Pushpa 2 Trailer Launch : वो 6 कारण, जो साउथ वालों को नॉर्थ इंडिया आने पर मजबूर… – भारत संपर्क
साउथ वाले यूपी-बिहार को इतना पसंद क्यों कर रहे?
तारीख, 17 नवंबर. पटना का गांधी मैदान. हजारों की भीड़. जनता बेकाबू हुई. पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. ऐसे मजमे और माहौल से आप इसे किसी नेता की रैली समझ सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. न ये किसी नेता की रैली थी और न ही यहां मुफ़्त में कुछ बंट रहा था. ये था अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2’ का ट्रेलर लॉन्च इवेंट. शायद ही भारतीय सिनेमा के इतिहास में इससे पहले ऐसा हुआ होगा कि ट्रेलर लॉन्च को भी एक त्योहार बना दिया गया हो.
‘पुष्पा 2’ है साउथ की पिक्चर. इसकी ओरिजनल लैंग्वेज तेलुगु है. बाकी भाषाओं में इसका डब वर्जन जारी किया जाएगा. साउथ की पिक्चर का नॉर्थ में ट्रेलर लॉन्च, बात कुछ पल्ले नहीं पड़ती. कुछ दिन पहले राम चरण की फिल्म ‘गेम चेंजर’ का भी टीजर लखनऊ में लॉन्च किया गया था. आखिर नॉर्थ इंडिया में ऐसा क्या है कि साउथ फिल्ममेकर्स को ये इतना ज्यादा अट्रैक्ट कर रहा है. साउथ वाले यूपी-बिहार आकर अपनी-अपनी फिल्में इतने बड़े लेवल पर क्यों प्रमोट कर रहे हैं. आइए सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं.
1. पैन इंडिया फिल्मों का तमगा
इसकी सबसे बड़ी वजह है कि साउथ फिल्मों का पैन इंडिया कहकर प्रचार किया जाना. अब किसी पिक्चर को पैन इंडिया होना है, तो नॉर्थ में बढ़िया बिजनेस करना पड़ेगा. बढ़िया बिजनेस करने के लिए माहौल भी हिंदी पट्टी में गरम होना चाहिए. माहौल गर्माने के लिए ही हैदराबाद से उठकर साउथ सुपरस्टार्स लखनऊ और पटना आ रहे हैं. संभव है, इसका फायदा भी उन्हें होगा.
2. संख्या बल
कहते हैं कि दिल्ली का रास्ता यूपी और बिहार से होकर जाता है. इसका कारण है संख्याबल. ज्यादा सीटें सभी को चाहिए. ऐसे ही फिल्मों का भी है. अल्लू अर्जुन और राम चरण जैसे साउथ के बड़े सुपरस्टार्स को ये पता है कि तेलुगु-तमिल जैसी भाषाओं में उनकी फिल्में अच्छा करेंगी ही, लेकिन यहां एक लिमिट है. बहुत ज़्यादा होगा, पिक्चर साउथ से 400 करोड़ कमा लेगी, लेकिन इसे 1000 करोड़ के ऊपर ले जाना है, तो हिंदी भाषी जनता का साथ चाहिए होगा. साउथ के मुकाबले यहां संख्याबल ज्यादा है, माने कमाई भी ज्यादा होगी.
3. विरासत और पॉपुलैरिटी
‘पुष्पा’ के पार्ट वन को साउथ में जैसा रिस्पॉन्स मिला, उससे कम नॉर्थ में भी नहीं मिला. अल्लू अर्जुन का ‘झुकेगा नहीं…’ तेलुगु से ज्यादा हिंदी भाषा में फेमस हुआ. इसकी फेम ऐसी रही कि डेविड वॉर्नर जैसों ने भी हिंदी में इस पर रील बनाई. फिल्म के हिंदी वर्जन ने 100 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया. यानी ‘पुष्पा 2’ के पास अपनी विरासत है. इसी विरासत को भुनाने के लिए अल्लू अर्जुन ने ट्रेलर लॉन्च के लिए पटना गए.
अब सवाल उठता है कि ‘पुष्पा 2’ के पास तो लीगेसी है, लेकिन ‘गेम चेंजर’ के पास क्या है? दरअसल ‘गेम चेंजर’ की भले ही कोई लीगेसी न हो, लेकिन इसके हीरो राम चरण की ज़रूर है. RRR को नॉर्थ इंडिया से बढ़िया रिस्पॉन्स मिला था. इसके चलते राम चरण हिंदी पट्टी में भी खूब पॉपुलर हुए. यही कारण है कि RRR के बाद आने वाली उनकी फिल्म ‘गेम चेंजर’ एक पैन इंडिया फिल्म है. इसमें कियारा आडवाणी भी हैं. इसलिए ‘गेम चेंजर’ की टीम लखनऊ अपना टीजर लॉन्च करने आई.
4. सिंगल स्क्रीन का मसाला
साउथ की जो फिल्में पैन इंडिया लेवल पर रिलीज हो रही हैं, ये सभी मास मसाला फिल्में हैं. इसकी वैसी ऑडियंस कम है, जो चुपचाप फिल्में देखते है. ये फिल्में थिएटर में खुलकर सीटियां और तालियां बजाने वालों के लिए हैं. सही मायनों में ये सिंगल स्क्रीन का असली सिनेमा है. ऐसी ऑडियंस किसी मेट्रो सिटी में मिलेगी नहीं. नॉर्थ इंडिया के छोटे शहर ही इसके लिए ज्यादा मुफीद है. इसलिए ‘पुष्पा 2’ की टीम ने पटना जैसे शहर को चुना, और ‘गेम चेंजर’ ने लखनऊ को.
5. शादी के कार्ड बांटे जा रहे हैं
‘पुष्पा 2’ और ‘गेम चेंजर’ को कोई खास जरूरत थी नहीं कि वो ट्रेलर या टीजर ही सीधे नॉर्थ इंडिया आकर लॉन्च करें. लेकिन उन्हें पता है यूपी-बिहार में शादी का कार्ड घर जाकर न दिया जाए, तो लोग आने से कतराते हैं. कई लोग बुरा भी मान जाते हैं. इसलिए अल्लू और राम चरण लोगों के घर जाकर उन्हें सपरिवार निमंत्रण देकर गए हैं. इसका प्रभाव अलग होने वाला है.
6. साउथ के संस्कार
कोविड के बाद से बॉयकॉट बॉलीवुड का ट्रेंड चला. इसके कारण साउथ की फिल्मों का मार्केट नॉर्थ में बढ़ा. अब बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड कोई खास एक्टिव नहीं है, लेकिन इसके रेशे अभी भी लोगों के दिमाग में हैं. साथ ही साउथ की फिल्मों को लेकर एक धारणा बनी है कि वहां की फिल्में प्रो-इंडियन कल्चर हैं. वो अपनी संस्कृति को बहुत ढंग से फिल्मों में पिरोते हैं. नॉर्थ वाले इससे भी प्रभावित हो रहे हैं. इसलिए साउथ वाले इसे भुना रहे हैं. बाकी देखते हैं, आगे क्या होता है! हिंदी पट्टी ‘पुष्पा 2’ और ‘गेम चेंजर’ जैसी फिल्मों को वैसा ईनाम देती है, जैसी उन्होंने उम्मीद की है या नहीं.