मुझे बहुत परेशानी होती थी…सोनाली बेंद्रे ने बताया क्यों साउथ फिल्मों में काम… – भारत संपर्क

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मुझे बहुत परेशानी होती थी…सोनाली बेंद्रे ने बताया क्यों साउथ फिल्मों में काम… – भारत संपर्क
मुझे बहुत परेशानी होती थी...सोनाली बेंद्रे ने बताया क्यों साउथ फिल्मों में काम करना था मुश्किल?

कई साउथ फिल्मों में काम कर चुकीं हैं सोनाली बेंद्रे Image Credit source: सोशल मीडिया

सोनाली बेंद्रे की ‘ब्रोकन न्यूज 2’ ओटीटी प्लेटफॉर्म ज़ी5 पर रिलीज हो चुकी है. इस सीरीज में वो जर्नलिस्ट अमीना कुरैशी का किरदार निभा रही हैं. इस सीरीज के साथ अब सोनाली का सफर खत्म हो गया है. आगे इस सीरीज का सीजन 3 बनता है तो ये कहानी श्रिया पिलगांवकर और जयदीप अहलावत के इर्द-गिर्द घूमती हुई नजर आएगी. हाल ही में ब्रोकन न्यूज 2 के दौरान टीवी9 हिंदी डिजिटल के साथ की खास बातचीत में सोनाली बेंद्रे ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए साउथ फिल्मों में काम करने के अपने अनुभव के बारे में दिलचस्प खुलासे किए.

‘पैन इंडिया’ शब्द चर्चा में आने से पहले सोनाली बेंद्रे हिंदी से लेकर मराठी, कन्नड़, तमिल और तेलुगु फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं. उन्होंने कहा, “उस समय पैन इंडिया जैसा कोई शानदार नाम तो नहीं दिया था. लेकिन हम अलग-अलग सिनेमा में काम करते थे. अमोल पालेकर के साथ मराठी फिल्म ‘अनाहत’ पर काम करना मेरे लिए एक यादगार अनुभव था…मराठी सिनेमा का दर्शक काफी अलग है. मैंने एक बेहतरीन तमिल फिल्म भी की, जो इंटरनेट कैफे से जुड़ी एक प्रेम कहानी थी. उस समय वो काफी नया और रिफ्रेशिंग विषय था. और लोगों ने इस फिल्म को बहुत प्यार दिया. इसके अलावा भी मैंने तमिल में कई फिल्में और की हैं.”

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भाषा की वजह से होती थी मुश्किल

आगे सोनाली बोलीं, “तमिल के साथ साथ मैंने तेलुगु और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. लेकिन तेलुगु सिनेमा में काम करना मैंने सबसे ज्यादा एन्जॉय किया. तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के लोग बहुत प्यारे हैं. और वहां के फिल्म सेट के बारे में मजेदार बात ये होती है कि आप जहां भी जाएं, वो सेट आपको एक जैसे ही लगते हैं. उनके सिनेमा की क्रिएटिविटी, उनका म्यूजिक और फिल्मों के लिए उनका पैशन आपको प्रेरित करता है. हालांकि साउथ के सिनेमा में मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज था उनकी भाषा. दुर्भाग्य से, हिंदी और मराठी के अलावा मैं उन सभी भाषाओं को नहीं जानती थी, जिनमें मैंने काम किया था. इसलिए मेरे लिए उन फिल्मों की शूटिंग थोड़ी स्ट्रेसफुल होती थी. कभी-कभी मुझे अर्थ समझ में आ जाता था, लेकिन शब्द याद नहीं आते थे. दरअसल जब बिना मतलब जाने मैं कोई डायलॉग बोल देती थी, तब मुझे बहुत परेशानी होती थी. क्योंकि संतुष्टि नहीं मिल पाती. और इसलिए हिंदी के मुकाबले मेरा काम वहां चार गुना बढ़ जाता था.”

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