20 साल के बाद बना ऐसा रिकॉर्ड, विदेशी निवेशकों ने निकाले…- भारत संपर्क
विदेशी निवेशकों ने मई के महीने में शेयर बाजार ने मोटा पैसा निकाल लिया है.
साल 2004 से 2019 तक 4 लोकसभा चुनाव हुए हैं. ये तमाम चुनाव मई के महीने में खत्म हो गए थे. उसके बाद मई में ही चुनाव के नतीजे भी सामने आए थे. लेकिन साल 2024 का लोकसभा चुनाव कुछ अलग है. इस चुनाव को इतिहास का सबसे लंबा चुनाव कहा जा रहा है. जोकि पूरे मई में चलकर एक जून को खत्म हुआ और 4 जून को नतीजे पेश करेगा. इसी के समानांतर एक और चीज भी हुई है. जोकि करीब 20 साल के बाद पहली बार देखने को मिली है.
जी हां, चुनावी साल के मई के महीने में विदेशी निवेशकों ने अपना पैसा निकाला है. आखिरी बार ऐसा साल 2004 में देखने को मिला था. तब से लेकर अब तक 20 साल हो चुके हैं. खास बात तो ये है कि विदेशी निवेशकों ने कोई छोटी रकम नहीं निकाली है. यह आंकड़ा 25,500 करोड़ रुपए से ज्यादा बैठ रहा है. आइए आपको भी पूरे साल 20 साल के डाटा की तरफ लेकर चलते हैं. साथ ही समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर विदेशी निवेशकों ने मई के महीने में साल 2004 से 2024 तक चुनावी साल में कितना पैसा डाला और कितना निकाला है? आइए पहले मौजूदा साल के मई की बात पहले कर लेते हैं.
मई में 25,500 करोड़ से ज्यादा निकाले
आम चुनाव के नतीजों को लेकर अनिश्चितता और चीन के बाजारों के बेहतर प्रदर्शन के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआई ने मई में भारतीय शेयरों से 25,586 करोड़ रुपए निकाले हैं. यह मॉरीशस के साथ भारत की कर संधि में बदलाव और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में निरंतर वृद्धि की चिंताओं के कारण अप्रैल के 8,700 करोड़ रुपए से अधिक के शुद्ध निकासी के आंकड़े से कहीं अधिक है. डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, इससे पहले एफपीआई ने मार्च में शेयरों में 35,098 करोड़ रुपए और फरवरी में 1,539 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया था. वहीं जनवरी में उन्होंने शेयरों से 25,743 करोड़ रुपए की निकासी की थी. आम चुनाव के नतीजे चार जून को आने हैं. इससे निकट भविष्य में भारतीय बाजार में एफपीआई प्रवाह की दिशा तय होगी.
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20 साल का टूटा रिकॉर्ड
साल 2024 में चुनावी साल के मई के महीने में जो विदेशी निवेशकों ने जो निकासी की है, उसका 20 साल का रिकॉर्ड टूट गया है. साल 2004 के बाद पहली बार ऐसा देखने को मिला है कि विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार से पैसा निकाला है. एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार साल 2004 में विदेशी निवेशकों ने 3248 रुपए की निकासी की थी. उस साल सत्ता में परिवर्तन देखने को मिला था. उसके बाद साल 2009 में निवेशकों ने शेयर बाजार में मई के महीने में 20,116 करोड़ रुपए का निवेश किया था. तब सत्ता में किसी तरह का परिवर्तन नहीं देखा गया था.
साल 2014 में मई के महीने में विदेशी निवेशकों ने 14,007 करोड़ रुपए का निवेश किया था. तब एक ऐसा माहौल बना था कि सत्ता परिवर्तन के साथ देश को एक पार्टी को पूर्ण बहुमत वाली स्थिर सरकार मिलने वाली है. जिसकी वजह से विदेशी निवेशकों ने भारत में पर एक बड़ा दांव खेला. साल 2009 में मई के महीने में विदेशी निवेशकों सामान्य 7920 करोड़ रुपए का निवेश किया. क्योंकि उन्हें पता था कि सत्ता परिवर्तन की कोई संभावना नहीं है.
बॉन्ड और डेट मार्केट का क्या रहा है इतिहास?
वहीं दूसरी ओर बॉन्ड और डेट मार्केट की बात करें तो मई के महीने में काफी बेहतर देखने को मिला है. मई के महीने में एफपीआई ने डेट या बॉन्ड मार्केट में 8,761 करोड़ रुपए का निवेश किया है. इससे पहले विदेशी निवेशकों ने मार्च में बॉन्ड बाजार में 13,602 करोड़ रुपए, फरवरी में 22,419 करोड़ रुपए और जनवरी में 19,836 करोड़ रुपए का निवेश किया था. इन पांच महीने में सिर्फ अप्रैल का महीना ऐसा रहा है जब विदेशी निवेशकों ने अपना पैसा निकाला जो 10,949 करोड़ रुपए था. अगर ओवरऑल देखें तो विदेशी निवेशक डेट मार्केट में अब तक 53,669 करोड़ रुपए का निवेश कर चुके हैं.
अगर बात साल 2004 की करें तो मई के महीने में विदेशी निवेशकों इस सेगमेंट से 301 करोड़ रुपए निकाल लिए थे. जबकि साल 2009 में 2707 करोड़ रुपए निकाले थे. साल 2014 पूरी तरह से विपरीत दिखाई दिया और विदेशी निवेशकों ने बॉन्ड बाजार में 19,771 करोड़ रुपए का बंपर निवेश किया. वहीं दूसरी ओर मई 2019 में डेट मार्केट में निवेश की रकम काफी मामूली 1187 करोड़ रुपए देखने को मिली.
क्या कहते हैं जानकार?
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार विजयकुमार ने कहा कि मध्यम अवधि में अमेरिकी ब्याज दरें एफपीआई प्रवाह पर अधिक प्रभाव डालेंगी. आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने मई में शेयरों से शुद्ध रूप से 25,586 करोड़ रुपए निकाले हैं. वॉटरफील्ड एडवाइजर्स के निदेशक-सूचीबद्ध निवेश विपुल भोवर ने कहा कि अपेक्षाकृत ऊंचे मूल्यांकन और विशेष रूप से वित्तीय और आईटी कंपनियों के कमजोर तिमाही नतीजों के साथ राजनीतिक अनिश्चिता की वजह से एफपीआई भारतीय शेयरों से निकासी कर रहे हैं. इसके अलावा चीन के बाजारों के प्रति एफपीआई के आकर्षण की वजह से भी एफपीआई भारतीय शेयरों से पैसा निकाल रहे हैं.
क्यों हो रही है बिकवाली?
विजयकुमार ने कहा कि एफपीआई की बिकवाली का मुख्य कारण चीन के शेयरों का बेहतर प्रदर्शन रहा है. हैंग सेंग सूचकांक मई की पहले पखवाड़े में आठ प्रतिशत चढ़ा है. उन्होंने कहा कि एफपीआई की बिकवाली की एक और वजह अमेरिका में बॉन्ड यील्ड का बढ़ना है. जब भी अमेरिका में 10 साल के बॉन्ड पर यील्ड 4.5 प्रतिशत से ऊपर जाता है, एफपीआई भारत जैसे उभरते बाजारों में बिकवाली करते हैं और अपना निवेश बॉन्ड में लगाते हैं. उन्होंने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि के मजबूत आंकड़े, मुद्रास्फीति के प्रबंधन के दायरे में रहने और राजनीतिक स्थिरता की स्थिति में एफपीआई आगे लिवाली कर सकते हैं.
इकोनॉमी के बेहतरीन आंकड़ें
शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, बीते वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था 7.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जो 6.7 प्रतिशत के अनुमान से कहीं अधिक है. पूरे वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही है. इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 2.1 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड लाभांश ने सरकार को बुनियादी ढांचा खर्च को आगे बढ़ाने को लेकर वित्तीय गुंजाइश प्रदान की है.