राजा भोज से लेकर खिलजी तक…मकबरा या विद्यालय; धार की भोजशाला की कहानी | mp… – भारत संपर्क

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राजा भोज से लेकर खिलजी तक…मकबरा या विद्यालय; धार की भोजशाला की कहानी | mp… – भारत संपर्क

भोजशाला मंदिर- कमाल मौलाना मस्जिद मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित है. फोटो-STR / AFP
मध्य प्रदेश के धार जिले की ऐतिहासिक भोजशाला एक बार फिर से सुर्खियों में है. हाई कोर्ट की ओर से भोजशाला मंदिर के परिसर का वैज्ञानकि सर्वे करने का आदेश दिया गया है. भोजशाला को परमार कालीन माना जाता है. इतिहासकारों के अनुसार, राजा भोज ने 1034 में धार में सरस्वती सदन के रूप में भोजशाला रूपी महाविद्यालय की स्थापना की थी, जहां पर देश-विदेश से विद्यार्थी ज्ञान की आस में शिक्षा ग्रहण करने आते थे.
यहां पर मां सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति भी स्थापित की गई थी. इसके बाद 13वीं 14वीं सदी में मुगलों का आक्रमण हुआ और 1456 में महमूद खिलजी ने उक्त स्थान पर मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया. साथ ही उक्त प्राचीन सरस्वती मन्दिर भोजशाला को ढहा कर उन्हीं अवशेषों से उक्त भोजशाला का रूप परिवर्तित कर दिया. आज भी वे प्राचीन हिंदू सनातनी अवशेष भोजशाला में स्पष्ट रूप से नजर आते हैं , जिसके बाद से भोजशाला मुक्ति को लेकर विवाद जारी है.
अंग्रेजों के शासनकाल में भी खुदाई हुई
अंग्रेजों के शासनकाल में हुए सर्वे के दौरान खुदाई हुई थी. यहां पूर्व में स्थापित माता सरस्वती वाग्देवी की प्रतिमा को अंग्रेज अपने साथ लंदन ले गए, हिंदू पक्ष जहां इसे मां सरस्वती वाग्देवी का मंदिर मानते हुए यहां पूजा अर्चन करता है. वहीं मुस्लिम समाज इसे मस्जिद मानकर यहां नमाज अदा करता है और अपने-अपने दावे दोनों ही पक्ष करते आए हैं.
राजा आनन्द राव पवार चतुर्थ से कनेक्शन
जानकारों के अनुसार, उक्त भोजशाला में राज परिवार के अश्वों के लिए घास-फूस भरी जाती थी. इसके बाद तत्कालीन धार के राजा आनन्द राव पवार चतुर्थ की तबीयत बिगड़ी व सुधार न होने पर मुस्लिम समाज ने दुआओं की बात करते हुए स्थान न होने की वजह से भोजशाला में दुआओं के लिए जगह मांगी. तब दीवान खंडेराव नाटकर ने 1933 में मुस्लिम समाज को यहां पर नमाज की अनुमति दी थी. इसके बाद से और विवाद बढ़ गया और सदियों से हिंदू समाज यहां दर्शन पूजन को लेकर प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर आयोजन करता रहा वह ओर तीव्र हो गया.
भारत की स्वतंत्रता के बाद भोजशाला को लेकर विवाद और गहराता गया और मामला कानूनी लड़ाई के रूप में शुरू हो गया. उक्त विवाद ने 1995 में मामूली घटना के बाद बड़ा रूप ले लिया. इसके बाद से प्रशासन मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी. वही 1997 में प्रशासन ने भोजशाला में आम नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया और हिंदुओं को वर्ष में एक बार बसंत पंचमी पर और मुसलमान को प्रति शुक्रवार एक से तीन बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई.
2003 में हिंदुओं को फिर से पूजा करने की अनुमति मिली
प्रतिबंध 31 जुलाई 1997 तक रहा 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भोजशाला में आगामी आदेश तक प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया तथा मुसलमानों को नमाज की अनुमति जारी रही. दिग्विजय सिंह काल में लगातार विवाद व संघर्षों के बाद न्यायालयिन लड़ाई के बाद 2003 में हिंदुओं को फिर से पूजा करने की अनुमति मिल गई और पर्यटकों के लिए भी सशुल्क भोजशाला को खोल दिया गया , इसके बाद से लगातार भोजशाला को लेकर न्यायालयीन लड़ाई जारी है.
प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर आयोजित कार्यक्रमों में हिंदू समाज बढ़-चढ़कर भाग लेता है, पर शुक्रवार के दिन बसंत पंचमी पर्व के आ जाने पर कई बार विवाद की स्थिति बनती है और प्रशासन को दोनों ही पक्षों को साधने को लेकर कड़ी मशक्कत करना पड़ती रही है. इसको लेकर कई बार पूरा धार जिला तनाव में रहा है. वहीं 2003 के विधानसभा चुनाव मैं भी भोजशाला को मुद्दा बनाकर भाजपा ने बड़ी जीत प्रदेश में हासिल की थी. उमा भारती तब प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी, इसके बाद से भाजपा सरकार लंदन में म्यूजियम में रखी मां सरस्वती वाग्देवी की प्रतिमा को लाकर पुनः भोजशाला में स्थापित कर भोजशाला की पूर्ण मुक्ति की बात करते आ रहे हैं.

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