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उगते सूरज को अध्र्य देने के साथ छठ महापर्व का हुआ समापन, व्रतियों ने 36 घंटे के कठिन निर्जला उपवास की किया पारण

कोरबा। लोक आस्था का महापर्व छठ उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया। छठ पूजा के चौथे दिन रवि योग का निर्माण हुआ। इस योग का निर्माण सुबह 6 बजकर 38 मिनट तक रहा। वहीं इस योग का समापन दोपहर 12 बजकर 3 मिनट पर हुआ। रवि योग में सूर्य देव की पूजा कर दूसरा अर्घ्य देकर पर्व का समापन किया। व्रतियों ने 36 घंटे के कठिन निर्जला उपवास का पूजा अर्चना के बाद पारण किया। छठ घाटों पर भारी भीड़ लगी रही। छठ पर्व हर वर्ष कार्तिक महीने में मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर छठी मैया और सूर्य देव की पूजा की जाती है। छठ पूजा चार दिवसीय त्योहार है। इसके पहले दिन नहाय-खाय मनाया जाता है। दूसरे दिन खरना मनाया जाता है। वहीं, षष्ठी तिथि को संध्या अर्घ्य और सप्तमी तिथि को सुबह का अध्र्य दिया जाता है। छठ महापर्व कोरबा जिले में धूमधाम से मनाया गया। शहर और उपनगरीय इलाकों में व्रतियों ने गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अध्र्य दिया। अगली सुबह उगते सूरज को अध्र्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कामना की। घाटों पर छठ पूजा से संबंधित गीत गाए जा रहे थे। छठ घाटों पर सूरज उगने से लगभग एक से डेढ़ घंटे पहले ही व्रतियों और उनके परिवारों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था। व्रतियों ने नदी, तालाब के किनारे पूजा की थाली रखकर भगवान भास्कर की आराधना की। शनिवार को भगवान भास्कर को अध्र्य देने के साथ ही छठ महापर्व का समापन हो गया। छठ पूजा को लेकर उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड में रहने वाले लोगों में काफी उत्साह बना रहा है। शहर के छठ घाट सर्वमंगला नगर, पुरानी बस्ती घाट, ढेंगुरनाला, सीतामणी, एसईसीएल शिवमंदिर घाट, मानिकपुर पोखरी घाट के अलावा उपनगरीय इलाके बालकोनगर, कुसमुंडा, बांकीमोंगरा, दीपका, दर्री घुड़देवा क्षेत्र में भी छठ महापर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। छठ पूजा को लेकर व्रतियों के परिवार ने सुबह पूजन के लिए जरूरी सामाग्री की खरीदी की। इसके लिए कोरबा के इतवारी बाजार और बुधवारी बाजार में सुबह से ही व्रतियों के परिवारों का पहुंचना शुरू हो गया था। नारियल, पान, सुपाड़ी के अलावा बाजार में उपलब्ध मौसमी फलों की खरीदी व्रतियों के परिवार ने की। छठ महापर्व को लेकर कुसमुंडा सहित अन्य क्षेत्रों में भी लोगों के बीच काफी उत्साह देखा गया। कुसमुंडा के आदर्श नगर, विकास नगर सहित अन्य क्षेत्रों में रहने वाले पूर्वांचलवासी छठ पूजा के लिए अहिरन नदी के तट पर पहुंचे। व्रतियों ने नदी के पानी में स्नान किया और छठ मइया की आराधना की। कल सूरज ढलने के बाद व्रती अपने परिवारों के साथ माथे पर दउरा रखकर घरों के लिए लौट गए। देर शाम व्रतियों ने अपनी मन्नत और आराधना के अनुसार घर में कोसी भरा। इसमें गन्ने की पूजा की गई। बांस की डलिया में पूजन सामाग्री को रखकर दीपक जलाए गए। दीए के नीचे बड़े दीया में ठेकुआ रखा गया और मौसमी फल के साथ कोसी भरा गया। बांस की डलिया के चारों ओर गन्ने को खड़ा किया गया था उसमें उपर लाल या अन्य रंग के कपड़े में पूजा की सामाग्री बांधी गई थी। कोसी भरने का कार्य घर के आंगन में किया गया। देर रात 3 से 4 बजे के बीच छठ घाटों पर व्रतियों व परिजनों ने कोसी भरा।

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