पुतिन विश्व मंच पर हुए और ताकतवर, पांचवी बार मिली रूस की कमान | Putin became more… – भारत संपर्क

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पुतिन विश्व मंच पर हुए और ताकतवर, पांचवी बार मिली रूस की कमान | Putin became more… – भारत संपर्क

व्लादिमीर पुतिन पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति बन गए हैं. उन्हें करीब 88 प्रतिशत वोट के साथ जीत मिली है. उनकी इस बंपर जीत से अमेरिका बौखला गया है, क्योंकि पुतिन की जीत से विश्वमंच पर अमेरिकी दादागिरी को भारी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. जीतते ही पुतिन ने स्पष्ट कर दिया कि वे नाटो (NATO) की धमकी से डरेंगे नहीं. इसके अलावा चीन से दोस्ती और मज़बूत करने की घोषणा भी पुतिन ने की है.

रूस और चीन में जितनी प्रगाढ़ता होगी, उतनी ही अमेरिका की स्थिति कमजोर पड़ती जाएगी. आर्थिक मामलों में चीन की अमेरिका के साथ गला काट प्रतियोगिता है. उधर आज की तारीख़ में रूस में नाभिकीय हथियार अमेरिका से कहीं अधिक हैं. इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन लगातार यह बात कर रहे हैं, कि पुतिन ने चुनाव में बहुत धांधली की है. लेकिन टॉम काका (अमेरिका) की शक्ति क्षीण होती जा रही है.

चीन के साथ पुतिन की निकटता

रूस में पुतिन की जीत का असर भारत पर भी पड़ेगा. एक तो भारत की रूस से बहुत पुरानी दोस्ती उसके लिए उपयोगी है, वहीं दूसरी तरफ़ चीन के साथ पुतिन की निकटता भारत के लिए समस्या भी खड़ी करेगी. वैसे इस समय भारतीय कूटनीति बहुत सफल है इसलिए निश्चय ही भारत इससे निपट लेगा. अलबत्ता पुतिन की जीत इस बात का भी संकेत है, कि इस समय पूरे विश्व में राष्ट्रवाद की आंधी चल रही है. हर देश का शासनाध्यक्ष अपने राष्ट्र की मज़बूती पर जोर दे रहा है.

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यह बात भारत पर भी लागू होती है. प्रधानमंत्री भी इसी लाइन पर सख़्ती से अमल कर रहे हैं. राम मंदिर से ले कर सीएए के अमल पर सरकार की दृढ़ता इसी बात के संकेत हैं. रूस की तरह चीन में भी घनघोर राष्ट्रवाद चल रहा है. चीन जो आज दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था है, उसके पीछे राष्ट्रपति जिनपिंग का यही कट्टर राष्ट्रवाद है.

पुतिन ने रूस को संभाला

पश्चिमी देश, ख़ासकर अमेरिका, अपने राष्ट्रवाद को लोकतंत्र की आड़ में छिपा लेते हैं लेकिन कोई और देश राष्ट्रवाद पर अमल करे तो वहां के राष्ट्राध्यक्ष को वे तानाशाह बताने लगेंगे. इसमें कोई शक नहीं कि पुतिन का व्यवहार एक तानाशाह जैसा है. लेकिन पुतिन ने रूस को संभाला भी है. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस कंगाल हो गया था. वह एक हताश और निराश देश बन गया था. वहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गईं. रूस से भारी संख्या में पलायन शुरू हुआ, किंतु पुतिन ने इस ख़त्म होते रूस को संभाल लिया.

सन 2000 में वे पहली बार राष्ट्रपति चुने गए और 2004 में दूसरी बार. चूंकि उस समय के रूसी संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति बस दो बार ही राष्ट्रपति के पद पर रह सकता है इसलिए 2008 में वे पद से हट गए. पुतिन ने अपने भरोसेमंद दिमित्री मेदवेदेव को राष्ट्रपति बनवा दिया तथा खुद प्रधानमंत्री बन गए. दिमित्री मेदवेदेव की सरकार ने राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल की बजाय छह वर्ष का कर दिया.

पुतिन ने किया संविधान संशोधन

इस संशोधन से पुतिन 2012 में फिर राष्ट्रपति बन गए और 2018 में पुनः चुने गए. 2020 में पुतिन ने एक और संविधान संशोधन किया. इसके अनुसार रूस में 2020 के बाद हुए चुनाव में जो भी व्यक्ति राष्ट्रपति का चुनाव जीतेगा, वह लगातार दो बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ सकता है. चूंकि 2020 के बाद का यह पहला चुनाव है इसलिए पुतिन 2030 का चुनाव भी लड़ेंगे. यानी अब वे 2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं.

उनके इस संशोधन से पश्चिमी देशों ने बवाल मचाया किंतु रूस में राजनीतिक खुलापन नहीं है इसलिए उनका संशोधन अमल में आ गया. कुछ ऐसी ही स्थिति चीन में है. हालांकि चीन में एक ही पार्टी का शसान है और वह कम्युनिस्ट पार्टी. इसलिए चीन में एक तरह की पार्टी की तानाशाही है. और अब तो वहां पार्टी पर शी ज़िनपिंग का पूरी तरह कमांड है.

युद्ध के बावजूद पुतिन लोकप्रिय

रूस में पुतिन के ख़िलाफ़ तीन और प्रत्याशी मैदान में थे. कम्युनिस्ट पार्टी के निकोलाई खरीनदोव के अलावा लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी भी. मगर इनमें से कोई भी 50 प्रतिशत के निकट नहीं पहुंच सका. इस तरह पुतिन ने चुनाव जीत कर यह साबित कर दिया कि यूक्रेन से चल रहे युद्ध के बावजूद पुतिन अभी वहां पर्याप्त लोकप्रिय हैं.

यूक्रेन के साथ रूस की लड़ाई 22 फ़रवरी 2022 को शुरू हुई थी. इसमें कोई शक नहीं कि पुतिन ने रूस में सत्ता के इर्द-गिर्द एक ऐसी घेराबंदी कर दी है कि कोई भी व्यक्ति या दल उन्हें चुनौती नहीं दे सकता. एलेक्स नवलनी ने पुतिन की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश की थी परंतु 16 फ़रवरी 2024 को उनकी हत्या हो गई. इससे ब्लादीमीर पुतिन के रास्ते का एक बड़ा रोड़ा साफ़ हो गया था. और वो सहज ही चुनाव जीत गए.

प्रखर राष्ट्रवाद पर सारा जोर

1993 के संविधान के अनुसार रूस अब एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य है. वहां अब सोवियत संघ की तरह कम्युनिस्ट तानाशाही नहीं है. पर पुतिन ने इस ढांचे को पूरी तरह बदल दिया है. सेना, पुलिस, न्यायपालिका पर उनका अधिकार है. और इसके पीछे है रूसी राष्ट्रवाद की प्रखरता. उनकी संयुक्त रूस पार्टी का सारा जोर प्रखर राष्ट्रवाद पर है. हालांकि पूरी ताकत लगाने के बाद भी पुतिन यूक्रेन को खत्म नहीं कर सके.

अमेरिका समेत सभी पश्चिमी देश इसे पुतिन की पराजय बात रहे हैं लेकिन इसे ही पुतिन ने अपना हथियार बनाया. इसके बहाने उन्होंने रूसी राष्ट्रवाद को उकसाया. नतीजा उनके अनुकूल मिला और पुतिन लगभग 88 प्रतिशत वोट पा गए. पुतिन की यह जीत नाटो देशों के लिए झटका है. जीत के बाद सबसे पहले चीन के साथ अपनी प्रगाढ़ता ज़ाहिर कर उन्होंने अमेरिका को बता दिया है, कि उन्हें परास्त करना महाबली के वश का नहीं.

भारत के विरुद्ध षड्यंत्र

रूस भारत का परखा हुआ दोस्त है, भले उसका झुकाव एशिया में चीन की तरफ़ हो मगर युरोप-अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों के मद्देनज़र वह भारत का मित्र बना रहेगा. तेजी से विकसित होता हुआ भारत कभी भी अमेरिका को रास नहीं आया. पहले पाकिस्तान को उकसा कर वह भारत के विरुद्ध षड्यंत्र करता रहता था, अब चीन के ख़िलाफ उसे एक ऐसा दोस्त चाहिए जो चीन के टक्कर का हो. ऐसे में भारत हर तरह से सक्षम है. लेकिन भारत की मौजूदा कूटनीति के आगे अमेरिका भारत को हथियार की तरह इस्तेमाल नहीं कर पा रहा.

इसकी सबसे बड़ी वज़ह यह है, भारत में निरंतर मज़बूत होता हुआ राष्ट्रवाद. हालांकि कई क्षेत्रीय दल भारत के अंदर की उप राष्ट्रीयताओं का मुद्दा उछाल कर इस मज़बूती को तोड़ने का प्रयास करते हैं. मगर पिछले कुछ वर्षों की सख़्ती उन्हें सफल नहीं होने देती.

भारत में भी राष्ट्रवाद की भावना प्रबल

ऐसे माहौल में ब्लादीमीर पुतिन का राष्ट्रपति का चुनाव जीत जाना भारत के अंदर भी राष्ट्रवाद की भावना को प्रबल करेगा. इसका लाभ 18वीं लोकसभा चुनाव में दिखेगा. जो भी राजनीतिक दल अपने कील-कांटें दुरुस्त कर लेगा, वही मज़बूत दिखाई पड़ेगा. साथ ही यह वह समय है, जब वैश्विक चालबाज़ियों से लड़ने के लिए कोई ऐसी सरकार हो, जो पश्चिमी देशों की आंखों में आंखें डाल कर उनसे बात कर सके. पुतिन की जीत से भारत के हौसलों को और उड़ान मिली है.

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