पानी के अंदर कैसे बनती है टनल, कोलकाता अंडरवाटर मेट्रो से समझें | underwater… – भारत संपर्क
कोलकाता अंडरवाटर मेट्रो पूरी तरह वाटरप्रूफ है.Image Credit source: PTI
Kolkata Underwater Metro Project: भारत की पहली अंडरवाटर मेट्रो कोलकाता में शुरू हो गई है. कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद कोलकाता मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (KMRCL) की टीम ने ये उपलब्धि हासिल की. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंडरवॉटर मेट्रो का उद्घाटन किया. यह मेट्रो लाइन पूर्व और पश्चिम कोलकाता को आपस में जोड़ती है. हुगली नदी के नीचे सुरंग बनाने के लिए कोलकाता मेट्रो की टीम ने दिन-रात काम किया, तब जाकर भारत को पहली अंडरवाटर मेट्रो का गौरव प्राप्त हुआ.
कोलकाता मेट्रो ने नदी के नीचे सुरंग बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है. इसके लिए उन देशों की स्टडी की गई जहां अंडरवाटर मेट्रो चलती है. हुगली नदी के नीचे सुरंग बनाना एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि इसके लिए 12 मंजिला इमारत जितनी खुदाई करनी थी. टेक्नोलॉजी की मदद से कोलकाता मेट्रो ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया.
10 मंजिला इमारत से ज्यादा गहरी टनल
हुगली में लगभग आधा किलोमीटर तक पानी की सतह के नीचे 10 मंजिला इमारत से ज्यादा गहरी लाइन बिछाना आसान नहीं था. इसके लिए कंक्रीट की सेगमेंटल टनल लाइनिंग का इस्तेमाल किया गया, जो बहुत मोटी हैं.
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पानी लीक ना हो इसके लिए नियोप्रीन और हाइड्रोफिलिक रबर के मिक्स के कंपोजिट गैसकेट से सुरंग को सील किया गया. मॉडर्न टेक्नोलॉजी का यह चमत्कार भारत में पहली बार होने के साथ-साथ दुनिया के लिए भी दुर्लभ है.
दुनिया की सबसे पहली अंडरवाटर ट्रेन टनल
पानी के नीचे से गुजरने वाली दुनिया की सबसे पहली सुरंग थेम्स टनल (निर्माण वर्ष 1825-1843) है. यह इंग्लैंड के लंदन में थेम्स नदी के नीचे से गुजरती है. वहीं, लीवरपूल की मर्सी रेलवे टनल (निर्माण वर्ष 1881-1886) भी इंग्लैंड में है, जो दुनिया की पहली अंडरवाटर रेलवे टनल है.
अब उस टेक्नोलॉजी और एक्सपर्टीज के बारे में सोचें जो पानी के नीचे से मेट्रो निकालने के लिए चाहिए. नदी के नीचे से मेट्रो के सफर को मुमकिन बनाने के लिए सबसे पहले यूरोस्टार पर गौर किया गया. यूरोस्टार चैनल टनल को पार करते हुए लंदन को पेरिस से जोड़ती है.
ऐसे बनी कोलकाता की अंडरवाटर मेट्रो
चैनल टनल ब्रिटेन और फ्रांस के बीच इंग्लिश चैनल के नीचे बनी है. कोलकाता मेट्रो ने हुगली नदी के नीचे टनल बनाने के लिए लंदन और पेरिस वाली यूरोस्टार की टेक्नोलॉजी को स्टडी किया.
अंडरवाटर मेट्रो को लेकर कोलकाता मेट्रो ने काफी अनिश्चिताओं का सामना किया. KMRCL ने प्लानिंग स्टेज पर ही लोगों की असुविधा दूर करने के लिए टेक्नोलॉजी का सहारा लिया. यह ध्यान में रखते हुए कि ऐसा करने से मेट्रो लाइन बनाने की लागत काफी बढ़ सकती है.
कॉरिडोर के अंडरग्राउंड हिस्से के लिए टॉप-डाउन कट और कवर प्रोसेस (जिसे लोगों ने नॉर्थ-साउथ मेट्रो के निर्माण के दौरान अनुभव किया है) के बजाय लेटेस्ट बोरिंग प्रोसेस को अपनाया गया.
टनल को बोर करने के लिए “अर्थ प्रेशर बैलेंस” टनल बोरिंग मशीनें (TBN) विदेशों से मंगवाई गई. लगभग 2 मंजिला ऊंची बोरिंग मशीनें एक दिन में 15 मीटर तक बोरिंग करने में सक्षम थीं. बोरिंग मशीनों से दिन में 500 वर्ग मीटर तक जमीन की खुदाई की गई.
कोलकाता मेट्रो की अंडरवाटर लाइन पूरी तरह वाटरप्रूफ है. इसे हाइड्रोफिलिक गास्केट के जरिए पूरी तरह सील किया गया है.
अंडरवाटर टनल के लिए जरूरी बातें
पानी के नीचे टनल बनाना काफी कठिन काम है, जिसके लिए हाई-लेवल इंजीनियरिंग की जरूरत होती है. सुरंग बनाते समय कर्मचारियों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम भी करना पड़ता है. दुनिया भर में अंडरवाटर टनल बनाने के लिए इन बातों का ख्याल रखा जाता है-
वॉटरप्रूफिंग: पानी के नीचे सुरंगों को पूरी तरह से वॉटरप्रूफ बनाने के लिए डिजाइन किया जाता है. पानी को सुरंग में आने से रोकने के लिए एडवांस वॉटरप्रूफिंग मैटेरियल और कंस्ट्रक्शन टेक्निक का इस्तेमाल होता है.
इमरजेंसी एक्जिट: अंडरवाटर टनल में आमतौर पर सुरंग की लंबाई के साथ कई इमरजेंसी एक्जिट होते हैं, जिनका इस्तेमाल आपातकालीन स्थिति में किया जा सकता है.
इमरजेंसी लाइट अरेंजमेंट: बिजली जाने या दूसरी आपातकालीन स्थिति के मामले में विजिबिलिटी और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पानी के नीचे की टनल को इमरजेंसी लाइटिंग से लैस किया जाता है.
वेंटिलेशन और एयर क्वालिटी: अंडरवाटर टनल में एडवांस वेंटिलेशन सिस्टम होता है, जो सुरंग से सफर करने वालों के लिए आरामदायक और सेफ एनवायरेनमेंट बनाए रखने में मदद करते हैं. वेंटिलेशन सिस्टम सुरंग के अंदर हवा की क्वालिटी की भी निगरानी करता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सांस लेने के लिए हवा सुरक्षित है.
आग से बचाव: टनल में फायर सप्रेशन सिस्टम यानी अग्नि शमन प्रणालियां होती हैं, जिनमें फायर अलार्म, स्प्रिंकलर और अन्य सिस्टम शामिल रहते हैं. आग लगने की स्थिति में आग पर जल्दी काबू पाने और बुझाने के लिए ये सिस्टम काम आते हैं.
पानी का दबाव: पानी में टनल को पानी के उच्च दबाव का सामना करना पड़ता है. इसलिए टनल को प्रेशर रिलीफ सिस्टम से लैस किया जाता है. इससे ज्यादा वाटर प्रेशर होने पर टनल सुरक्षित रह सके.
मेंटनेंस और इंसपेक्शन: टनल की सुरक्षा का ख्याल रखने के लिए नियमित रखरखाव और निगरानी जरूरी है. इंजीनियर और टेक्निशियन नुकसान या टूट-फूट के संकेतों के लिए नियमित रूप से सुरंगों का निरीक्षण करते हैं. जरूत पड़ने पर टनल के कंपोनेंट्स की मरम्मत की जाती है, या बदल दिए जाते हैं.