बिहार उपचुनाव: पीके के 4 उम्मीदवारों ने कैसे तेजस्वी यादव को दिया सियासी…
प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव
दल बनाकर बिहार के चुनावी मैदान में कूदे प्रशांत किशोर से आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को बड़ी राहत मिलती दिख रही है. राहत की 2 बड़ी वजहें हैं. पहली वजह प्रशांत किशोर का उम्मीदवार सिलेक्शन और दूसरी वजह उपचुनाव का सियासी मिजाज है. बिहार के सियासी गलियारों में 4 सीटों के उपचुनाव को 2025 का सेमीफाइनल कहा जा रहा है.
प्रशांत किशोर की पार्टी इस सेमीफाइनल के बूते अपना शक्ति प्रदर्शन करने की तैयारी में जुटी है, लेकिन जिस तरह से पीके ने उम्मीदवार उतारे हैं, उससे तेजस्वी खेमे में खुशी की खबर है.
क्राइम और दलबदल पर घेर रहे थे पीके
प्रशांत किशोर लगातार तेजस्वी यादव को क्राइम और दलबदल के जरिए घेर थे. पीके लगातार यह मुद्दा उठा रहे थे कि तेजस्वी की पार्टी जाति और अपराधियों से बाहर नहीं निकल पा रही है.
आरजेडी पर शुरू से ही अपराध से जुड़े नेताओं को तवज्जो देने का आरोप लग रहा था. ऐसे में पीके जिस तरह से मुखर थे, उसमें आरजेडी के लिए 2025 में अपराध से जुड़े नेताओं को टिकट देना आसान नहीं था.
दिलचस्प बात है कि आरजेडी के अधिकांश क्षत्रप इसी तरह की राजनीति से आए हैं. चाहे रीतलाल यादव हो, चाहे राजवल्लभ यादव हो या मुन्ना शुक्ला. सब पर बड़े अपराध में शामिल होने का आरोप है.
तेजस्वी को पीके पढ़ाई-लिखाई पर भी घेर रहे थे. पीके उनके 9वीं पास को भी बड़ा मुद्दा बना रहे थे, लेकिन अब जिस तरह से जनसुराज के 4 उम्मीदवारों का ब्यौरा सामने आया है, उससे तेजस्वी फ्रंटफुट पर आ सकते हैं.
अब तेजस्वी फ्रंटफुट पर आएंगे, क्योंकि…
1. पीके ने उपचुनाव में जिन 4 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. उनमें से 3 पर गंभीर आरोप में मुकदमा दर्ज है. बेलागंज के प्रत्याशी अमजद ने जो हलफनामा दाखिल किया है, उसके मुताबिक अमजद पर रंगदारी, हमला और मारपीट के केस दर्ज हैं. इसी तरह इमामगंज के प्रत्याशी जितेंद्र पासवान पर भी चोरी और लूट का मुकदमा दर्ज है.
प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो पीके ने करीब 70 प्रतिशत के आसपास जो प्रत्याशी उतारे हैं, उन पर गंभीर आरोप का मुकदमा दर्ज है.
2. पढ़ाई-लिखाई को लेकर भी पीके लगातार हमलावर थे, लेकिन पीके के प्रत्याशी ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं. बेलागंज के उम्मीदवार मैट्रिक पास है. इसी तरह इमामगंज वाले इंटर (12वीं) तक की पढ़ाई की है. तरारी के उम्मीदवार सुशील सिंह भी इंटर तक ही पढ़े है. सवाल उठ रहा है कि 4 सीटों पर जब पीके ज्यादा पढ़े-लिखे प्रत्याशी नहीं खोज पाए तो 243 सीटों पर क्या होगा?
3. एक सवाल दलबदल को लेकर भी है. पीके के 2 प्रत्याशी पहले भी दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं, जबकि पीके नए नेता बनाने का वादा अपनी रैलियों में करते रहे हैं. अब पीके ने जिस तरह से 50 प्रतिशत सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, उसमें यह सवाल उठ सकता है.
तेजस्वी के लिए संजीवनी साबित होगा?
प्रशांत किशोर जब राजनीति में आए थे, तो सबसे ज्यादा चिंता तेजस्वी यादव की ही बढ़ी थी. तेजस्वी को अपने कोर वोटर्स मुसलमान और यादव में सेंध लगने के साथ-साथ एंटी इनकंबेंसी वोटरों के भी छिटकने का डर सता रहा था.
तेजस्वी की पार्टी ने पीके को लेकर पत्र भी लिखा था. इतना ही नहीं, खुद तेजस्वी यादव यात्रा निकाल रहे थे. पिछले चुनाव में एनडीए की भले ही जीत हो गई है, लेकिन दोनों ही गठबंधन में वोट का मार्जिन 2 लाख के करीब का ही अंतर था.
अब जिस तरह से पीके का राजनीति में उभार हो रहा था, उससे तेजस्वी की पार्टी टेंशन में चली गई थी. पीके जातीय, आपराधिक, दलबदल जैसे बड़े मुद्दा उठा रहे थे.
उपचुनाव ने पीके के लिए इन मुद्दों पर आगे की राह को मुश्किल कर दिया है. पीके अगर उपचुनाव में परफॉर्मेंस नहीं कर पाते हैं तो 2025 से पहले तेजस्वी को सियासत का बूस्टर डोज मिल सकता है.
4 सीटों पर उपचुनाव, एक साल बाद चुनाव
बिहार विधानसभा की 4 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. जिन सीटों पर उपचुनाव कराया जा रहा है, उनमें तरारी, इमामगंज, बेलागंज और रामगढ़ की सीट है. चारों ही सीट विधायकों के सांसद चुने जाने की वजह से रिक्त हुई है.
बिहार में अब से ठीक एक साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. राज्य में विधानसभा की 243 सीटें हैं और यहां सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों की जरूरत होती है. मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के दलों में है.
पीके की पार्टी मुकाबले को अभी से त्रिकोणीय बनाने में जुटी हुई है.