बेटियों पर लिखी मशहूर कवियों और शायरों की ये पक्तियां ला देंगी आंखों में पानी

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बेटियों पर लिखी मशहूर कवियों और शायरों की ये पक्तियां ला देंगी आंखों में पानी

बेटियों से घर-आंगन की रौनक होती है. बहन छोटे भाई के लिए मां तो बड़े भाई के लिए दोस्तो होती है. हर माता-पिता के लिए बेटियां उनके घर की आन-बान और शान होती हैं. सिर्फ रिश्तों को जोड़कर रखने से लेकर घर में मां का हांथ बंटाने तक ही नहीं बल्कि आज पैसे कमाने तक बेटियां बेटों से कम नहीं हैं. हर क्षेत्र में लड़कियां अपना मुकाम हासिल कर रही हैं. बेटियों के प्रति सम्मान, प्रेम व्यक्त करने और समाज में उनके योगदान को सरहाने के लिए हर साल सितंबर के चौथे रविवार को डॉटर्स डे के रुप में सेलिब्रेट किया जाता है.

बेटियां नई ऊंचाइयां छू रही हैं और अपने घर से दूर भी रहती हैं, लेकिन पिता और मां के लिए वह उनके आंगन की नन्हीं चिड़िया की तरह होती हैं जो एक न एक दिन उनके आंगन को सूना करके किसी दूसरे के घर को संभालती हैं. इसलिए ही कहा जाता है कि ‘रोशन करेगा बेटा तो बस एक ही कुल को…दो दो कुलों की लाज होती हैं बेटियां’. तो चलिए देख लेते हैं मशहूर कवियों और शायरों की बेटियों पर लिखी गईं पक्तियां.

  • ओस की बूंद होती हैं बेटियां
  • स्पर्श खुरदुरा हो तो रोती हैं बेटियां
  • रोशन करेगा बेटा तो बस एक ही कुल को
  • दो दो कुलों की लाज होती हैं बेटियां
  • कोई नहीं एक दूसरे से कम
  • हीरा अगर है बेटा
  • सच्चा मोती है बेटियां

बेटी के पिता पर लिखी कवि नागार्जुन की खूबसूरत कविता

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,

सात साल की बच्ची का पिता तो है!

सामने गियर से ऊपर

हुक से लटका रक्खी हैं

कांच की चार चूड़ियां गुलाबी

बस की रफ़्तार के मुताबिक़

हिलती रहती हैं…

झूककर मैंने पूछ लिया

खा गया मानो झटका

अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा

आहिस्ते से बोला ׃ हां साब

लाख कहता हूं, नहीं मानती है मुनिया

टांगे हुए है कई दिनों से

अपनी अमानत

यहां अब्बा की नज़रों के सामने

मैं भी सोचता हूं

क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियां

किस जुर्म पे हटा दूं इनको यहां से?

और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा

और मैंने एक नज़र उसे देखा

छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आंखों में

तरलता हावी थी सीधे-सादे प्रश्न पर

और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर

और मैंने झुककर कहा…

हां भाई, मैं भी पिता हूं

वो तो बस यूं ही पूछ लिया आपसे

वर्ना ये किसको नहीं भाएंगी?

नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियां!

कावियत्री निर्मला पुतुल की रचना ‘बाबा’

‘बाबा’

मुझे उतनी दूर मत ब्याहना

जहां मुझसे मिलने जाने ख़ातिर

घर की बकरियां बेचनी पड़े तुम्हें

मत ब्याहना उस देश में

जहां आदमी से ज़्यादा

ईश्वर बसते हों

जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहां

वहां मत कर आना मेरा लगन

वहां तो क़तई नहीं

जहां की सड़कों पर

मन से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटरगाड़ियां

ऊंचे-ऊंचे मकान और

बड़ी-बड़ी दुकानें

उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता

जिस में बड़ा-सा खुला आंगन न हो

मुर्ग़े की बांग पर होती नहीं हो जहां सुबह

और शाम पिछवाड़े से जहां पहाड़ी पर डूबता सूरज न दिखे

मत चुनना ऐसा वर

जो पोचई और हड़िया में डूबा रहता हो अक्सर

काहिल-निकम्मा हो

माहिर हो मेले से लड़कियां उड़ा ले जाने में

ऐसा वर मत चुनना मेरी ख़ातिर

कोई थारी-लोटा तो नहीं

कि बाद में जब चाहूंगी बदल लूंगी

अच्छा-ख़राब होने पर

जो बात-बात में

बात करे लाठी-डंडा की

निकाले तीर-धनुष, कुल्हाड़ी

जब चाहे चला जाए बंगाल, असम या कश्मीर

ऐसा वर नहीं चाहिए हमें

और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ

जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाए

फ़सलें नहीं उगाईं जिन हाथों ने

जिन हाथों ने दिया नहीं कभी किसी का साथ

किसी का बोझ नहीं उठाया

और तो और!

जो हाथ लिखना नहीं जानता हो ‘ह’ से हाथ

उसके हाथ मत देना कभी मेरा हाथ

ब्याहना हो तो वहां ब्याहना

जहां सुबह जाकर

शाम तक लौट सको पैदल

मैं जो कभी दुख में रोऊं इस घाट

तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम

सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप

महुआ की लट और खजूर का गुड़ बनाकर भेज सकू संदेश तुम्हारी ख़ातिर

उधर से आते-जाते किसी के हाथ

भेज सकूं कद्दू-कोहड़ा, खेखसा, बरबट्टी

समय-समय पर गोगो के लिए भी

मेला-हाट-बाज़ार आते-जाते

मिल सके कोई अपना जो

बता सके घर-गांव का हाल-चाल

चितकबरी गैया के बियाने की ख़बर

दे सके जो कोई उधर से गुज़रते

ऐसी जगह मुझे ब्याहना!

उस देश में ब्याहना

जहां ईश्वर कम आदमी ज़्यादा रहते हों

बकरी और शेर एक घाट पानी पीते हों जहां

वहीं ब्याहना मुझे!

उसी के संग ब्याहना जो

कबूतर के जोड़े और पंडुक पक्षी की तरह

रहे हरदम हाथ

घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर रात सुख-दुख बाटने तक

चुनना वर ऐसा जो बजाता हो बांसुरी सुरीली

और ढोल-मांदल बजाने में हो पारंगत

वसंत के दिनों में ला सके जो रोज़

मेरे जूड़े के ख़ातिर पलाश के फूल

जिससे खाया नहीं जाए, मेरे भूखे रहने पर

उसी से ब्याहना मुझे!

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