14 मार्च 2001 की ‘वो घटना’ जिसके बाद फॉलोऑन देने से पहले सौ बार सोचती है बड… – भारत संपर्क

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14 मार्च 2001 की ‘वो घटना’ जिसके बाद फॉलोऑन देने से पहले सौ बार सोचती है बड… – भारत संपर्क

क्यों फॉलोऑन देने से पहले सौ बार सोचती हैं बड़ी से बड़ी टीम? (PC-Hamish Blair/ALLSPORT/Getty Images)
हर खेल में कोई ना कोई एक ऐसी घटना होती है जो काफी कुछ बदल देती है. कभी कोई नियम बदल देती है तो कभी किसी नियम को लेकर खिलाड़ियों की सोच. लेकिन ये दुर्लभ होता है यानी बार-बार या अक्सर नहीं होता. कई-कई बरस बीत जाते हैं किसी एक ‘ट्रेंड’ के बदलने में. टेस्ट क्रिकेट में ऐसा ही एक ‘ट्रेंड’ था ‘फॉलोऑन’ का. कोई बड़े कद वाली टीम अगर पहले बल्लेबाजी करती थी तो स्कोरबोर्ड पर जमकर रन जोड़ती थी. फिर उसके गेंदबाज अपेक्षाकृत कमजोर टीम को कम स्कोर पर आउट कर देते थे. दोनों टीमों के रनों के बीच अगर फासला 200 रन या इससे ज्यादा का है तो मजबूत टीम दूसरी टीम को दोबारा बल्लेबाजी के लिए बुलाती थी. एक बार फिर उसके गेंदबाज पूरी ताकत लगाकर विरोधी टीम को 200 रन से कम में ही समेट देते थे और मैच में एक बार बल्लेबाजी करके ही मजबूत टीम जीत जाती थी. ऐसे ‘पैटर्न’ पर मिली जीत को एक पारी से मिली जीत कहा जाता था. टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में जब वेस्टइंडीज का दबदबा था तो उसने कई बार ऐसा किया. फिर जब ऑस्ट्रेलियाई टीम के दबदबे का दौर शुरू हुआ तो फिर ये देखने को मिला.
लेकिन 2001 में ऑस्ट्रेलिया के भारत दौरे पर आखिरकार वो घटना घट गई. जिस घटना ने भारत को वेरी वेरी स्पेशल लक्ष्मण दिया, द वॉल राहुल द्रविड़ दिया और एक मैच विनर गेंदबाज हरभजन सिंह दिया. साथ ही वर्ल्ड क्रिकेट को ‘फॉलोऑन’ को लेकर एक नई सोच भी दी- जब तक बहुत जरूरी ना हो फॉलोऑन से बचने में ही भलाई है.
उस रोज कोलकाता के इडेन गार्डन्स में करिश्मा हुआ था
2001 में स्टीव वॉ की कप्तानी में ऑस्ट्रेलियाई टीम भारत के दौरे पर थी. पहला टेस्ट मैच जीतने के बाद कोलकाता में दूसरा टेस्ट मैच था. ऑस्ट्रेलिया ने जैसे ही टॉस जीता तुरंत पहले बल्लेबाजी का फैसला किया. पहली पारी में स्टीव वॉ के शतक की बदौलत कंगारुओं ने 445 रन जोड़ भी दिए. इसके बाद ग्लेन मैग्रा, जेसन गिलेस्पी, माइकल कैस्प्रोविच और शेन वॉर्न ने मिलकर भारत को पहली पारी में 171 रन पर समेट भी दिया. कंगारुओं के पास करीब पौने तीन सौ रन की बढ़त थी. उन्होंने फौरन भारत को फॉलोऑन खिला दिया यानी दोबारा बल्लेबाजी के लिए बुला लिया. अभी तक सब कुछ वैसा ही चल रहा था जैसा हमने आपको कहानी की शुरूआत में बताया था. दूसरी पारी में भारतीय टीम ने थोड़ा बेहतर बल्लेबाजी की. दूसरी पारी में आउट होने से पहले शिवसुंदर दास ने 39, सदागोपन रमेश ने 30 और कप्तान सौरव गांगुली ने 48 रन बनाए. सचिन सिर्फ 10 रन बनाकर आउट हो गए थे. इस तरह 232 रन पर भारत के 4 विकेट गिर चुके थे.
अब कंगारुओं के लिए जीत का रास्ता आसान ही दिख रहा था. लेकिन मैच के चौथे दिन यानी 14 मार्च को 2001 को इतिहास रचा जाने वाला था. वीवीएस लक्ष्मण तीसरे दिन के अपने स्कोर 109 रन को 281 रन तक लेकर गए. राहुल द्रविड़ ने तीसरे दिन 7 रन पर छूटी अपनी पारी को 180 रन तक पहुंचाया. हालत ये थी कि ऑस्ट्रेलिया की करीब पौने तीन सौ रन की बढ़त को खत्म करने के बाद भारत ने कंगारुओं को 384 रन का लक्ष्य दे दिया. पहली पारी में 4 गेंदबाजों की बदौलत पूरी भारतीय टीम को समेटने वाले कंगारुओं ने दूसरी पारी में 9 गेंदबाज इस्तेमाल कर लिए लेकिन टीम इंडिया को ऑल आउट नहीं कर पाए. भारत ने 7 विकेट पर 657 रन के स्कोर पर पारी डिक्लेयर की. इसके बाद चौथी पारी के दबाव में कंगारुओं की टीम बिखर गई. हरभजन सिंह ने 6 विकेट चटकाए. उन्होंने पहली पारी में हैट्रिक भी ली थी. भारत ने ये टेस्ट मैच 171 रन के बड़े अंतर से जीत लिया.
भारत-ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट ही बदल गया
इस टेस्ट मैच के बाद बड़ी से बड़ी टीम फॉलोऑन देने में सतर्क हो गईं. अगर इस बात के थोड़े भी आसार हैं कि विरोधी टीम दूसरी पारी में ज्यादा रन बना सकती है तो उन्होंने फॉलोऑन देने की बजाए खुद ही बल्लेबाजी करके बड़ा लक्ष्य देने का प्रयास किया. इसके पीछे चौथी पारी में बल्लेबाजी के दबाव से बचना था. आप पिछले 20 साल में खेले गए तमाम टेस्ट मैच में ये ‘ट्रेंड’ पाएंगे. इसके अलावा इस एक मैच ने भारत-ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट रिकॉर्ड्स को भी बदला. यही वो दौर था जब भारतीय टीम के आर्क-राइवल के तौर पर पाकिस्तान की बजाए ऑस्ट्रेलिया की टीम दिखने लगी. 14 मार्च 2001 से पहले भारत ऑस्ट्रेलिया के बीच 58 टेस्ट मैच में सिर्फ 11 मैच भारत ने जीते थे. 29 मैच में उसे हार का सामना करना पड़ा था. यानी लगभग 20 फीसदी मैच में जीत मिली थी जबकि पचास फीसदी मैच में हार. जबकि 10 मार्च 2001 के बाद खेले गए 49 टेस्ट मैच में 21 मैच भारत ने जीते और 16 मैच ऑस्ट्रेलिया ने. बाकि मैचों का नतीजा ड्रॉ रहा. हार जीत के प्रतिशत में फर्क साफ दिखाई दे रहा है. इसीलिए 14 मार्च 2001 की तारीख को भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट मुकाबले को बदलने वाली तारीख कह सकते हैं.
ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे मार्च 2004 में जब भारतीय टीम ने पाकिस्तान को उसी के घर में कराची में वनडे में हराया और पाकिस्तान के खिलाफ उसके रिकॉर्ड्स बेहतर होते चले गए. आपको याद दिला दें कि उस मैच में पाकिस्तान को आखिरी ओवर में 10 रन चाहिए थे. भारतीय फैंस के मन में शारजाह में मियांदाद के छक्के की बुरी यादें थीं, लेकिन आशीष नेहरा ने 10 रन ‘डिफेंड’ किए और इतिहास बदल गया.

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