भीमसेनी एकादशी का व्रत 17 एवं 18 जून को- भारत संपर्क
भीमसेनी एकादशी का व्रत 17 एवं 18 जून को
कोरबा। साल के सभी चौबीस एकादशियों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भीमसेनी एकादशी का व्रत 17 एवं 18 जून को है। निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन पानी के किया जाता है। उपवास के कठोर नियम होने के कारण सभी एकादशी व्रत सबसे कठिन होता है। पंडितों ने जानकारी दी कि निर्जला व्रत को करते समय फलाआहार ही नहीं पानी भी ग्रहण नहीं करते है। जो श्रद्धालु के साल के चौबीस एकादशियों का उपवास होने करने में सक्षम नहीं है उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए, क्योकि निर्जला एकादशी के उपवास पर करने से चौबीस एकादशी उपवास का कर, फल मिल जाता है। पौराणिक कथानुसार, इसे पाण्डव एकादशी, होंने भीमसेनी एकादशी, निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को लेकर मान्यता है कि पाण्डवों में दूसरे भाई भीमसेन खाने पीने का अत्यधिक शौकीन था। वह अपनी भूख को नियन्त्रित करने में सक्षम नही था। इसी कारण वह एकादशी व्रत नहीं कर पाता था। भीम के अलावा बाकि भाई और द्रौपदी साल के सभी एकादशी व्रतों को श्रद्धा भक्ति से किया करते थे। भीमसेन अपनी इस लाचारी से और कमजोरी से परेशान था। भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी के व्रत को न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहें है। इस दुविधा से उबरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गऐ, तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल के एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने की सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल के चौबीस एकादशीयों के तुल्य है। भीमसेन के एकादशी को करने के बाद निर्जला एकादशी, भीमसेनी, पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के दौरान किया जाता है। कभी कभी भीमसेनी एकादशी लगातार दो दिन के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन का होता है, तब परिवारजनों को पहले दिन का एकादशी व्रत को करना चाहिए। दूसरे दिन के एकादशी को वैष्णवनाम एवं दूजी एकादशी कहते है। भगवान विष्णु जी का स्नेह प्राप्त करने के लिए दोनों दिन के एकादशी को करना चाहिए। कांशी विश्वनाथ पंच्चागमतानुसार निर्जला एकादशी प्रारंभ सोमवार 17 जून को सुबह 4:45 बजे होगा तथा एकादशी तिथी समाप्त मंगलवार 18 जून को सुबह 6:24 बजे होगा। नवतपा 8 जून आर्दा नक्षत्र से प्रारंभ होकर 17 जून सोमवार चित्रा नक्षत्र तक नौ दिवस समाप्त होता है।