31 मार्च को ही क्यों खत्म होता है वित्त वर्ष, 31 दिसंबर को…- भारत संपर्क

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31 मार्च को ही क्यों खत्म होता है वित्त वर्ष, 31 दिसंबर को…- भारत संपर्क
31 मार्च को ही क्यों खत्म होता है वित्त वर्ष, 31 दिसंबर को क्यों नहीं? ये हैं 4 कारण

31 मार्च को ही क्यों खत्म होता है वित्त वर्ष?

हर साल की तरह इस बार भी 31 मार्च को वित्त वर्ष की क्लोजिंग है. इस बार FY 2023-24 की क्लोजिंग होनी है. इस दौरान टैक्सपेयर्स उस समय पीरियड के दौरान अपने कमाई और खर्च का ब्योरा सरकार को बताते हैं. उसमें अगर उनकी कमाई टैक्स के दायरे में आती है तो टैक्स भी भरना पड़ता है. फिर 1 अप्रैल से नया साल शुरू हो जाता है. ऐसा आजादी के बहुत पहले से होता आ रहा है. समय के साथ सिर्फ टैक्स स्लैब में बदलाव हुआ.

अब 3 लाख रुपए तक की कमाई को टैक्स फ्री कर दिया गया है, लेकिन फाइनेंशियल साइकिल को आज भी वही रखा गया है. इतना ही नहीं अब टैक्स के दो रिजीम बना दिए गए हैं. एक पूरानी टैक्स रिजीम और दूसरा नई टैक्स रिजीम. पुरानी टैक्स रिजीम के तहत 2.5 लाख रुपए तक की कमाई टैक्स के दायरे से बाहर है. जबकि नई टैक्स रिजीम के तहत 3 लाख रुपए तक की कमाई को टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है. ये तो हो गई टैक्स की बेसिक बात. अब चलिए एक नजर वित्तीय वर्ष के महीनों में बदलाव ना होने के पीछे के कारण पर डाल लेते हैं.

क्या हैं इसके पीछे के कारण?

1. 1 अप्रैल से नए वित्त वर्ष शुरू करने का नियम ब्रिटिश काल से चलता आ रहा है, क्योंकि यह उनके लिए सुविधापूर्ण था. इसलिए उन्होंने ऐसा किया. देश जब आजाद हो गया तब भी इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया. संविधान में भी वित्त वर्ष के समय को मार्च-अप्रैल महीना ही रखा गया है.

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2. भारत एक कृषि प्रधान देश है, इसलिए फसल चक्र को ध्यान में रखते हुए 31 मार्च को क्लोजिंग रखी गई है. इस समय नई फसल लगाई जाती है, और किसान पुरानी फसल को काट कर बाजार में बेचते हैं, जिससे उन्हें थोड़ी कमाई होती है, तो वह उस हिसाब से अपना लेन-देन उस वित्त वर्ष में लेखा-जोखा तैयार करते हैं, और जैसे ही नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत होती है किसान नए फसल की बुआई शुरू कर देते हैं.

3. कई लोगों के मन में यह सवाल आता है कि दिसंबर महीने में क्लोजिंग क्यों नहीं होती है? दरअसल, दिसंबर महीने में क्लोजिंग ना रखने का एक रीजन त्योहार के चलते अत्यधिक बिजी शेड्यूल का होना है, जिससे क्लोजिंग में दिक्कत आती है. इसलिए इसे दिसंबर महीने में नहीं रखा गया है.

4. आखिरी कारण यह है कि कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि भारत में 1 अप्रैल हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है. इसलिए ऐसा किया गया है. इस दौरान लोग अपने कार्यशैली में भी बदलाव करते हैं. बाकि इस कारण के बारे में संविधान में कोई जानकारी नहीं मिलती है कि इसी वजह से वित्त वर्ष का महीना मार्च-अप्रैल तय किया गया है.

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