मॉस्को पर हमले के बाद भड़का रूस, आतंकवादियों के लिए ‘मौत के बदले मौत’ की सजा की मांग |… – भारत संपर्क

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मॉस्को पर हमले के बाद भड़का रूस, आतंकवादियों के लिए ‘मौत के बदले मौत’ की सजा की मांग |… – भारत संपर्क
मॉस्को पर हमले के बाद भड़का रूस, आतंकवादियों के लिए 'मौत के बदले मौत' की सजा की मांग

मॉस्को हमले के बाद रूस में मौत की सजा को वापस लाने की मांग तेज

रूस में मॉस्को कॉन्सर्ट हॉल पर हुए हमले के बाद देश से मौत की सजा को वापस लाने की मांग की जा रही है. लोगों का मानना है इस घटना ने आतंकवाद के खिलाफ और विरोधी नीतियों के प्रति सामाजिक चिंता को बढ़ा दिया है. हालांकि इसको कानून को लेकर कई लोगों ने चिंता जाहिर की है. उनका कहना है सरकार इसका दुरूपयोग करेगी. क्रेमलिन के विरोधी और यूक्रेन के समर्थकों को निशाना बनाने के लिए ये कानून लाया जा रहा है.

आपको बता दें रूस में मौत की सजा पर रोक है. लेकिन इस हमले के बाद लोगों ने इस कानून को फिर से लागू करने की मांग की है. सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है. हालांकि सरकार ने अभी इस पर अभी कोई फैसला नहीं किया है. राजनीतिक विवाद के बीच सरकार का कहना है हम सोच समझकर फैसला लेंगे. मॉस्को कॉन्सर्ट हॉल पर हुए हमले में 130 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इस हमले में बंदूकधारियों ने इस इमारत पर हमला किया कर दिया था. हमले के बाद रूस की संसद और अधिकारियों ने सुरक्षा के मामले पर गंभीरता से विचार किया है.

मौत के बदले मौत

रूसी स्टेट ड्यूमा की सुरक्षा समिति के उप प्रमुख, यूरी अफोनिन, ने शनिवार को एक बड़ा बयान देते हुए कहा जब आतंकवाद और हत्या के मामले आते हैं, तो मौत की सजा को फिर से लाना जरूरी होता है. पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव, जो अब सुरक्षा के उप प्रमुख और ड्यूमा के स्पीकर व्याचेस्लाव वोलोडिन के निकट सहयोगी हैं. उन्होंने शुक्रवार को कहा, कि मौत के बदले मौत ही आतंकवादियों के लिए सही कानून है. उनके इस नारे का समर्थन रूस की संसद में पुतिन समर्थक पार्टियों के नेताओं ने भी किया.

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विरोधियों को करेंगे टार्गेट

स्वतंत्र मीडियाजोना समाचार साइट के अनुसार, अधिकारियों ने 2023 में रिकॉर्ड 143 आतंकवाद से संबंधित आपराधिक मामले खोले है. जो 2018 से एक साल पहले 20 से भी कम थे. इस महीने की शुरुआत में रूस की वित्तीय निगरानी संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय एलजीबीटी आंदोलन को अपनी आतंकवादियों और चरमपंथियों की काली सूची में शामिल कर लिया है. महिला अधिकार प्रचारक एलोना पोपोवा ने शनिवार को टेलीग्राम पर कहा है कि अभी कितने लोग जेल में हैं, जो किसी भी तरह से आतंकवादी नहीं हैं? राजनीतिक समीक्षकों ने इस कानून पर चिंता व्यक्त की है उनका मानना है कि क्रेमलिन के विरोधियों और यूक्रेन के समर्थकों को लक्ष्य बनाने के लिए इस कानून की दोबारा मांग की जा रही है.

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