चुनाव के बीच भारत से क्यों खफा हुए विदेशी निवेशक, अप्रैल से…- भारत संपर्क
विदेशी निवेशकों ने अप्रैल के महीने में 8700 करोड़ रुपए निकाले हैं.
चुनाव के बीच भारत के शेयर बाजार में निवेश करने वाले विदेशी निवेशक खफा दिखाई दे रहे हैं. साल 2014 और उसके बाद साल 2019 के अप्रैल के महीने में ऐसा देखने को नहीं मिला, जैसा इस बार देखने को मिल रहा है. जी हां, विदेशी निवेशकों ने लोकसभा चुनाव के बीच अप्रैल के महीने में शेयर बाजार से 8700 करोड़ रुपए निकाल लिए हैं. जोकि बाजार के लिए अच्छे संकेत नहीं है. जानकारों की मानें तो मई के महीने में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल सकता है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर अप्रैल के महीने में ऐसा क्या होगा कि विदेशी निवेशकों को अपना पैसा निकालना पड़ गया. आइए इसे जरा विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं.
कुछ ऐसे देखने को मिले आंकड़ें
लगातार दो माह तक खरीदार रहने के बाद अप्रैल में विदेशी निवेशक शुद्ध बिकवाल बन गए और उन्होंने 8,700 करोड़ रुपए मूल्य के शेयर बेचे. मॉरीशस के साथ कर संधि में संशोधन से उपजी चिंताओं और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल लगातार बढ़ने से रुख में यह बदलाव देखने को मिला. डिपॉजिटरी के आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने मार्च में 35,098 करोड़ रुपए और फरवरी में 1,539 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया था. लेकिन अप्रैल में यह रुझान पलट गया और एफपीआई ने 8,700 करोड़ रुपए की शुद्ध निकासी कर ली. वर्ष 2024 के पहले चार महीनों में भारतीय शेयर बाजार में एफपीआई का कुल शुद्ध निवेश 2,222 करोड़ रुपए और ऋण या बॉन्ड बाजार में 44,908 करोड़ रुपए रहा है. आंकड़ों के मुताबिक, एफपीआई ने भारतीय इक्विटी से 8,671 करोड़ रुपए की शुद्ध निकासी की.
क्यों निकाल रहे हैं पैसा
स्मॉलकेस प्रबंधक और फिडेलफोलियो के संस्थापक किसलय उपाध्याय ने कहा कि विदेशी पूंजी की यह निकासी मार्च में भारी निवेश के बाद संतुलन साधने, लंबी अवधि के बॉन्ड में अल्पकालिक लाभ मिलने की संभावना और चुनावों के पहले निवेशकों के इंतजार करने और नजर रखने का रुख अपनाने का नतीजा है. मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के शोध प्रबंधक एवं सह निदेशक हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि मॉरीशस के रास्ते भारत में आने वाले निवेश से संबंधित कर संधि में संशोधन भी विदेशी निवेशकों को थोड़ा परेशान कर रहा है. इसके अलावा अनिश्चित वृहद-आर्थिक स्थिति और ब्याज दर दृष्टिकोण के साथ वैश्विक बाजारों से कमजोर संकेत उभरते बाजारों के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.
ये भी पढ़ें
बॉन्ड यील्ड में इजाफा
इसके अलावा तेल जैसी कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि और अमेरिका में महंगाई की ऊंची दर ने अमेरिकी फेड को फिर से ब्याज दरों को फ्रीज रखने पर मजबूर किया है. इससे बॉन्ड यील्ड में तेजी आई है जो एफपीआई को लुभा रही है. सकारात्मक कारक यह है कि शेयर बाजारों में सभी एफपीआई की बिक्री घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई), एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स) और खुदरा निवेशकों द्वारा अवशोषित की जा रही है. यही एकमात्र कारक है जो एफपीआई की बिक्री पर हावी हो सकता है. समीक्षाधीन महीने के दौरान एफपीआई ने शेयरों के अलावा डेट बाजार से भी 10,949 करोड़ रुपए निकाले.
बॉन्ड मार्केट के हालात
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि इक्विटी और ऋण बाजार दोनों में नए सिरे से एफपीआई बिक्री के पीछे वजह अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल का बढ़ना है. अमेरिकी 10-वर्षीय बॉन्ड पर प्रतिफल लगभग 4.7 प्रतिशत है जो विदेशी निवेशकों के लिए बेहद आकर्षक है. इस निकासी से पहले विदेशी निवेशकों ने मार्च में 13,602 करोड़ रुपए, फरवरी में 22,419 करोड़ रुपये और जनवरी में 19,836 करोड़ रुपये का निवेश किया था. इस तेजी को जेपी मॉर्गन सूचकांक में भारत के सरकारी बॉन्ड को जगह देने की घोषणा से दम मिला.