महंगाई के आंकड़ें देख चिंता में आया RBI,क्या इस बार भी कम…- भारत संपर्क

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महंगाई के आंकड़ें देख चिंता में आया RBI,क्या इस बार भी कम…- भारत संपर्क
महंगाई के आंकड़ें देख चिंता में आया RBI,क्या इस बार भी कम नहीं होगी आपकी EMI?

आरबीआई की ब्याज दर रह सकती है अपरिवर्तित

बीते कुछ महीनों में महंगाई लगातार नीचे आई है, लेकिन ये आरबीआई की 4 प्रतिशत की लिमिट से अब भी ज्यादा है. ऐसे में जब अगले महीने आरबीआई की मौद्रिक नीति आएगी, तो क्या आम आदमी की ईएमआई कम होगी. भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति देश में चल रहे लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के ठीक बाद आनी है, ऐसे में ये भी देखना होगा कि क्या उसकी नीति पर नई सरकार का भी असर होगा?

सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में रिटेल महंगाई की दर 4.83 प्रतिशत रही है. जबकि मार्च में ये 4.85 प्रतिशत थी. यानी महंगाई की स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है. सबसे बड़ी समस्या खाने-पीने की चीजों के दाम में बढ़ोतरी होना है. खुदरा महंगाई के आधार पर ही भारतीय रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति तय करता है.

क्या कम होगी आपकी EMI?

महंगाई की स्थिति को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने बीते एक साल से भी ज्यादा वक्त से रेपो रेट (नीतिगत ब्याज दर) को 6.5 प्रतिशत पर रखा है. आरबीआई की कोशिश है कि महंगाई दर को 4 प्रतिशत के दायरे में लाया जाए. हालांकि ये उसकी अपर लिमिट 6 प्रतिशत से नीचे आई है. ऐसे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि आरबीआई इस पर भी यानी जून में मौद्रिक नीति समिति की बैठक में ब्याज दरों को यथावत रखने का फैसला ले सकता है. इतना ही नहीं इकोनॉमिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि आरबीआई का अभी जो हस्तक्षेप वाला रुख है, ये भी अगस्त की मौद्रिक नीति में जाकर ही तटस्थ होगा.

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आरबीआई का रेपो रेट असल में आम आदमी की लोन की ईएमआई पर सीधा असर डालता है. अगर आरबीआई रेपो रेट कम करता है, तो बैंकों की कैपिटल कॉस्ट कम होती है. इसकी वजह से वह लोन पर ब्याज दर कम करते हैं और फिर उसकी वजह से लोगों की ईएमआई कम होती है. वैसे भी आरबीआई की गाइडलाइंस हैं कि बैंकों को लोन की ब्याज दर किसी एक बाहरी मानक के अनुरूप रखनी होती हैं, तो बैंक भी रेपो रेट को ही इसका आधार बनाते हैं. अगर आरबीआई ब्याज दर कम नहीं करता है, तो आपकी ईएमआई में कटौती नहीं होगी.

दुनिया और देश के चुनाव का असर

इस समय देश में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं. इसका फैसला 4 जून को आना है. ऐसे में नई सरकार का गठन और उसकी नीतियों का असर लोगों के सामने अगस्त तक आना शुरू हो जाएगा. इसलिए इस बार की मौद्रिक नीति में बड़े बदलाव की गुंजाइश कम है. इतना ही नहीं, दुनिया की घटनाओं का असर भी देश की इकोनॉमी पर पड़ता है. हाल में अमेरिका की जो बाइडेन सरकार ने चीन के सामानों पर 100 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगा दिया है, जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच एक बार फिर ट्रेड वॉर छिड़ने की आशंका है.

वहीं जून में अमेरिका के फेडरल रिजर्व की भी पॉलिसी आनी है, जो पूरी दुनिया में निवेश के पैटर्न और डॉलर की चाल को बदल सकती है. इसका असर भी आरबीआई की मौद्रिक नीति पर देखने को मिल सकता है.

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