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कोल परिवहन बढ़ाने रेल परियोजनाओं को जल्द करना होगा पूरा, 15 रेललाइन में से चार लाइन का ही काम हुआ है पूरा

कोरबा। वर्तमान में कोलफील्ड्स के पास कार्यशील रेल लाइन बेहद कम है। 10 साल बाद की जरुरत को देखते हुए आज से पांच साल पहले छत्तीसगढ़, झारखंड, एमपी, ओडिशा में कुल 15 नई रेललाइन बिछाने का काम शुरु हुआ था। इन 15 रेललाइन में चार लाइन ही पूरी हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में तीन लाइन पर काम चल रहा है। एक रेललाइन खरसिया से धर्मजयगढ़ का काम लगभग पूरा हो चुका है। जबकि गेवरारोड से पेंड्रारोड तक रेललाइन का काम अभी आधा हो सका है। यह जरुरत देशी खदानों से कैसे पूरी होगी? इसे खदान से कोयला थर्मल प्लांटों तक कैसे पहुंचाया जाएगा? इसे लेकर कोल इंडिया ने मंथन शुरू किया है। नेशनल कोल लॉजिस्टिक्स प्लान तैयार किया गया है। ताकि खदान का कोयला थर्मल प्लांटों तक पहुंचाया जा सके। पिछले दिनों इसे लेकर एसईसीएल मुख्यालय में स्टेकहोल्डर्स कॉन्सलटेंशन पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें नीति आयोग और कोल मंत्रालय के साथ- साथ रेलवे के अफसर शामिल हुए। इसमें कोयला परिवहन के लिए परिवहन और लॉजिस्टिक्स के बुनियादी ढांचे में सुधार, दक्षता बढ़ाने, लागत कम करने जोर दिया गया। बताया गया कि साल 2030 तक देशभर में घरेलू कोयला उत्पादन के 1.5 बिलियन (1500 मिलियन) टन तक पहुंचने की उम्मीद है। वहीं कोयले की मांग 1.9 बिलियन (1900 मिलियन) टन तक होगी। कोरबा की कोयला खदानों से भी इस अवधि में उत्पादन बढ़ेगा। इसे बाहर ले जाने के लिए रेल मार्ग को समय पर पूरा करने की जरूरत होगी, जो अभी पीछे चल रही है।वर्तमान रेल लाइन पर कोयले के साथ यात्री ट्रेनों का भारी दबाव है। कोयले के रैक के लिए यात्री ट्रेनों को लगातार प्रभावित किया जाता है। सबसे अधिक हादसे कोयले के रैक लेकर जाने वाले मालगाडिय़ों से ही होते हैं। इसके चलते यात्री ट्रेनें कई दिनों तक बंद रहती है। जब नई लाइनें बिछ जाएगी तो यात्री ट्रेनें और कोयले के रैक दोनों एक दूसरे से प्रभावित नहीं होंगे।
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तेजी से बढ़ रही बिजली की मांग
देश में बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है। कोयला मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार बिजली के कुल उत्पादन में कोयले का योगदान 76.59 फीसदी है। भविष्य में कोयले की मांग बनी रहेगी। 2031- 32 तक जब देश में बिजली मांग 24 लाख 73 हजार 776 मिलियन यूनिट होगी। उस समय देश में कोयले की मांग लगभग 1900 मिलियन टन होगी।

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