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कुसमुंडा खदान में बिना ब्लास्टिंग के किया जा रहा कोयला उत्पादन, पिछले साल 53 फीसदी कोयला आधुनिक तकनीक से किया खनन

 

कोरबा। एसईसीएल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है। इसके लिए वृहद स्तर पर पौधरोपण के साथ ही कोयला उत्पादन में ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा दे रही है। खासकर कंपनी के मेगा परियोजना कुसमुंडा में हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग फ्री सरफेस माइनर तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। गत वित्तीय वर्ष के कोयला उत्पादन में ग्रीन एनर्जी के तहत 53 फीसदी कोयला इसी तकनीक से खनन किया गया था। मौजूदा वित्तीय वर्ष में भी इसी तकनीक से खनन का काम जारी है। हरित प्रौद्योगिकी को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कोयला खदान कुसमुंडा मेगा परियोजना में बखूबी बढ़ावा दिया जा रहा है। खदान में कोयला निकालने के लिए ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग फ्री सरफेस माइनर तकनीक का उपयोग कारगर साबित हो रही है। पिछले वित्त वर्ष में 53 प्रतिशत से अधिक कोयले का उत्पादन इस पर्यावरण अनुकूल तकनीक का उपयोग करके किया गया था। खदान में कोयला खनन के लिए विश्व-स्तरीय अत्याधुनिक मशीनों जैसे सरफेस माइनर का प्रयोग किया जाता है। यह मशीन ईको-फ्रेंडली तरीके से बिना ब्लास्टिंग के कोयला खनन कर उसे काटने में सक्षम है। ओवरबर्डन (मिट्टी और पत्थर की ऊपरी सतह जिसके नीच कोयला दबा होता है) हटाने के लिए यहां बड़ी और भारी एचईएमएम (हेवी अर्थ मूविंग मशीनरी) को प्रयोग में लाई जाती है, जिसमें 240-टन डंपर, 42 क्यूबिक मीटर शॉवेल व पर्यावरण-हितैषी ब्लास्ट-फ्री तरीके से ओबी हटाने के लिए वर्टिकल रिपर आदि मशीनें शामिल हैं। कुसमुंडा खदान ने वित्तीय वर्ष 23-24 में 50 मिलियन टन कोयला उत्पादन हासिल किया गया है और गेवरा की बाद ऐसा करने वाली यह देश की केवल दूसरी खदान है। खदान में हैवी ब्लास्टिंग के कारण खासकर आसपास रहने वाले लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। घरों की दीवारों में दरारें आने के साथ छत का प्लास्टर गिरने की घटनाएं सामने आती हैं। ब्लास्टिंग के साथ पत्थर और कोयले के टुकड़े छिटककर घरों और आंगन तक आ जाते हैं, जिससे हादसे का खतरा रहता है। साथ ही ब्लास्टिंग से धूल और कोल डस्ट का भी सामना करना पड़ता है। हरित प्रौद्योगिकी तकनीक से कोयला उत्पादन में इससे काफी हद तक राहत मिलेगी।
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विश्व की टॉप 5 की सूची में कुसमुंडा माइंस चौथा
विश्व की 5 सबसे बड़ी कोयला खदानों में कोरबा की दो खदानों को स्थान मिला है। एसईसीएल की गेवरा और कुसमुंडा खदानों को वर्ल्डएटलस डॉटकॉम द्वारा जारी दुनिया की टॉप 10 कोयला खदानों की सूची में क्रमश: दूसरा और चौथा स्थान मिला है। कोरबा जिले में स्थित एसईसीएल के इन दो मेगाप्रोजेक्ट्स द्वारा साल 23-24 में 100 मिलियन टन से अधिक का कोयला उत्पादन किया गया था जो कि भारत के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 10 प्रतिशत है। एसईसीएल की गेवरा माइन की वार्षिक क्षमता 70 मिलियन टन की है। वित्तीय वर्ष 23-24 में खदान ने 59 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया है। 1981 में शुरू हुई इस खदान में 900 मिलियन टन से अधिक का कोयला भंडार मौजूद है।

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