Jaanein homoeopathy ke 6 siddhanth,- जानें होम्योपैथी के 6 सिद्धांत
उपचार के लिए आप भले ही तत्काल कोई दवा ले लें, मगर जब भी समस्या के जड़ से समाधान की बारी तो हम पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की ही खोज करते हैं। वर्ल्ड होमियोपैथी डे पर जानें पारंपरिक चिकित्सा पद्धति होमियोपैथी के सिद्धांत
लाइफस्टाइल में हो रहे अच्छे और बुरे बदलाव सबसे ज्यादा सेहत को प्रभावित करते हैं। जिससे शरीर धीरे धीरे कई समस्याओं का शिकार होता चल जाता है। उपचार के लिए आप भले ही तत्काल कोई दवा ले लें। मगर जब भी समस्या के जड़ से समाधान की बारी तो हम पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की ही खोज करते हैं। ऐसी ही एक पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है होमियोपैथी। वर्ल्ड होमियोपैथी डे पर आइए जानते हैं इसे साइड इफेक्ट फ्री उपचार पद्धति के बारे में कुछ जरूरी तथ्य।
विश्व होम्योपैथी दिवस 2024
हर साल 10 अप्रैल को होम्योपैथी के संस्थापक डॉ हैनिमैन के जन्मदिवस के मौके पर विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है। सालाना मनाए जाने वाले इस विशेष दिन का मकसद लोगों में होम्योपैथी के फायदों की जानकारी साझी करना है। विश्व होम्योपैथी दिवस 2024 की थीम “एम्पावरिंग रिसर्च, एन्हांसिंग प्रोफिशिएंसी ए होम्योपैथी सिम्फोज़ियम” है।
होम्योपैथी की शुरूआत कैसे हुई
होमीयोपैथी की शुरूआत जर्मनी में 1700 ईवी में हुई। डॉ. सैमुअल हैनमैन एक जर्मन चिकित्सक थे और उन्होंने ऑर्गेनॉन ऑफ द हीलिंग आर्ट बुक में होम्योपैथी से जुड़ी ज़रूरी जानकारी दर्ज की। इसके चलते अब दुनियाभर के लोग इस चिकित्सक पद्धति का लाभ उठा रहे हैं। आज के जमाने में जहां अधिकतर लोग एलोपैथी पर भरोसा करते हैं। वहीं होम्योपैथी पर भरोसा करने वालों की तादाद भी तेज़ी से बढ़ रही है।
होम्योपैथी कैसे काम करती है
होमियोपैथी के विशेषज्ञ और डॉ बत्रा ग्रुप ऑफ़ कम्पनी के फाउंडर डॉ मुकेश बत्रा बताते हैं कि होम्योपैथी वैक्सीन की तरह ही शरीर के लिए काम करती है। अब जैसे वैक्सीन में थोड़ी मात्रा में बैक्टीरिया एड किया जाता है और शरीर उसके अगेंसट रिएक्ट करता है। इससे शरीर का इम्यून सिस्टम नेचुरली बिल्ड होने लगता है। ठीक एसी प्रकार से होम्योपैथी भी अपना कार्य करती है। इस चिकित्सा पद्धति में बीमारी के लक्षण को ही उपचार का आधार बनाया जाता हैं। ये नॉन कम्यूनिकेबल क्रानिक डिज़ीज़ में अच्छी तरह से काम करती है।
वायरल और लाइफस्टाइल डिसऑर्डर में होम्योपैथी फायदेमंद साबित होती है। माइंड और बॉडी से जुड़ी समस्याएं जैसे एलर्जी, मेंटल प्रॉबल्म, स्किन संबधी समस्या डर्माटाइटिस, माइग्रेन, अस्थमा और अर्थराइटिस में कारगर है। जब होम्योपैथी की शुरूआत हुई उस वक्त दवाओं की संख्या केवल 200 थी जो अब बढ़कर 2000 से ज्यादा हो चुकी है। विदेशों में होम्योपैथी खासतौर से पसंद की जाती है।
जानें होम्योपैथी के 6 सिद्धांत
1. सिंगल रेमेडी
होम्योपैथी सिंगल रेमेडी यानि एकल उपाय के सिद्धांत को फॉलो करती है। एक सिंगल मेडिसिन शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक लक्षणों से ग्रस्त व्यक्ति का इलाज करने में मदद करती है। इंटरनल हीलिंग मकेनिज्म को फॉलो करने वाली होम्योपैथी में एक समय में एक ही दवा दी जाती है। चिकित्सक उस दवा के असर के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचते हैं।
2. मिनिमम डोज़
इस चिकित्सा पद्धति में पहलक न्यूनतम खुराक के सिद्धांत को अपनाया जाता है। इसमें पहले रोगी को कम खुराक दी जाती है। होम्योपैथिक उपचार पोटेंटाइजेशन की थेयोरी पर आधारित होता है। चिकित्सकों के अनुसार इस प्रक्रिया से शरीर में केमिकल टॉक्सीसिटी कम होने लगती है और थेरेप्यूटिक इफेक्ट बढ़ने लगता है।
3. संपूर्ण स्वास्थ्य पर केंद्रित
कोई व्यक्ति जो किसी रोग से ग्रस्त है, तो उसका इलाज केवल वर्कमान स्थिति के अनुसार ही नहीं बल्कि मेडिकल हिस्ट्री के हिसाब से भी किया जाता है। होम्योपैथी का मकसद व्यक्ति को केवल उस समस्या से मुक्त करना नहीं बल्कि ओवरऑल हेल्थ को स्वस्थ बनाए रखना है।
4. लॉन्ग टर्म रिजल्टस दिलाए
अक्सर किसी एलर्जी को ठीक करने के लिए मरहम या दवा प्रिस्क्राइब की जाती है। इससे थोड़े समय के लिए समस्या रूक जाती है, मगर जड़ से खत्म नहीं हो पाती है। ऐसे में स्वास्थ्य को समस्या से मुक्त करने में होम्योपैथी कारगर उपाय है। इससे किसी भी परेशानी को दूर करने में मदद मिलती है।
5. साइड इफे्क्ट से मुक्त
सदियों से इस्तेमाल की जाने वाली होम्योपैथी दवाएं पूरी तरह से सुरक्षित है। इसे गोलियों में मिलाकर या फिर पानी के साथ भी लिया जा सकता है। ये दवाएं केमिकल्स के प्रभाव से मुक्त होती है और इससे किसी भी प्रकार की एलर्जी का कोई भी खतरा नहीं रहता है। जड़ी.बूटियों और मिनरल्स से तैयार होने वाली ये दवाएं लंबे वक्त तक खाई जाती हैं।
6. व्यक्तिगत डाइट और दवा
इस चिकित्सा पद्धति के अनुसार हर व्यक्ति का शरीर एक दूसरे से अलग है। ऐसे में सभी के लिए एक ही तरह की मील्स को तय करना संभव नहीं है। हर व्यक्ति को अलग अलग चीजों से लाइफस्टाइल डिसऑर्डर का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ही व्यक्ति के लिए अलग डाइट का चयन आवश्यक है। उसी तरह से सभी लोगों के लिए अलग दवा दी जाती है।
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