पेंशन का हकदार कौन? सुप्रीम कोर्ट ने यूपी से जुड़े एक मामले में दिया अहम फै… – भारत संपर्क

सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने पेंशन के अधिकार को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की है. उत्तर प्रदेश रोडवेज के पूर्व कर्मचारियों की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा है कि पेंशन अधिकार है लेकिन पेंशन का दावा तभी किया जा सकता है, जब कोई कर्मचारी इसके लाभ के लिए हकदार हो.
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा है, अगर कोई कर्मचारी PF स्कीम के अंतर्गत आता है लेकिन पेंशन योग्य पद पर नहीं है, तो वह पेंशन का दावा नहीं कर सकता है.
SC के फैसले की 3 बड़ी बातें
कोर्ट ने कहा कि पेंशन अधिकार है, दान नहीं. यह एक कर्मचारी का संवैधानिक अधिकार है जिसके लिए कोई कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद हकदार होता है. पेंशन का दावा तभी किया जा सकता है, जब यह संबंधित नियमों या किसी योजना के तहत स्वीकृत हो.
SC ने कहा है कि अगर कोई कर्मचारी भविष्य निधि योजना के अंतर्गत आता है और पेंशन योग्य पद पर नहीं है, तो वह पेंशन का दावा नहीं कर सकता है, न ही अदालत ऐसे कर्मचारी को पेंशन देने का निर्देश दे सकती है, जो नियमों के अंतर्गत नहीं आता है.
कोर्ट ने इस तरह के मामलों के सरकारी आदेशों के ऑब्जर्वेशन में पाया है कि याचिकाकर्ता-कर्मचारी किसी स्थायी पद या पेंशन योग्य पद पर नहीं थे. इसके अलावा, कोर्ट ने माना है कि अपीलकर्ता पहले से ही PF स्कीम समेत रिटायरमेंट से जुड़े लाभ उठा चुके थे. लिहाजा वो पेंशन का दावा नहीं कर सकते.
सरकारी आदेश में पेंशन की पात्रता
कोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश रोडवेज को 1947 में एक अस्थायी विभाग के रूप में बनाया गया था और इसके कर्मचारियों को अस्थायी आधार पर नियुक्त किया गया था. 16 सितंबर 1960 के एक सरकारी आदेश में इन कर्मचारियों के लिए सेवा शर्तें लगाई गईं, लेकिन ये शर्तें दूसरे सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मचारियों से अलग थीं.
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28 अक्टूबर 1960 को आर्टिकल 350 के नोट 3 के अंतर्गत एक सरकारी आदेश जारी किया गया. इस सरकारी आदेश में रोडवेज के स्थायी कर्मचारियों को पेंशन देने का प्रावधान किया गया था. अनुच्छेद 350 के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सरकारी तकनीकी और औद्योगिक संस्थानों में गैर-राजपत्रित पदों पर तैनात कर्मचारी पेंशन के लिए योग्य नहीं हैं और इसे पीएफ स्कीम के तहत कवर किया जाएगा.
SC के फैसले का क्या था आधार?
तमाम दस्तावेजों को देखने के बाद कोर्ट ने माना है कि रोडवेज कर्मचारियों की पेंशन पात्रता 28 अक्टूबर 1960 के सरकारी आदेश के तहत तय होती. इन कर्मचारियों को रोडवेज प्रबंधन ने ना को किसी आदेश के तहत स्थायी किया था और ना ही याचिकाकर्ताओं ने 1960 के आदेश के पैरा 1 में उल्लेख की गई 3 श्रेणियों (जिन्हें पेंशन योग्य माना गया) के अंतर्गत काम करने का दावा किया था.
अदालत ने कहा कि चूंकि रोडवेज को तकनीकी और औद्योगिक संस्थान माना जाता है, इसलिए अपीलकर्ता अनुच्छेद 350 के नोट 3 के अंतर्गत आते हैं, और वो पेंशन के हकदार नहीं हैं.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में मिर्जा अतहर बेग, एस.एम. फाजिल समेत कई अन्य मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जिन मामलों का जिक्र अपीलकर्ता ने किया उनमें संबंधित अपीलकर्ता स्थायी पदों पर थे जो पेंशन योग्य थे. जबकि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता 28 अक्टूबर 1960 के सरकारी आदेश के मुताबिक न तो स्थायी पद पर थे और न ही कोई पेंशन के हकदार थे.”