मांस खाने से क्या है जलवायु परिवर्तन का कनेक्शन? UN एजेंसी से खफा हुए पर्यावरणविद् |… – भारत संपर्क


UN एजंसी के रोडमैप में मांस के सेवन को कम करना शामिल है.
संयुक्त राष्ट्र की कृषि एजेंसी (FAO) पर पर्यावरण संगठनों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. हाल ही में UN एजेंसी ने जलवायु संकट से निपटने के लिए रोडमैप रिपोर्ट जारी की थी. रोडमैप में कम मांस खाने की सिफारिश शामिल न होने से कुछ पर्यावरण संगठन भड़क गए हैं. सोमवार को ‘नेचर फूड जर्नल’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पर्यावरण वैज्ञानिकों ने कहा, “1.5 डिग्री जलवायु परिवर्तन सीमा को क्रॉस किए बिना दुनिया से भुखमरी कैसे खत्म की जाए इसके लिए UN एजेंसी की रिपोर्ट काफी नहीं है.”
बता दें 2015 में पेरिस जलवायु समझौते के तहत दुनिया के कई देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमती बनाई थी. पर्यावरण वैज्ञानिकों का आरोप है कि UN एजेंसी द्वारा जारी किए गए रोडमैप में पर्यावरण और स्वास्थ्य सुधारों के लिए जरूरी चीजों को छोड़ दिया गया है, जिनमें खासकर मांस के सेवन को कम करना शामिल है.
मांस का कम सेवन जलवायु सुधार के लिए जरूरी
कई रिसर्च बताती हैं कि कम मांस खाना जलवायु परिवर्तन से निपटने के साथ-साथ सेहत के लिए भी फायदेमंद है. FOA ने भी पिछले साल दिसंबर में कहा था कि इंसानों के जरिए किए जाने वाले 12 फीसदी ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के पीछे मांस खाना जिम्मेदार है और मांस की खपत बढ़ने के साथ ही इसका प्रभाव भी बढ़ेगा. लेकिन UN एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट के 120 बिंदुओं में मांस और डेयरी का कम उत्पादन या खाना शामिल नहीं किया है. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे उत्सर्जन में काफी कमी आ सकती है, वे मानते हैं अगर अमेरिका, ओशिनिया और यूरोप में मांस खपत कम हो जाए तो इसका पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ेगा. बता दें नेचर फूड जर्नल ने अपनी रिपोर्ट को अमेरिका, नीदरलैंड और ब्राजील के शैक्षणिक संस्थानों के वैज्ञानिकों के हवाले से प्रकाशित की है.
ये भी पढ़ें
2023 रहा सबसे गर्म साल
धरती के टेम्परेचर में साल दर साल बढ़ोत्तरी हो रही है. जलवायु परिवर्तन को काबू करने के लिए लागू की जाने वाली नीतियां बेअसर दिखती नजर आ रही हैं. वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (WMO) की हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि साल 2023 पिछला दशक (2014-23) का सबसे गर्म साल रहा है.