ईरान रूस और चीन की तिकड़ी से खार क्यों खाता है अमेरिका? |… – भारत संपर्क

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ईरान रूस और चीन की तिकड़ी से खार क्यों खाता है अमेरिका? |… – भारत संपर्क
ईरान-रूस और चीन की तिकड़ी से खार क्यों खाता है अमेरिका?

अयातुल्ला अली खामेनेई, शी जिनपिंग, व्लादिमीर पुतिन और जो बाइडेन

ईरान, रूस, चीन और अमेरिका…ये चारों दुनिया के अहम मुल्क हैं. चारों की अपनी-अपनी ताकत है. तेवर भी चारों के अलग हैं. अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है और जो बाहुबलि होता है वो अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता. अमेरिका ऐसा ही है. दूसरी तरफ ईरान, रूस और चीन हैं. तीनों की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है. तीनों पक्के दोस्त हैं. एक दूसरे के लिए जान देने को हाजिर रहते हैं, लेकिन अमेरिका को इन तीनों की दोस्ती पसंद नहीं है. वो इस तिकड़ी से खार खाता है.

दुनिया में अभी जो मौजूदा घटनाक्रम है, उसको ही देखें तो यूक्रेन से जंग में चीन रूस के साथ खड़ा है. वहीं, ईरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सैन्य सहायता देकर इस युद्ध में मदद कर रहा है. बीजिंग और तेहरान का अपना रणनीतिक संबंध है, जिसे बनने में कई दशक लगे हैं. ईरान, चीन और रूस ने एक-दूसरे की रक्षा के लिए नाटो जैसी कोई संस्था तो बनाई, लेकिन उनकी बातचीत में एक दूसरे को लेकर विश्वास दिखता है. इन तीनों की दोस्ती को अमेरिका में ‘एक्सिस ऑफ एविल’ कहते हैं.

ईरान को खतरा मानता है अमेरिका

अमेरिका मानता है कि ईरान उसके लिए खतरा है. वो कहता है कि हमें ‘एक्सिस ऑफ एविल’ से निपटना होगा, क्योंकि ये अमेरिका के लिए खतरा है. ‘एक्सिस ऑफ एविल’ शब्द का इस्तेमाल पहली बार 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने किया था. 9/11 के हमलों के बाद ईरान, इराक और उत्तर कोरिया का जिक्र करते हुए उन्होंने इसका इस्तेमाल किया था. अमेरिका के दुश्मनों की पहचान करने और ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ के समर्थन में अमेरिकी जनता को एकजुट करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया गया था.

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अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के सांसद मिच मैक्कोनेल ने कहा था कि रूस यूक्रेन जंग में ईरान रूस को ड्रोन दे रहा है और इजराइल हमास के बीच जंग में वो हिजबुल्लाह और हमास के साथ खड़ा है. उन्होंने कहा कि आप इसका एक हिस्सा अलग करके यह नहीं कह सकते कि हम केवल इससे निपटेंगे. यह सब जुड़ा हुआ है.

उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर रूस यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में अपराजित रहता है तो वह अगला हमला नाटो देश पर करेगा. मैक्कोनेल ने कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी रूस-यूक्रेन युद्ध पर कड़ी नजर रख रहे हैं. वो किसका साथ दे रहे हैं, ये सबको पता है. यही नहीं अमेरिका ईरान को क्यूबा, सीरिया और उत्तर कोरिया जैसे देशों की श्रेणी में रखता है. वह उसे स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेररिज्म कहता है. कई मुल्क आरोप लगाते हैं कि अमेरिका हर उस देश को इस लिस्ट में डाल जेता है, जिससे उसके रिश्ते खराब हैं.

दो ब्लॉक में बंटी हुई है दुनिया

हम इतिहास में ना जाते हुए मौजूदा हालात की बात करते हैं. दुनिया अभी दो ब्लॉक में बंटी हुई है. एक धड़ा है अमेरिका और नाटो का तो दूसरा धड़ा है रूस का. अमेरिका और नाटो देश रूस यूक्रेन जंग में यूक्रेन के साथ हैं तो इजराइल हमास युद्ध में इजराइल के साथ खड़े हैं. वहीं कई देश दोनों गुटों में शामिल होने की इच्छा नहीं रखते हैं. इस जंग में वो निष्पक्ष हैं.

जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब. दोनों देशों के संबंध दोनों पक्षों के साथ हैं. भारत का भी यही रुख है. रूस के साथ तो उसके अच्छे संबंध हैं ही, यूक्रेन से भी मधुर संबंध हैं. वहीं ईरान और इजराइल के साथ भी उसके रिश्ते अच्छे हैं.

अमेरिका, ईरान, रूस और चीन की आंतरिक समस्या यह है कि वे कमजोर नहीं दिखना चाहते. ईरान, रूस और चीन अमेरिका पर बढ़त बनाने की कोशिश करते हैं. हालांकि उन्हें ये भी पता है कि वे परमाणु ठिकानों पर हमला करते हैं तो तबाही भयंकर होगी. अमेरिका जानता है कि उसमें रूस, चीन और ईरान से एक साथ लड़ने की क्षमता नहीं है.

जानकार कहते हैं कि रूस और चीन की शक्ति नाटो से अधिक है, जिसमें अमेरिका भी शामिल है. ऐसे में अमेरिका ऐसे युद्ध में शामिल नहीं होगा जो क्षेत्रीय संघर्ष तक सीमित हो. अमेरिका को रूस के हथियारों के बारे में पता है, इसलिए अमेरिका ‘वॉशिंगटन को खतरे में डालने’की कीमत पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा. रूस की रुचि केवल पूर्वी यूरोप में है, जिसे वह फिर से हासिल करना चाहता है, जबकि चीन की रुचि ताइवान, दक्षिण चीन सागर में है. रक्षा क्षेत्र से जुड़े जानकार बताते हैं कि अमेरिका रूस, चीन और ईरान से खार तो खाता है लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे कि जिससे वर्ल्ड वॉर हो जाए.

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