लोकसभा चुनाव 2019: यूपी में कैसा रहा राजनीतिक पार्टियों का परफॉर्मेंस? जाने… – भारत संपर्क
लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश में किस पार्टी को कितने मिले थे वोट?
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक पार्टियां जमकर चुनाव प्रचार कर रही हैं और मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पसीना बहा रही हैं. जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 400 पार का नारा बुलंद किए हुए हैं, वहीं विपक्षी इंडिया गठबंधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए रणनीति बनाने में जुटा है. सभी की नजरें उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई हैं क्योंकि देश में सबसे ज्यादा 80 सीटें इसी सूबे में हैं. ये कहा जाता रहा है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है.
बीजेपी दावा कर रही है कि इस बार उत्तर प्रदेश में वह क्लीन स्वीप करने वाली है, जबकि सूबे की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी का कहना है कि देश बचाने के लिए भगवा पार्टी को किसी भी सूरत में हराना है. पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में सपा-बसपा और आरएलडी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिससे बीजेपी को कुछ हद तक नुकसान जरूर हुआ था. वहीं, सपा को भी नुकसान उठाना पड़ा था और मायावती की पार्टी को फायदा पहुंचा था. आइए आपको बताते हैं कि यूपी में 2019 के लोकसभा चुनाव में किस तरह के सियासी समीकरण देखने को मिले थे?
यूपी में बीजेपी का गठबंधन अपना दल (सोनेलाल) से था और पार्टी ने 80 में 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि उसके सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) को 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. कुल मिलाकर एनडीए के खाते में 64 सीटें गई थीं, लेकिन 2014 के चुनाव के मुकाबले उसे 9 सीटों का नुकसान हुआ था. बीजेपी ने 78 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसका वोट लगभग साढ़े सात फीसदी बढ़ गया था. एनडीए को 51.19 फीसदी वोट मिला था, जिसमें बीजेपी 49.98 फीसदी मत हासिल करने में कामयाब हो गई थी.
बसपा की चमक गई थी किस्मत, सपा को उठान पड़ा घाटा
एसपी, बसपा और आरएलडी ‘महागठबंधन’ ने सभी सियासी समीकरण को गलत साबित कर दिया था. ‘महागठबंधन’ के खाते में 15 सीटें गई थीं. अखिलेश यादव की पार्टी सपा को 5 सीटें मिली थीं, जबकि बहुजन समाज पार्ट को बड़ा फायदा पहुंचा था. जहां उसका 2014 के लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला था उसे 10 सीटें जीतने में सफलता मिली, लेकिन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे आरएस कुशवाहा हार गए थे. आरएलडी को एक भी सीट नहीं मिली. उसके उम्मीदवारों ने तीन सीटों पर ताल ठोंकी थी. महागठबंधन को 39.23 फीसदी वोट मिला, जिसमें सपा के हिस्से में 18.11 फीसदी, बसपा के हिस्से में 19.43 फीसदी और आरएलडी के हिस्से में 1.69 फीसदी वोट आया.
मायावती की पार्टी बसपा से गठबंधन करने का नतीजा रहा कि अखिलेश यादव को चुनाव में दो सीटों का घाटा उठाना पड़ा. उन्होंने सूबे की 37 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और 32 सीटों पर सपा के प्रत्याशी हार गए थे. सपा ने मैनपुरी, संभल, रामपुर, आजमगढ़ और मुरादाबाद सीटें जीत ली थीं. मैनपुरी लोकसभा सीट सपा की सुरक्षित सीट मानी जाती है और यहां भी कड़ी टक्कर देखने को मिली थी. पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव सीट बचाने में सफल हो गए थे.
यादव परिवार को लगा था बड़ा झटका
सपा प्रमुख अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनावी अखाड़े में उतरे थे और विजयी हो गए थे. बाद में उन्होंने ये सीट छोड़ दी थी और फिर उपचुनाव में बीजेपी जीती. वहीं, कन्नौज सीट पर अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को टिकट दिया था और उन्हें बीजेपी प्रत्याशी सुब्रत पाठक ने हराया था. बदायूं से यादव परिवार के धर्मेंद्र यादव हार गए थे और फिरोजाबाद में पार्टी के अक्षय यादव को भी हार का सामना करना पड़ा था.
यूपी में कांग्रेस की बुरी हार हुई थी. उसने सूबे की 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से उसके 69 प्रत्याशी हार गए थे. उसे मात्र 6.36 फीसदी वोट मिले थे. 2014 लोकसभा चुनाव के मुकाबले उसका वोट 1.17 फीसद कम हो गया था. एक मात्र रायबरेली सीट से सोनिया गांधी जीत हासिल कर सकी थीं. पार्टी की सबसे बड़ी हार उसके अपने गढ़ अमेठी में हुई थी, जहां से राहुल गांधी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से हार गए थे. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे राजबब्बर भी हार गए थे.
पीएम मोदी को मिले रिकॉर्ड वोट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस सीट से 2014 के मुकाबले 2019 के लोकसभा में रिकॉर्ड वोट हासिल किए थे. उन्हें 6 लाख 74 हजार 664 वोट मिले थे. वहीं, राजनाथ सिंह ने लखनऊ सीट से अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत को दोबारा अपने नाम किया था. पार्टी के सभी केंद्रीय मंत्री चुनाव जीतने में सफल हो गए थे. मोदी सरकार में मंत्री और सहयोगी अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर सीट से जीतने में कामयाब रही थीं. साथ ही साथ रॉबर्ट्सगंज से अपने उम्मीदवार को भी जिताया था. हालांकि योगी सरकार में मंत्री रहे चार प्रत्याशी चुनाव हारे थे, जिसमें मुकुट बिहारी वर्मा शामिल थे. उन्हें अबेडकरनगर में हार का सामना करना पड़ा था.