंक को ये बिलकुल नहीं मानना चाहिए कि महंगाई को रोकने का उसका काम खत्म हो गया है. ये तभी सफल हो सकता है जब इसका लाभ ‘अंतिम छोर’ पर मौजूद व्यक्ति तक दिखाई देने लगे. एमपीसी की ये बैठक 6 से 8 फरवरी को हुई थी और आरबीआई ने 8 फरवरी को अपनी द्विमासिक मौद्रिक नीति का ऐलान करते हुए रेपो दर को पहले की तरह 6.5 प्रतिशत पर ही रखा था.

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इस तरह आरबीआई ने लगातार 6 मोनेटरी पॉलिसी यानी 12 महीने से रेपो रेट को अपरिवर्तित रखा है. इसमें रत्ती भर भी चेंज नहीं आया है. ये दिखाता है कि महंगाई को लेकर आरबीआई चिंतित है. और इसलिए रेपो रेट में एक साल से कोई बदलाव नहीं किया है. हालांकि इसके बावजूद महंगाई अभी कंट्रोल में नहीं आई है. दिसंबर में तो ये 4 महीने के उच्च स्तर पर चली गई थी.

एमपीसी की ही बैठक में गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ”…इस समय जल्दबाजी में उठाया गया कोई भी कदम अब तक हासिल की गई सफलता को कमजोर कर सकता है.”

रेपो रेट कंट्रोल करने से कैसे काबू आती है महंगाई?

महंगाई कंट्रोल करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट को कंट्रोल करता है. रेपो रेट वो ब्याज दर होती है, जिस पर देश के तमाम बैंक केंद्रीय बैंक से पैसा उठाते हैं. वहीं बैंकों के होम लोन से लेकर पर्सनल लोन तक लगभग सारे लोन रेपो रेट से ही लिंक होते हैं. अब जब बैंकों को केंद्रीय बैंक से ज्यादा ब्याज पर पैसा मिलता है, तो वह अपने ग्राहकों को भी ज्यादा ब्याज पर लोन देते हैं. ब्याज दर बढ़ने से लोन की डिमांड कम होती है और इससे मार्केट में मनी फ्लो घटता है. मनी फ्लो घटने से महंगाई को काबू लाने में मदद मिलती है.

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